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पितामह स्वरूप नाहटाजी हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी बहुआयामी प्रतिमा की महासागरीय विशालता एवं गहनता साधारण व्यक्ति की कल्पना क्षमता में नहीं सना सकती । हम तो तटवर्ती लहरों के स्पर्श-सुख में ही जीवन की अलौकिक सम्पन्नता एवं आनन्द की अनुभूति से अभिभूत हो उठते हैं । अतीत की दिव्य अनुभूतियों को अतिमानवीय चेतना से सम्पृक्त कर वर्तमान का अभिषेक करने वाले महान पुरोधा की साधना के शाश्वत आलोक की प्रभा का अभिनन्दन कर भावी पीढ़ियाँ अपनी पहचान को अधिकाधिक सशक्त एवं समुज्ज्वल बना सकेगी-इसी विश्वास के साथ नाहटाजी के त्रिकाल व्यापी व्यक्तित्व के प्रति खड़गपुर जैन समाज अपना शत-शत प्रणाम निवेदन करता है।
-भीखमचंद कोचर मंत्री. श्री जैन श्वेताम्बर संघ, खड़गपुर
इस मंगल कार्य हेतु स्वयं मेरी तथा श्री अ० भ० साधुमार्गी जैन संघ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें। मै शासनदेव से उनके शतायु होने की प्रार्थना करता हूँ।
-चम्पालाल डागा कोषाध्यक्ष, श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् परिवार की तरफ से श्रीमान् नाहटा जी के चिरायु होने की मंगल कामना करता है। श्री नाहटा जी की अनुपम सेवायें दीर्घकाल तक साहित्य जगत को प्राप्त होती रहे, ऐसी प्रभु से कामना है।
-मेवालाल डागा सहमंत्री, अखिल भारतीय तेरापन्थ युवक परिषद्, गंगाशहर (बीकानेर)
धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में श्री नाहटाजी सा० का विशाल योगदान रहा है. वो भी अखिल भारतीय स्तर पर | श्री नाहटा जी सा० मेरे पूज्य पिताश्री रामलालजी सा० लुणिया के समकक्षी सहयोगी रहे हैं। हमारे यहाँ उनके काकाजी साहित्य-वारिधि श्री अगरचन्दजी नाहटा का बहुत आना-जाना रहा था तथा श्री भंवरलालजी सा० नाहटा भी यदाकदा उनके साथ ही पधारते थे, किसी न किसी संस्था के सन्दर्भ में सलाह मशविरा करने के लिये । मेरा जब भी उनके साथ साक्षात्कार हुआ मैंने उन्हें गम्भीर. चिन्तनशील विद्वान की छवि आलोकित करते पाया। उनके सुलझे हुए विचारों की क्रियान्विति रचनात्मक रूप से हो, समय से हो, यही उनकी विशेषता रही, जिससे श्री नाहटा जी सफलता के चरम शिखर पर पहुंचे हैं।
धर्म और समाज-सेवा के कतिपय कार्य जो ऐतिहासिक महत्व के लिये गिने जाते हैं, उनमें श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ के मंत्री के रूप में विभिन्न स्मारकों का निर्माण है जैसे आचार्य श्री हरिभद्रसूरि स्मृति मन्दिर, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) एवं मुगल शहंशाह अकबर प्रतिबोधक दादा गुरुदेव १००८ श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के स्वर्ग-स्थली, बिलाड़ा (राजस्थान) में भव्य दादाबाडी। इन्हें बनाने की योजना के विचार-विमर्श एवं समाज के अग्रजों से सम्पर्क हेतु आपका अजमेर आगमन होता ही रहता था। आप ही की देखरेख में हरिभद्रसूर स्मृति मन्दिर का भव्य स्मारक बना व श्री जिनदत्तसरि सेवा संघ ने प्रतिष्ठा कराने का श्रेय लिया तथा स्मारिका भी छपाई । श्री जिनचन्द्रसूरि दादाबाड़ी एवं देरासर का भव्य
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