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________________ द्वार खुल गया। श्रीदत्त एक क्षण में बाहर कूद पड़ा। पहरेदार उसे राजसभा में ले गये। वह राजा को सहर्ष प्रणाम करके बैठा। राजा ने कोतवाल को बुलाकर उसे मिथ्यादोषारोपण के अपराध में शूली का दण्ड दिया। श्रीदत्त ने अनुनयपूर्वक कहा--महाराज। यदि अपराध क्षमा करें तो एक बात कहूँ। राजा ने कहा, कहो। कहो। तुम्हें तो सात गुनाह माफ है। श्रीदत्त ने कहा-आप ऐसे बुद्धिमान कोतवाल को क्यों मार रहे हैं जिसने छ: मास के वाद भी मेरा चखारना पहिचान लिया। श्रीदत्त ने आदि से अन्त तक सारी बात राजा के पास निवेदन की। राजा ने कहा-तब देवी झठी हुई ? श्रीदत्त ने रात की सारी बात खोलकर कही कि उसने किस प्रकार देवी को वारजाल में उलझा कर चतुराई से अपनी प्राणरक्षा की। श्रीदत्त की बात सुनकर राजा व सभी सभासद् उसके बुद्धिबल की प्रशंसा करते हुए धन्य - धन्य कहने लगे । श्रीदत्त ने घर से जवाहिरात की छहो पेटियाँ मंगाकर राजा को संभलाई। राजा ने पूछा-तुमने यह सब प्रपंच क्यों किया? उसने कहा-श्रीमान, मैने बहत्तरवीं कला की परीक्षा करने के लिए ही यह कार्य किया था। राजा ने श्रीदत्त को प्रधान मंत्री पद दिया। बुद्धिमान कोतवाल को सम्मानित करने के साथ सिंहदास सेठ को बुलाकर उनकी अमानत जवाहिरात सुपुर्द की। श्रीदत्त अपने वुद्धिबल से उत्तरोत्तर उन्नति शिखर पर आरूढ़ होकर सुखी हुआ। १ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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