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________________ लिखा था कि 'सतीवाव' बीकानेर के सेठ सतीदास द्वारा निर्मापित है। पर अब तक किसी ने संशोधन नही किया । बाद में सं० १७०० के आस-पास सेठ शांतिदास के हाथ में तोर्थ व्यवस्था आई। इन सब बातों की चर्चा का यहाँ स्थान नहीं, पालीताना में भी समृद्ध आवकों के घर थे तथा गुजरात के अन्य नगर भी व्यवस्था में सम्मिलित थे । 'टाड' स राजस्थान' में टाड साहब के अहमदाबाद, सूरत, बड़ौदा और पाटण के संघको व्यवस्थापक कमेटी द्वारा तोर्थ को संभालने के उल्लेख को लेखक महोदय ने निराधार बतलाया है पर विजयराजसूरि की सलाह से १५ वीं शती की बात लाये है जिसका प्रमाण देना आवश्यक था। इसे आप भ्रमात्मक बता सकते हैं पर श्री पूरणचन्दजी नाहर के जैन लेख संग्रह भा० ३ में प्रकाशित अमरसागर के 905] Jain Education International शिलालेख लेखांक २५३० की सं० १८८१ (सन् १८३४) की प्रशस्ति के निम्नोक्त उल्लेख का आपके पास क्या समाधान हैं ? प्रशस्ति नं० १ में पटवों के संघ वर्णन में लिखा है कि"श्री मूलनायकजी रे भंडार रे ताला ३ गुजरातियां रा हा सो चौथो तालो संघव्यां आपरो दियो ।" इस से स्पष्ट है कि पेढी व्यवस्था तीर्थ व्यवस्था में अन्य नगरों का भी सहयोग था। अन्त में पेढी एवं श्री रतिलाल भाई से निवेदन है कि इतिहास सन्दर्भ में सत्यान्वेषी होकर श्रीमद् देवचन्द्र जी महाराज की सेवाओं और उपकार पर गहराई से विचार कर इतिवृत्त के प्रकाशन में प्रयत्नशील हों और अग्रिम भागों में संशोधन करें। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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