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कालिका देवी के मन्दिर के अहाते में एकत्र हुए। श्रदत्त भी सपरिवार आया और राजा को नमस्कार कर देवालय में प्रविष्ट हो गया । मन्दिर के द्वार वन्द हो गये । राजा ने मंदिर के चतुर्दिक पहरेदार बैठा दिये। सब लोग प्रातःकाल उस धीज का परिणाम जानने की इच्छा से अपने अपने घर चले गये। श्रीदत्त के घरवाले बड़ी व्यग्रता से उसके निदोष घर लौटने की कामना कर रहे थे।
के पद-चिन्ह भी देखे। पिता ने कहा-अपने शकुन हो गये अतः पहले ही वरण कर लें । पुत्र ने कहा-- पिताजी! छोटे पैरों वाली स्त्री मेरी और बड़े पैरोंवाली आपकी । आगे जाते कुछ ही दूरी पर उन्हें उन दोनों स्त्रियो से साक्षात्कार हो गया। उन्होंने स्त्रियों से पूछातुम लोग कौन हो, कहाँ रहती हो? स्त्रियों ने कहाहम रूद्रपली गाँव में रहने वाली कलंबी ज.ती की हैं. हम दोनों विधवा हैं अतः घर मांडने के लिए निकली हैं। आप लोग कौन हैं? उन्ह ने कहा- हम भी कलंवो जाति के हैं और इसी उद्देश्य से घर से निकले हैं अतः अपने परस्पर नाता कर लें। पितापुत्र ने पूर्व निर्णयानुसार उनसे सम्बन्ध कर लिया। वे दोनों माँ बेटी थी. छोटे पैरों वाली माँ थी जो पुत्र की और वड़े पैरों वाली पुत्री थी वह पिता की घरवाली हुई। वे अपने घर आकर आनन्द से गृहस्थी चलाने लगे। कुछ अरसे बाद दोनों गर्भवती हुई और दोनों ने पुत्र को जन्म दिया। अब माताजी, यह बतलाइये कि दोनों का परस्पर क्या सम्बन्ध हुआ अर्थात् वे एक दूसरे के क्या लगे? यही संशय है।
इधर श्रीदत्त ने सर्वप्रथम फल-फूल-मेवा-मिष्ठान्न आदि सामग्री से देती की पूजा की। फिर देवी की आरती करके दीपक की ज्योति के सामने बैठकर उनकी आराधना करने लगा। एक प्रहर बैतने पर सिंहवाहिनी त्रिशूल धारिणी देवी विकराल रूप में उपस्थित हुई। उन्होंने कहा- अरे पापी । चोरी और सीनाजोरी! चोरी करके भी सत्यवादी बनना चाहते हो? मेरे समक्ष तुम्हारी कारसाजी नहीं चलेगी। अपने इष्ट को स्परण करके कल मरने के लिये तैयार हो जाओ। श्रीदत्त ने विनम्र होकर कहा-माताजी, मेरे ऐसे भाग्य कहाँ जो आप के हाथ से मृत्यु हो ! परन्तु मेरे मन में एक संशय है, उसका निर्णय हुए विना मेरे मन की बात मन में ही रह जायेगी। अतः मेरा संशय दूर करके आप खशी से मारिए । देवी ने कहा-तुम अपने संशय की बात कहो। श्रीदत्त ने कहा- सुनिये माताजी! पली नामक एक गाँव है. जिसमें कलंबी जाति के दो पिता-पुत्र रहते हैं। कर्म संयोग से दोनों की स्त्रियाँ मर जाने से वे विधुर हो गये। उन्होंने विचार किया स्त्री के बिना घर क्या? अतः वे अपना घर बसाने के उद्देश्य से नाता (विधवा-विवाह) करने के लिये घर से चल पड़े। दो चार दिन में वे रूद्र नामक गाँव में आकर ठहरे। वहाँ से प्रातः काल रवाना होते समय उन्हें अच्छे शकुन हुए। बाप ने कहा--- बेटा, ये शकुन कहते हैं कि आगे जाने पर हमें दो स्त्रियाँ मिलेगी, जिनके साथ अपना सम्बन्ध होगा। उन्होंने थोड़ी दूर जाने पर मार्ग में दो स्त्रियों
श्रीदत्त की बात सुनकर देवी विचार में पड़ गयी और एक प्रहर बीत जाने के बाद भी वह एक-दूसरे के सम्बन्ध का निर्णय नहीं कर सकी। देवी ने झंझला कर कहा-पापी, तुम मुझे इस प्रकार वारजाल में फंसाकर ठगना चाहते हो? श्रीदत्त ने कहानहीं माताजी, अभी रात्रि तो तीन प्रहर बाकी है. अधीर न होकर स्वस्थ चित्त से विचार कर मेरा संशय मिटाइये। मैं आप के आगे भागकर तो नहीं जाऊँगा। देवी यह सुन वापिस मूर्ति के पास आ बैठी। देवी विचार करते-करते किसी निर्णय पर न पहुंची तो उसने फिर आकर श्रीदत्त से कहा। श्रीदत्त उन्हें बारम्बार संशय निवारणार्थ प्रेरित करता रहा। देवी इधर पशोपेश में रही और उधर प्रभात होते ही
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