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________________ श्री अगरचन्दजी एवं श्री भंवरलाल जी नाहटा दोनों बन्धुओं ने जैन साहित्य को जन-साधारण की भाषा में गद्य-पद्य के रूप में लिखकर, इतिहास का शोधन कर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है। गत वर्ष अनायास ही उनसे पालीताना में मेंट हो गई थी। उनकी बड़ी कृपा थी कि उनके अमूल्य समय में से लगभग शा-२ घंटे का समय मुझे मिला और पालीताना में खरतरगच्छ के पूर्व काल के प्रभाव का और प्रसंगानुसार भारतवर्ष में खरतरगच्छ के प्रभाव का रोचक एवं तथ्यपूर्ण इतिहास जाना। उन्होंने इसको लेखबद्ध किया या नहीं नहीं जानता पर ऐसी कई बातें जो उनकी जानकारी में हैं उन्हें लिपिबद्ध किया जाना आवश्यक है । श्री भंवरलाल जी नाहटा उत्तम पुरुष हैं। उनके मन में जैन धर्म का जैसे भी हो पोषण, रक्षण, प्रसार हो यह भावना बनी रहती है। उनके जीवन के प्रत्येक कार्य में उनका यह भाव प्रगट होता है। इसीलिये उनके जीवन में स्वार्थ गौण है। उनकी क्रियाए उचित हैं। हमेशा अदीन भाव से रहते हैं। कोई भी कार्य प्रारंभ करने के पूर्व उसके परिणाम का आकलन कर लेते हैं, अपने आशय के प्रति दृढ़ हैं, उनका कोई छोटा-सा भो उपकार करे तो वे उसको भूलते नहीं । ऐसे गुणवान, गुणानुरागी महानुभाव का आपने अभिनन्दन समारोह के रूप में गुणानुवाद किया और मुझे भी उनके आंशिक गुणों का वर्णन करने का अवसर दिया. इसके लिये मैं आपका आभारी हूँ। -विमलकुमार चौरड़िया प्रान्त संघ चालक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भानपुरा. म० प्र० श्री नाहटाजी अपने आपमें एक वृहद् मानवज्ञानकोश हैं और उनके कार्यों ने विश्व साहित्य समाज में कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इस प्रकार की विश्व द्य विभूति का जितना सम्मान किया जाय कम है। -अनिल शर्मा काउन्सिलर, कलकत्ता म्युनिसिपल कापोरेशन श्री नाहटाजी हमारे समाज एवं देश के गौरव हैं और वे केवल व्यक्ति ही नहीं, एक महत् संस्थान हैं । हमारे अनेक दुर्लभ प्राचीन प्रयों को, जिन्हें पढ़ पाना दुष्कर था, उन्होंने अपनी प्रतिभा से उनकी स्वतन्त्र वर्णमाला तैयार कर उस धरोहर को देशवासियों के लिये सुलभ कर दिया । इस कार्य के लिये वर्तमान ही नहीं, भविष्य की भी सारी पीढ़ियां इनकी चिर ऋणी रहेगी। -शान्तिलाल जैन काउन्सिलर, कलकत्ता म्युनिसिपल कार्पोरेशन १८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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