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अंवेरभी करी। भंवरलालजी नाहटा राजस्थानी रे आपूनिक साहित्य रे सिरजग रे साथै राजस्थानी रै पुरांण साहित्य रौ संग्रह अर संरक्षण रो मेहताऊ काम करयौ। मैंवरलालजी अर आरा काका अगरचन्दजी नाहटा औ दोनूं मिळ'र पाण्डलिपियाँ रौ जे संग्रह करयौ वो आज भी "अभय जैन ग्रन्थालय वीकानेर" में सुरक्षित है। इयै ग्रन्थ में कोई ५६-५७ हजार नैड़ी हस्तलिखित पोथियाँ भेळी करीजी जिको अपणे आप में वोत बडौ काम है ।
अक बात अठै म्है आ भी कैवगी चावं के भंवरलालजी नाहटा साहित्य सिरजण अर ग्रन्थसंग्रह रै साथै आपरौ पुश्तैनी धंधौ भो अठै ढंग सं संभाळियौ। मैंवरलालजी इण काम धंधा अर आपरा वोपार ने जे नी संभाळता तो अगरचन्दजी नाहटा सायद ही इतौ साहित्य लेखन रौ काम कर सकता । क्युकै अगरचन्दजी नाहटा ने साहित्य लेखन रौ इतौ अवसर नी मिळतौ। इण भांत भँवरलालजी आपरै काकाजी अगरचन्दजी न साहित्य सिरजण सारू पूरौ अवसर देय जो अमोलो सेयोग दियो वो भी सरावग जोग जिग री वजह सूं है। अरचन्दजी नाहटा आपरौ पूरौ जीवण साहित्य रै नाम समर्पित कर सक्या । काका रे खातर भतोज रौ और त्याग अर माव बखांणण जोग । राजस्थानी रा लाडेसर आं दोनूं काका भतीज रा वखांग करां जिता ही थोड़ा।
भँवरलालजी नाहटा रे इण अभिनन्दन अवसर माथै म्है मायड़भाषा रा हेताळ सपूत री इस सबदां में अभिनन्दन करु
समझगहार सुजाण, बीकाणै रौ ६ांकुरौ । धना'र विद्या र पांण, ओळख वणाइ आपरी ।। १।।
गरवी घणै गुमेज. गुवाड़ ज नाहटां तणी। भंवर अगर रै काज, अंजसै रजथांनी अजै ।। २ ।।
भँवर जिसौ भतरीज. हरख्यौ अगर रो हिवडौ।। रूड़ी बणी आ रीझ, काका नै भतीज तणी ॥ ३ ॥
भँवर भरिया भण्डार, पूर पुरांणी पोथियां । सिरजण रौ सुअधार, रजथानी नै थें दियौ ।।४।।
भंवर पगां रौ भेस, भँवर पदै न धारियौ। मुळके मरूधर देश, नर नाहट तुझ कारणे ॥ ५॥
सुरसत लिक्षमी दोय, अकण साथ अराधणौ । कसर न रखो कोय, सांचे मन सेवा करी ॥ ६ ॥
-विक्रमसिंह गून्दोज राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर
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