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स्वर्गीय पूरण चन्दजी नाहर
संघ रत्नों की खान है। श्रीपूरणचन्द्रजी नाहर एक ऐसे हो उदात्त विचारों वाले. परिश्रमी और लगनशील साहित्य पुरातत्त्व रसिक विद्वान थे जो केवल बंगाल में ही नहीं अपितु समस्त भारत में ख्याति प्राप्त और मान्य प्रामाणिक पुरुष थे । आपके पूर्वज दो सौ वर्ष पूर्व राजस्थान से बंगाल में आकर बसे थे और धार्मिक व सामाजिक प्रवृत्तियों में अग्रगण्य रहे हैं। आपके यहाँ परम्परागत क्रिया-कलाप कीर्ति-स्तंभ की भाँति सर्वत्र परिलक्षित होते हैं। दिनाजपुर, जहाँ आपकी जमीन्दारी थी-का जिनालय, अजीमगंज का मन्दिर, कलकत्ते का कुमारसिंह हॉल व आदिनाथ जिनालय, पावापुरी का नाहर धर्मशाला. राजगृह का शान्तिभवन, पालीताना का नाहर बिल्डिग आदि स्थान इस बात के जीवन्त साक्ष्य हैं। आप बंगाल के ओसवाल समाज में सम्भवतः प्रथम ग्रेज्युएट थे। अपनी शिक्षा का सदुपयोग आपने जैन साहित्य और पुरातत्त्व की सेवा में किया । हिन्दो. अंग्रेजी और बंगला भाषा में आप समानरूप से लिखते थे और आपकी बाते प्रामाणिक मानी जाती थी। आपके पिताश्री ने स्तवनावली आदि कई पुस्तकें प्रकाशित की थी और आपका तो कहना ही क्या? अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन, लेखन व प्रकाशन करके आपने समाज का बड़ा उपकार किया है।
श्री नाहरजी अद्वितीय संग्राहक थे। अपने भ्राता कुमारसिंह और मातुश्री गुलाबकुमारी जी के नाम से स्थापित कुमारसिंह हॉल में गुलाबकुमारी लायब्रेरी और संग्रहालय एक तीर्थ-भूमि से कम नहीं है। जिनालय में विराजमान स्फटिक रत्न की विशाल जिन प्रतिमाएँ पूर्व और उत्तर भारत में दुर्लभ है। जिन्होंने आपके संग्रहालय की प्रतिमाएँ, चित्रों. ग्रन्थों, सिक्कों व कलात्मक वस्तुओं को देखा है वे आपकी अनुपम संग्राहक वृत्ति एवं कला प्रेम से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। आपने विविध सामग्री का असाधारण संग्रह तो किया ही था पर आपके डाक की टिकटें, दियासलाई के लेबुलों, कंकुम-पत्रिकाओं, विज्ञापनों, सामयिक पत्रिकाओं के मुख पृष्ठ एवं समाचार-पत्रों के कटिंग आदि साधारण वस्तुओं के विशिष्ट संग्रह को देखकर विस्मित हो जाना पड़ता था।
प्रथम भेंट :
मैं पचास वर्ष पूर्व जब कलकत्ता आया तो आपके
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