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प्रसंगादि से अवगत होने पर भी डा० ज्योतिप्रसाद जैन,* पं० बलभद्र जैन,* * और विजेन्द्रकुमार जैन* * * आदि ने केवल दिगम्बर तीर्थ होने और श्वेताम्बर मूर्तियों, लेखों के प्राप्त न होने का लिख दिया है वह उचित नहीं है। जहाँ तक अहिच्छत्रा तीर्थ सम्बन्धी उल्लेख का प्रश्न है, तीर्थवन्दन संग्रह के पृ० ११८ में डा० विद्याधर जोहरापुरकर* * * * ने स्पष्ट लिख दिया है कि निर्वाणकांड के नाम मात्र के उल्लेख के अतिरिक्त और कोई विवरण या उल्लेख दिगम्बर साहित्य में प्राप्त नहीं हैं। जब कि श्वे० साहित्य के उल्लेख निरन्तर और अनेकों प्राप्त हैं। इसी तथ्य को उजागर करने के लिए प्रस्तुत निबन्ध को काफी खोज करने के बाद लिखा गया है। इन पुष्ट प्रमाणों से फलित होता है कि अहिच्छत्रा पार्श्वनाथ तीर्थ श्वेताम्बर मान्य तीर्थ था और वहाँ की यात्रा करने आचार्य मुनि एवं श्रावक
संघ समय-समय पर जाते रहे हैं। निकटवर्ती स्थानों में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के घर न होने के कारण यह उपेक्षित हो गया और दिगम्बर समाज ने इसके प्रति विशेष रुचि दिखाई और आज उनके अधिकार में है पर यहाँ की कई मूर्तियाँ अन्य स्थानों से लाई गई हैं। बून्दी से तीन प्रतिमा २० वर्ष पूर्व लाने का उल्लेख पं० बलभद्र जैन ने अपने ग्रन्थ में किया ही है। लेख वाली प्रतिमा भी वीर सं० २४८१ में महावीरजी में प्रतिष्ठित हुई थी । यहाँ की किसी भी प्राचीन प्रतिमा में दिगम्बर सम्प्रदाय का अभिलेख नहीं है, पादुका का शिलालेख भी नया है।
अन्त में यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कायोत्सर्ग स्थित दिगम्बर मद्रा की प्रतिमाओं को दिगम्बर सम्प्रदाय की बतलाई जाती है, यह भ्रममात्र है । प्राचीन
* श्वेताम्बर परम्परा सम्मत आगमों में आचारांग नियुक्ति को छोड़कर अन्यत्र अहिच्छता विषयक विशेष वर्गन प्राप्त नहीं होता। -श्री अहिच्छत्रा पाश्र्वनाथ स्मारिका, पृ०६०।
* * "यहाँ श्वेताम्बर परम्परा की एक भी प्रतिमा न मिलने का कारण यही प्रतीत होता है कि यहाँ पाश्वनाथ काल में दिगम्बर परम्परा की ही मान्यता, प्रभाव और प्रचलन रहा है।" - उत्तर प्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थ, पृ० १०३ ।
* * * "लगभग एक हजार वर्ष से नगरी उजाड़ पड़ी रही। सुदूर दक्षिण में अधिकांशतः रचे जाने वाले मध्य. कालीन दिगम्बर साहित्य में तथा प्रायः उसी काल में गुजरात सौराष्ट्र में रचे जाने वाले श्वेताम्बरी साहित्य में यह प्रायः उपेक्षित रही। और आज भी श्वेताम्बर मुनि कल्याणविजय जैसे खोजी विद्वानों को यह लिखना पड़ा कि उपर्युक्त अहिच्छत्रा स्थान वर्तमान में कुरु देश को किसी भूमि भाग में खण्डहरों के रूप में भी विद्यमान है या नहीं, इसका विद्वानों को पता लगाना चाहिए।" मुनि कल्याणविजयजी राजस्थान गुजरात में ही विचरे इसलिए “अहिच्छत्रा न देखने से वृद्धावस्था के कारण भूल गये हों पर उन्होंने स्वयं भगवान महावीर' के पृ० ३५४ में बरेली से २० मील रामनगर
अहिच्छत्रा का स्थान निर्णय किया है। यों बहुत वर्ष पहले विजयधर्मसूरि और न्यायविजय जी त्रिपुटी ने इस स्थान का निर्गय कर ही दिया था। न्यायविजय जी ने तो काफी विस्तार से प्रकाश डाला है। जैन सत्य प्रकाश में बहुत वर्ष पूर्व नाथालाल छगनलाल शाह के इस विषय में दो लेख प्रकाशित हो चुके थे।
* * * * "अहिच्छत्रा के पार्श्वनाथ को निर्वाण काण्ड ( अतिशय क्षेत्र काण्ड ) में बन्दन किया है। इस संग्रह के अन्य किसी लेखक एक ( ने भी ) इसका उल्लेख नहीं किया । जिनप्रभसूरि ने इस क्षेत्र के विषय मैं कल्प लिखा है ।" (विविध तीर्थकल्प पृ०१४) । "महुराए अहिच्छत्ते वीरपासं तहेव वंदामि'-निर्वाण काण्ड, पृ० ३७ ।
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