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इस मंगलमय अवसर पर हम नी नाहटाजी के दोर्घजीवी होने की प्रार्थना करते हैं । साथ ही नाहटा जी को 'जैन रत्न' की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव पेश करते हैं ।
-जवाहरलाल लोढ़ा सम्पादक, श्वेताम्बर जैन, आगरा
श्री भंवरलाल नाहटा जसे कम ही व्यक्तियों को वैश्य समाज में सरस्वती का सौभाग्यशाली पुत्र बनने का शुभावसर मिलता है । वे अपना कार्य करते हैं, सम्मान या यश के लिये नहीं, अपितु साहित्य के विकास के लिए. वो भी आंतरिक भूख और दृढ़ संकल्प के साथ । स्वयं सरस्वती साधना से प्रसन्न होकर ऐसे व्यक्तियों की मार्ग-प्रदर्शिका बन जाती है। धनिक, उद्योगपति, व्यवसायी गली-गली में मिलते हैं, किन्तु सरस्वती के सच्चे साधक दुर्लभ होते हैं।
हमें उनका सम्मान कर नयी पीढ़ी को उनकी तेजस्विता एवं साधना से परिचित कराना है। सरस्वती की उपासना करने वाले के अभिनन्दन में मेरा भी स्वर साथ है ।
-कृष्णचन्द्र अग्रवाल सम्पादक, दैनिक विश्वमित्र, कलकत्ता
यह सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि पूज्य भाईजी श्री भंवरलाल जी नाहटा की ७५वीं वर्षगांठ 'अमृत-महोत्सव के रूप में कलकत्ता के प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से मनायी जा रही है । वैसे सन् १९७६ ई० में स्वनामधन्य स्व० आगरचन्द जी नाहटा को अभिनन्दन ग्रन्थ सेंट किया गया था-संयुक्त रूप से आपका भी अभिनन्दन "नाहटा बन्ध अभिनंदन ग्रन्थ" के रूप में किया गया था।
हमारे नाहटा परिवार में दूसरी पीढ़ी में भंवरलालजी ही उम्र में सबसे बड़े हैं इसलिये सभी भाई जी के नाम से इन्हें पुकारते हैं। जिस वर्ष मेरा जन्म हुआ उसी वर्ष माईजी का विवाह छोटा देवी से हुआ था। इनकी गोद में मैं पला हूँ-और बचपन से ही न जाने क्यों मेरे मन में इनके प्रति श्रद्धा, प्रेम एवं अटूट विश्वास रहा है।
म ईजी गृहस्थ में होते हुए भी संत पुरुष हैं। इनके चेहरे पर कमी क्रोध की लालिमा नहीं देखी। जो कुछ भी साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व का काम किया अपने चाचा अगरचन्दजी नाहटा के साथ संयुक्त रूप से किया किन्तु स्वयं निलिप्त भाव से रहे, सभी चाचाजी के चरगों में समर्पित कर रखा था। इनकी कभी भी यह आकांक्षा नहीं रही कि इनका नाम हो, इन्हें यश मिले। यह एक ऐसा मानवीय गुग भाईजी में है, जिसकी कोई दूसरी मिशाल नहीं।
भाईजी का सारा जीवन सत्य-निष्ठा से ओत-प्रोत है, कभी झूठ या गलत वात का सहारा नहीं लिया । या तो मौन रहे या स्पष्ट रूप से खुल्लम-खुला कहा । आपने मुझे एक दिन एकान्त में बताया-मैंने जीवन में कोई गलत काम नहीं किया। एक-दो वातें अनजाने में हो गई, उसका अभो भी मैं पश्चात्ताप कर रहा हूँ।
भ ईजी का अनेक संस्थाओं से सम्बन्ध है। जो पद भार ग्रहण करते हैं उसको कर्तव्यनिष्ठा से निभाते हैं । कलकत्ता जैन समाज के ही नहीं. भारतीय जन समाज के साहित्यसेवी. समाजसेवो. धनिष्ठ श्रावक हैं । अपने निकटतम लोगों के विषय में कलम से लिखना बड़ा दुष्कर कार्य है, इसलिये कलम को यहीं विश्राम देता है। प्र है-आपका सान्निध्य, वरद हस्त युगों-युगों तक हम सब पर छत्र छाया बनाये रखे ।
-हजारीमल बाँठिया. कानपुर
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