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________________ निर्माग, १० पू० स्व० महाराज श्री १०५ श्री विचक्षणश्रीजी म० सा० की प्रेरणा से श्री रामलालजी सा० लुणिया ने अपने हाथों में लिया। जयपुर के प्रसिद्ध रत्न-पारखी समाज-सेवी श्री राजरूपजो सा० टांक व बिलाड़ा, जोधपुर, पिपाडसिटी आदि स्थानों के आगेवानों को साथ लेकर अखिल भारत के सहयोग ये चर्थ दादा गुरुदेव की भव्य दादाबाड़ी का निर्माण हुआ व प्रतिष्ठा हुई । उस दिन सकल श्वेताम्बर श्री संघ ने हमारे नायक श्री संवरलाल जी नाहटा के सुदृढ़ हाथों में इसकी प्रबन्ध व्यवस्था सौंप दी थी। आज थोड़े से समय में यह दादाबाड़ी अखिल भारतीय । स्तर पर गुरुदेव-भक्तों के दर्शन, पूजन का श्रद्धापूर्ण तीर्थ बन गया है। इसका श्रेय श्री भंवरलाल जी नाहटा की दूरदर्शिता पूर्ण मार्गदर्शन को ही है। रतलाम में प० पू० महाराज श्री १०५ श्री विचक्षणश्री जी म० सा० की चिर-वांछित संस्था "श्री सुखसागर गुरुकुल" की स्थापना का श्रेय भी श्री भंवरलालजी सा० नाहटा को दिया जाएगा। इस संस्था से जन छात्रों को आधनिक शिक्षा के साथ रचनात्मक कार्यों एवं धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ जीवन सफल बनाने का मार्ग-दर्शन मिलता रहा है। शिक्षा प्रेम का इससे बढ़िया उदाहरण और क्या हो सकता है। साहित्य के द्वारा जैन समाज को आपकी देन, "कुशल निर्देश" मासिक-पत्र है जिसका वर्णन करना भी अतिआवश्यक है। आप ही के विद्वतापूर्ण सम्पादन एवं कुश व्यवस्था से यह पत्र समाज में अपना उच्च स्तर कायम रखते हुए वौँ से सेवारत है। मूलतः बीकानेर (राजस्थान) के वासी होते हुए तथा व्यापारिक व्यस्त जीवन का कलकत्ता महानगर में निर्वाह करते हुए आपने लक्ष्मी एवं माँ सरस्वती की आराधना में अपना जीवन लगाया यह स्तुत्य है। सबसे बड़ी बात है इन सभी व्यस्ततापूर्ण स्थिति में भी आपकी समाज सेवा एवं धर्म में गहरी निष्ठा जाग्रत रही है। आपका सक्रिय सहयोग समाज के हर वर्ग एवं हर संस्था को मिला और आपके औदार्यपूर्ण व्यक्तित्व से संब्ल भी मिला। भाषा-शास्त्र, लिपि-विज्ञान, चित्रकला एवं ललितकलाओं के पारखी, विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री भंवरलालजी सा० नाहटा के समन्वय प्रेम, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व को दृष्टिमान रखते हुए कतिपय उद्गार, श्रद्धा-सुमन के रूप में अर्पित करते हुए हम आज हमारी संस्था की ओर से श्री भंवरलालजी सा० नाहटा का हार्दिक बहुमान करते हैं तथा परम पूज्य गुरुदेव महाराज से प्रार्थना करते हैं कि धर्मनिष्ठ नाहटा जी सा० शतायु हों व समाज उनकी प्रतिभा एवं मार्गदर्शन से लाभान्वित होकर प्रगति करता रहे। -अमरचन्द लुणिया अध्यक्ष, श्री जिनदत्तसूरि मण्डल. अजमेर भंवरलाल जी नाहटा सं म्हारौ मिलग रौ मोकौ कदेई पड्यौ कोनी, नी कोई जोग कदै मिलण रौ हुयौ हां वारा स्वर्गीय काका श्री अगरचन्दजी नाहटा सू केई बार मिलणौ भी हुयौ और केई विषयां माथै पत्र व्यवहार भी पण वारे भतीजे भंवरलालजी रौ नांव म्हारै वास्ते असेंधौ हुवै आ बात नीं। म्है तो कांई' राजस्थानी रो सायद ही कोई अड़ो सजग पाठक हुवैला जो मैंवरलाल जी नाहटा रो नांव नी सुण्यौ हुवे। मिलण रौ जोग तो हुवे भी कियां वे राजस्थान सं कारूप देस में, कलकत्ता नगर में आपरौ वोपार संभालै। आपरी जलमभोम बीकानेर सू अता दूर रहता थकां भी वे आपरी मायड़ भाषा खातर आपरै हिय में पूरी पीड़-पाळ राखी अर राजस्थानी साहित्य रौ सिरजण करयौ अर उणरी २०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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