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हो गया। आपने इसके सम्बन्ध में हुई मौत" शीर्षक वाला सुन्दर लेख लिख कर "विशाल भारत" में प्रकाशित किया। यह शीर्षक भी आप की असाधारण सूदा-बुझ का परिणाम है और गतानुगतिक साहित्य मनीषियों के लिये एक बड़ा व्यंग भी।
उत्तम परीक्षक
आप विश्वविद्यालय के सर्वोच्च कक्षाओं के मानद परीक्षक तो थे ही पर प्राचीन मुद्रा शास्त्र के भी एक मर्मज्ञ विद्वान थे। एक बार एक ऐसे सिक्के को ब्रिटिश म्यूजियम के क्यूरेटर ने नाहरजी को भुलावे में डालने के लिये नकली बतला दिया जो उस म्यूजि यम के संग्रह में भी नहीं था। नाहरजी के इस उतर से कि आप दूसरे को भुलाबे में डालिये, मै इसके महत्व से अनभिज्ञ नहीं हूँ, मुझे इसकी पूरी परीक्षा हैक्यूरेटर मुँह ताकता ही रह गया।
मिलनसारिता
एक बार मेरे पूज्य पितामह श्री शंकरदान नाहटा कलकत्ता पधारे तो उन्होंने नाहरजी से मिलने का विचार किया। नाहरजी को मालूम होते ही वे स्वयं हमारी गही आरमेनियन स्ट्रीट में आ पहुँचे ओर बड़े प्रेम पूर्वक मिलकर काफी देर तक बातचीत में लग गए।
जैन अभिलेख
नाहरजी ने प्रतिमा लेखों का बहुत बड़ा संग्रह किया था। जैन समाज में सब से पहले अभिलेखों का संग्रह करने वाले वे ही थे। दूसरे सभी संग्रह बाद में प्रकाशित हुए थे। उनके लेखों का संग्रह तीन भागों में पूर्ण हुआ। तीसरे भाग में जेसलमेर के समूचे लेख प्रकाशित किए थे। उनमें जो भी रह गए हमने मूल लेखों से मिलाने के पश्चात् अपने 'बीकानेर जेन लेख संग्रह में लगभग २०० लेख प्रकाशित कर दिए। हमें लेख संग्रह करने
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की उनसे बड़ी प्रेरणा मिली थी अतः हमने अपने ३००० शिलालेख, १०० चित्र और १०० पृष्ठ की प्रस्तावना वाले इस वृहद्ध ग्रन्थ को स्वर्गीय नाहरजी की पुण्य स्मृति में उन्हें समपर्ण कर अपने को कृतकृत्य माना । 'एपिटम आफ जैनिज्म ग्रन्थ भी जैन धर्म सम्बन्धी जानकारियों से परिपूर्ण है जिसका लेखन आपने श्रीघोष महाशय के साथ किया।
अंतिम अभिलाषाएँ :
नाहरजी ने जैन लेख संग्रह के चतुर्थ भाग में मथुरा के प्राचीन लेखों का महत्वपूर्ण संकलन किया था। उन्होंने बड़े ही परिश्रम पूर्वक मूल लेखों को हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद सह विल्कुल तैयार कर लिया था और मथुरा जाकर एकबार फिर से लेखों को देख आने की भावना की थी पर उनका स्वर्गवास हो जाने पर वह कार्य यों ही रह गया।
उनकी इच्छा थी कि तीनों भागों की एक संयुक्त तालिका प्रकाशित कर दें ताकि इतिहास शोधकों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य हो जाय । यों अन्य अभिलेख संग्रहों से नाहरजी के लेख संग्रहों के परिशिष्ट अधिक स्पष्ट और महत्त्वपूर्ण थे ।
नाहरजी ने अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में हस्तलिखित प्रतियाँ की पुष्पिका - प्रशस्तियों के संग्रह की ओर ध्यान दिया था क्योंकि उनका महत्त्व भी ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो शिलालेखों से किसी प्रकार न्यून नहीं है। नाहरजी में यह विशेषता थी कि जिस काम में वे लग जाते उसे सफल बनाने में पूर्ण शक्ति लगा देते थे। अपने संग्रह की प्रशस्तियों का तो उन्होंने संग्रह किया ही पर जहाँ भी जाते प्रशस्तियाँ नकल करवा कर भेजने के लिए योग्य व्यक्तियों को निर्देश दे आते । आपकी प्रेरणा से हमने अपने संग्रह की ढाई हजार प्रशस्तियाँ एकत्र कर डाली । आपकी
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