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श्री भँवरलालजी नाहटा से मेरी मुलाकात केवल एक बार की है । सामान्य से मारवाड़ी पहनावे में वे एक सेठ तो लग सकते हैं. पर वे इतने बड़े सरस्वती पुत्र हैं, यह कल्पना ही दुरुह है। लगता है स्वयं सरस्वती ने आश्रय खोजते खोजते थककर श्री भँवरलालजी को ही अपना आश्रय स्थल बना लिया है। उनके पास अकादमीक शिक्षा की कोई डिग्री नहीं है, इसके बावजूद वे हिन्दी संस्कृत, प्राकृत, बंगला तथा राजस्थानी के उद्भट विद्वान हैं।
उन्होंने बहुत लिखा, विभिन्न विधाओं में लिखा
कहानी, संस्मरण, शोध-प्रबन्ध और कविता में उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने जितना लिखा वह व्यक्ति के रूप में नहीं, एक नाहटा वन्धु के रूप में लिखा और इसीलिये श्री अगरचन्दजी नाहटा के नाम से जाने-पहचाने प्रचुर साहित्य में उनका वहुत बड़ा भाग है। यह अलग नहीं किया जा सकता है यानि जितना साहित्य उनके नाम से जाना जाता है वे उससे कहीं अधिक के लेखक हैं।
भी हैं। उनका लेखन
यद्यपि बीसवीं सदी के
श्री नाहटा जी जितने बड़े विद्वान हैं, उतने ही विनम्र और समर्पित-वृत्ति वाले आर्थिक अर्जन के लिये तो हुआ ही नहीं है. यश प्रतिष्ठा की दृष्टि से भी नहीं हुआ है। इस नौवें दशक में यह तथ्य स्वीकार करने को मन नहीं मानता है, पर यह सर्वथा सत्य है समर्पित साहित्यकारों की उस कड़ी में अग्रणी हैं, जो समय की परतले आच्छादित नहीं होंगे। अवसर पर मेरी कानना है कि हमें उनकी शताब्दी मनाने का भी अवसर प्राप्त हो ।
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श्री भँवरलालजी नाहटा उनके ७५वें जन्मदिवस के
श्री भँवरलाल नाहटा की समाज सेवा से परिचित है। उन्होंने सभी समुदायों के हित के लिए कार्य किया है । ऐसे प्रतिभाशाली और क्षमतावान व्यक्ति का अभिनन्दन करना ही चाहिए। मेरी शुभकामनाएं ।
- हर्षचन्द्र संपादक, कथालोक, दिल्ली
श्री नाता जी ने अपनी प्रतिभा, अध्ययन, चिन्तन तथा मनन द्वारा तथा अज्ञात ग्रन्थों की खोज संपादन तथा अनुवाद द्वारा जिन शासन का गौरव बढ़ाया है। मैं उनकी हीरक जयन्ती के अवसर पर हार्दिक मंगल कामना करता हूँ। -ज्ञानचन्द जैन सम्पादक तारणबंध. भोपाल
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-राजेन्द्र अवस्थी कादंविनि, नई दिल्ली
श्री भंवरलालजी नाहटा एक प्रतिभावान भाई हैं। आप संस्कृत प्राकृत, पाली, हिन्दी, बंगला, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं के अच्छे जानकार हैं। साथ ही आपका लिपि ज्ञान भी अद्भुत है । आपने अनेकों लेख और कई पुस्तकें भी लिखी हैं इतिहास की खोज में भी आपकी अधिक रुचि है।
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