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बहत्तरवीं कला की परीक्षा
बसंतपुर नगर में अजितसेन राजा राज्य करता था। उसके सुबुद्धि नामक प्रधान और सहस्रबुद्धि नामक कोतवाल था। उसी नगर में धनावाह नामक एक साहूकार रहता था जिसके चार पुत्र थे। उनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम श्रीदत्त था। सेठ ने श्रीदत्त को पाठशाला भेज कर उपाध्याय के पास पुरुष की बहत्तर कलाएँ सिखलाई। श्रीदत्त ने इकहत्तर कलाओं की परीक्षा दो जिसमें वह उत्तीर्ण हो गया, परन्तु बहत्तरवीं चोरी की कला अपरीक्षित रह गई तो श्रीदत्त ने सोचा इसे भी प्रयुक्त कर देखना चाहिए। इन विचारों से प्रेरित हो वह उसी नगर में रहने वाले धनाढ्य जौहरी सिंहदास के यहाँ गया। जौहरी सिंहदास ने श्रीदत्त को सम्मान पूर्वक बैठाया। श्रीदत्त ने उसके समक्ष जवाहिरात की ग्राहकी बताते हुए माल दिखाने के लिए कहा। जौहरी श्रीदत्त को लेकर ऊपर दूसरे तल्ले में गया और तिजोरी खोलकर जवाहिरात निकालने लगा। श्रीदत्त ने पास पड़ी हुई चाभियाँ लेकर अपनी जेब से मोम कि गोटियाँ निकाली और उन पर छाप लेकर अपनी जेब में डाल ली। जौहरी ने कई प्रकार के जवाहिरात दिखाए परन्तु श्रीदत्त से कोई भी सौदा नहीं पटा। श्रीदत्त सेठ को प्रणाम कर अपने घर लौट आया।
अब श्रीदत्त ने मोम की छाप के अनुसार लौहकार से नवीन चाभियाँ बनवाकर अपने पास रखी और एक चन्दन गोह खरीद कर उसे पालने-पोसने लगा। एक दिन अवसर पाकर वह गोह को लेकर निकला। आधी रात का समय था । वह सीधा सिंहदास सेठ के घर के पृष्ठ-मार्ग से गोह के प्रयोग से ऊपर चढ़ा। उसने गवाक्ष में आकर देखा कि सेठ सिंहदास ऊंघ रहा है। सेठ को निद्राधीन देखकर उसका पुत्र भी उठ कर सने चला गया था। श्रीदत्त चुपचाप जौहरी के पुत्र के स्थान पर आकर बैठ गया और खाता खोलकर कलम हाथ में ले ली। इसी समय सहस्रबुद्धि कोतवाल नगर रक्षा के हेतु घूमने निकला और जौहरी सिंहदास के घर में दीपक का प्रकाश देखकर पुकारा-- गवाक्ष में कौन बैठा है ? श्रीदत्त ने चखा जिससे कोतवाल ने समझा सेठ का पुत्र बैठा काम कर रहा है, अतः आगे निकल गया। कोतवाल के चले जाने पर श्रीदत्त उठकर तिजोरी के निकट आ गया और अपनी जेब में रखी चाभियों को उसमें डालकर बैठ गया। थोड़ी देर में अर्द्ध-रात्रि के घण्टे बजने प्रारम्भ हुए। श्रीदत्त ने घण्टे की आवाज के साथ-साथ तिजोरी खोलकर तुरन्त जवाहिरात के छः डब्बे निकाले और तिजोरी को बन्द कर दिया । इसके बाद रत्न-मंजषिकाएं और चाभियाँ लेकर धीरे से द्वार खोलकर अपने घर आ गया। वह उन पेटियों को घर में सुरक्षित छिपा कर अपने काम में लग गया।
छः महीने पश्चात् जौहरी सिंहदास ने किसी ग्राहक को दिखाने के लिए रत्नों की तिजोरी को खोला तो उसमें से छः पेटियाँ गायब मिली। सेठ का मुंह सफेद हो गया। उसने घर में सबसे पूछा, अच्छी तरह जाँच की पर जब कहीं भी पता न लगा तो राज-दरबार में जाकर प्रार्थना की-राजन् । मेरे घर से छः लाख के जवाहिरात बन्द तालों में से कोई ले गया । राजा ने सहस्रबुद्धि कोतवाल को
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