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________________ बुलाकर कहा-सेठ सिंहदास के घर से जवाहिरात की छः उससे कोई रिश्ता नहीं है। यह सुनकर कोतवाल ने कहापेटियाँ चली गई, तुम क्या खाक चौकीदारी करते हो? सुनो श्रीदत्त। आज से छः मास पूर्व मध्यरात्रि में तुम देखो एक सप्ताह में तुम चोर और माल को बरामद करो सिंहदास के घर में बैठे थे, दीपक जलता देखकर जब अन्यथा चोर का दण्ड तुम्हें दिया जायगा। कोतवाल ____ मैंने पूछा-कौन बैठा है. तब तुमने वखारा था अपने तलाशी के कार्य में लग गया। राजा ने सिहदास और वैसे-ही आज भी तुमने वखारा अतः जौहरी से कहा-तुम्हारा धन सात दिन में आ गया तो ठीक. के जवाहिरात के चोर तुम्ही हो। श्रीदत्त ने कहा-वाह अन्यथा आठवें दिन मेरे खजाने सेले लेना. तुम्हें चिंता करने कोतवाल साहब, आप भी पादर देवी वाली वात करते हो। की आवश्यकता नहीं है। राजा के आश्वासन से जौहरी कोतवाल ने कहा-सो कैसे ? श्रीदत्त ने कहा-किसी गाँव तो निश्चिन्त हो गया पर सहस्रबुद्धि कोतवाल बड़ी में पादरदेवी का मंदिर था। वह देवी सबसे बलि, भारी चिता में पड़ गया कि छः महीने पूर्व गये माल भोग लेती और उन्हें कहती मैं तुम्हारे सारे विध्न का कैसे पता लगाया जाय ? उसका चित्त चिन्ता के हरण करती हूँ। किसी धूर्त ठग ने कहा-देवी । तुम्हारे मारे उदास हो गया । चिंता ऐसी ही चीज है, ही सिर विध्न आवेंगें जब ? देवी ने कहा-मैं सारे विध्न गाँव कहा है : पर ही डाल दूंगी । वैसे ही आप 'तबेले की बला बन्दर के सर" कह रहे हो। कोतवाल सुबह बात करने को कह कर चिंता में चतुरपन घटे, घटे कवित्त गुण गाह। चला गया और श्रीदत्त निश्चिन्त होकर सो गया । हाम काम विद्या घटे, चिन्ता समुद्र अथाह ।। आठवें दिन प्रातःकाल राजा ने कोतवाल को बुला चिंता समुद्र अथाह जल, दिवस भोजन नहिं भाव। घटे मित्र पर भाव , रयणि निद्रा नहु आवै।। कर पूछा-चोर को शोध निकाला ? उसने कहा-हाँ महाराज, पता लगाया है। इसी नगर के सेठ धनावाह रूप हीण तनु खीण, जास घट व्यापे चिंता।। का पुत्र श्रीदत्त चोर है। राजा ने श्रीदत्त को तुरन्त __ कवि 'गद्द' कहै दहें जीव, जास घट व्यापै चिंता॥ उपस्थित करने की आज्ञा दी। राजाज्ञा से श्रीदत्त राजचिंतातुर कोतवाल को चिंता ही चिंता में सात सभा में उपस्थित किया गया। उसने कहा-महाराज, दिन बीत गए पर वह इस विकट समस्या को सुलझा न क्या आज्ञा है ? राजा ने कहा-जौहरी सिंहदास के रत्न सका। सातवें दिन अर्द्ध-रात्रि में जब वह बाजार में तुमने चराये हैं, मेरा कोतवाल कभी झूठ नहीं बोलता। से निकल रहा था तो एक दुकान में दीपक जलते हुए श्रीदत्त ने कहा-आप मुझे स्वेच्छानुसार धीज कराइये। देख कर पूछा-हाट में कौन है ? श्रीदत्त ने उत्तर में यद मैं चोर हूँ तो दण्डित होऊँगा। राजा ने मंत्री. वखारा तो कोतवाल ने दुकान पर आकर द्वार कोतवाल सव से सलाह लेकर निर्णय दिया कि हमारे खुलवाया। श्रीदत्त ने कोतवाल को बैठने के लिए आस्न नगर की रक्षिका श्री कालिकादेवी चमत्कारी और प्रत्यक्ष दिया और पान, सुपारी, लवंग, इलायची आदि मनुहार हैं। वह चोर को मार देती है और साहूकार को जीवित करने लगा। कोतवाल ने पूछा-सेठ, तुम्हारे पिता का निकाल देती है अतः उस देवालय में रात भर रहकर नाम क्या है ? श्रीदत्त ने कहा-धनावाह मेरे पिता हैं और प्रभात में निकल आने पर तुम निर्दोष प्रमाणित हो सकोगे। मैं हूँ श्रीदत्त । कोतवाल ने पूछा-अपने नगर के जौहरी श्रीदत्त ने राजाज्ञा शिरोधार्य की। सिंहदास तुम्हारे सगे-सम्बन्धी हैं ? श्रीदत्त ने कहा-हमारा सन्ध्या समय राजा-प्रजा सभी मानव • मेदिनी १८६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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