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________________ चक्रवाक हूँ। मृत्यु पर्यन्त की घटना मुझे याद थी पर बाद में क्या हुआ वह इन चित्रों से आज मालूम कर सका । मेरी प्रिय चक्रवाकी मेरे साथ ही जलकर भस्म हो गई। हाय ! आज वह कहां मिलेगी।' सारसिका यह सुनकर चित्रों के पास आकर खड़ी हो गई । इतने में उस तरुण के एक मित्र ने आकर पूछा-'सबको पागल बना देने वाले इन चित्रों का अंकन किसने किया है ? सारसिका ने कहा-'सेठ ऋषभसेन की पुत्री तरंगवती ने ये चित्र बनाये हैं। ये केवल कल्पना मात्र नहीं हैं, इसके पीछे तथ्य छिपा हुआ है ।' यह बात उसने अपने मित्र से कही जिसे सुनकर वह शोकपूर्वक कहने लगा-'नगर सेठ तो बड़ा अभिमानी है । तरंगवती के लिये आयी हुई सभी माँगे उसने ठुकरा दिये हैं । मेरी माँग वह कैसे स्वीकार करेगा? मित्रों ने कहा-'तुम चिन्ता मत करो, किसी भी प्रकार से तुम्हारा सम्बन्ध तरंगवती के साथ करा देंगे। वे उसे घर की ओर ले गए। सारसिका भी पीछे-पीछे चली। राज-मार्ग पार कर एक भव्य भवन में वे सब प्रविष्ट हो गए तो उसने बाहर रुककर सारी पूछताछ कर ली। दिन के दूसरे प्रहर में सेठ धनदेव अपने दो आत्मीय जनों के साथ सेठ ऋषभसेन के पास आया और तरंगवती की मांग की। ऋषभसेन ने कहा-'वह तो व्यापारार्थ परदेश ही घूमता रहता है और दासियों के साथ घमता है । उसे मेरी पुत्री दूं तो वह क्या सुख भोगेगी? सदा . पति वियोग में अश्रुपात करेगी, और कभी अच्छा पहिनने ओढ़ने का मौका नहीं मिलेगा। उस प्रवासी से तो यहाँ रहने वाले किसी कंगाल को देना अच्छा है। धनदेव को यह उत्तर बहुत बुरा लगा, वह ऋद्ध होकर चला गया। सारसिका संलग्न खण्ड में बैठी हुईं सब कुछ सुन रही थी। उसने अश्र.पूर्ण नेत्रों से आकर तरंगवती को कहा। इस समाचार से वह वज्रपात से धराशायी होते वृक्ष की भाँति स्तब्ध हो गई। जव स्वस्थ हुई तो उसने कहा'सारसिके । मेरे पिता के इस जवाव को सुनकर उन्हें सरन्त आघात होगा जिससे उनका जीवितव्य भी जोखिम में आ पड़ेगा, अतः मैं एक पत्र लिखती हूँ जिसे दे आओ।' तरंगवती ने पत्र तैयार किया और सारसिका उसे लेकर पद्मदेव के मकान पहुंची । दरवानों ने अनजान व्यक्ति ज्ञातकर पूछा-'किससे मिलना है ?' सारसिका ने कहा-'पद्मदेव ने मुझे किसी कार्य के लिये बुलाया है। इससे उन्होंने अन्दर जाने दिया और एक दासी उसे पादेव के पास छोड़ गई । रात्रि पूर्ण हुई । प्रभात होने पर सारसिका दौड़कर तरंगवती के निकट गई और उसे आलिङ्गनबद्ध कर बोली-बहिन । काम सफल हो गया ! तुम्हारे पति का पता लग गया है। फिर उसने रात की सारी बात कही । तरंगवती ने कहा-'सखी, तुम माग्यशाली हो कि तुमने उन्हें नजरों से देखा । मैं कब उनके दर्शन करूगी ? अरे, तुमने मुझे उनका नाम तो बतलाया ही नहीं । सारसिका ने कहा'उनका नाम पद्मदेव है और उनके पिता का नाम धनदेव । उनका मकान सारे नगर में केवल अपने से ही भव्यता में कुछ न्यून है । रूप में तो वह कामदेव के जैसा है और सचमुच वह बिल्कुल तेरे योग्य पति है।' यह कहकर वह चली गई। पद्मदेव की हालत इस समय बड़ी खराब थी । वह गाल पर हाथ देकर चिन्तित मुद्रा में बैठा था । सारसिका ने उसे नमस्कार कर कहा-'आप जिसकी चिन्ता में बैठे हैं, उसी का सन्देश लेकर मैं आई हैं।' कहकर पत्र हाथ में रख दिया। तरंगवती ने उसमें लिखा था-पूर्वभव में जिसने आपके साथ चिता प्रवेश किया था, वही आज नगरसेठ के यहाँ पुत्री रूप में अवतरित है । आपकी खोज के निमित्त ही यह प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। वही प्रेम आज भी कायम हो तो अपनी देह को सुरक्षित रखें व मुझे भी जीवित रखें । अपना १५ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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