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इस समय दो तरुण बालाए बाग के बीच में स्थित तालाब के किनारे खड़ी-खड़ी उसकी शोभा देख रही हैं। इनमें एक का नाम तरंगवती और दूसरी का नाम सारसिका है। तरंगवती ऋषभसेन सेठ की उत्यन्त लाटली पुत्री है। उसके गणित. वाचन, लेखन, नृत्य, गायन, पुष्पपालन कला, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र आदि विषयों के निष्णात शिक्षकों के पास अभ्यास किया हुआ है।
तरंगवतो यमुनाजो की मान्यता से हुई थी अतः उसका नाम तरंगवती रखा गया। वह आठ भाइयों में सबसे छोटी और लाडली बहिन है। उसके पास खड़ी सारसिका उसकी प्रिय सखी है।
तरंगवती
शरद ऋतु के सुहावने दिन प्रारम्भ हो गये हैं। आकाश में श्वेत बादल दौड़ते मालूम देते हैं। ग्रीष्मकाल बिताने गये हुए राजहंस लौट कर यमुना नदी एवं अन्य सरोवरों में कल्लोल करने लगे हैं। नदी तट-स्थित कितने ही वन फीके, कितने ही आसमानी और कितने ही पीले बन गए हैं तो सप्तपर्ण के जंगल बरफ जैसे सफेद हो गए हैं।
इस समय मध्य देश स्थित वत्स देश अत्यन्त मनोहर लगता है। उसके धान्य भरे खेत, जलपूर्ण नदी नाले एवं हर्ष भरे मानव मन हर किसी को आनन्ददायी हैं। इसकी राजधानी कौशाम्बी तो उत्सवों का धाम हो गई है।
तालाब में गुलाबी, आसमानी और भूरे कमल खूब खिले हुए हैं जिनका पराग संग्रह करने के लिए मस्त बने भूमर गुंजार कर रहे हैं। बत्तक और चक्रवाक युगल इसमें तैर कर कल्लोल कर रहे हैं। यह दृश्य देखते-देखते तरंगवती एकाएक मूर्छित होकर भूमिसात् हो गई।
एकाएक इस घटना से सारसिका घबड़ा गई । वह दौड़ . कर तालाब से कमलपत्रों का दोना बनाकर पानी लाई और तरंगवती के मुंह पर छिड़कने लगी। थोड़ी देर में तरंगवती सचेत हो गई, उसकी आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित थी।
'बहिन । एकाएक तुम्हें क्या हो गया? कोई मधुमक्षिका ने डंक मारा या चक्कर आ गया? जो हो शीघ्र कहो. ताकि उसका उणय किया जाय!' सारसिका के इन प्रिय वचनों के उत्तर में तरंगवती ने कहा-'बहिन । न तो मुझे मधुमक्खी ने काटा और न चक्कर ही आया था। तब क्या हुआ था?' सारसिका ने पूछा।
तरंगवती ने कहा-'प्रिय सखी ! तुम बचपन से मेरी सुख-दुःख की साथीन हो और मेरी समस्त गुप्त बातें जानती हो अतः तुम्हे कहने में कोई आपत्ति नहीं किन्त. यह बात तुम्हारे मन में रखना है। इसके लिये कसम खाकर कहो कि मैं किसी के सामने प्रकट नहीं करूंगी।' सारसिका के कसम खाने पर तरंगवती ने कहा-'चक्रवाक युगल को
यहाँ के नगर सेठ ऋषभसैन का खिला हुआ बगीचा पूरे बहार में है । उसके घर की समस्त महिलाएं इस रद्यान की मौज उड़ाने के लिए निकल पड़ी हैं। पतंगिए की पांख जैसे मनोहर वस्त्र एवं विविध अलंकारों के परिधान से वे नन्दन वन में विहार करती अप्सराओं के जैसी लगती हैं। कोई फूल तोड़ती है तो कोई लतामण्डपों की कुंज गलियों में घूमती है। कोई पुष्प हार बनाती है तो कोई पक्षियों के कलरव-गीत सुनने में मस्त है।
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