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________________ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ मि ...- : ससाघवाह हहार .. . क रव ग घ च छ मछ ) ट ठ ड ढ ण त प २ घन यर व पबछ४ तयघटdडटण प फ ब भ म य य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ळ चज २०गराषमनल ३१बूंदी - डी (अस्पष्टाक्षर ) क्त व नव्य वृ त्म श्र म्ह स्ती कृ ष्ण प्रन ब्र स्व वड्सपल श्रीलप्रनम्ध ज्यत्त व्ह द च्य ध्य व्या स्त्र व य ग्य ग्य दृश्य ब्द स्थ कत काय ष्या त्रस्व ग्रह का ६ क्न का मृए ध्य प्तः रव्य त्य मि क्ष्मी कश्चस्व ष्ट्राग्र त्कबष्ण कस्का कतः व्यय मि उभीच स्वधात्याटप्प क्त त्य व्य व्इ भ्य ध्य द्ध ष्णु व स्नात्र ब्र स्प (संयुक्ताक्षर) ती काकद स्णु घाव स्प के लिये लिपि-पत्रक में '४' के रूप का अनुमान कर है। तालव्य 'श' और मूर्धन्य 'ष' में कोई परिवर्तन के प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है। मूर्धन्य वर्ण 'ट ठ नहीं है । दूसरे सभी अक्षर गुजराती की तरह खुले-मस्तक ड ढ ण' को दन्त्य वर्ण त थ द ध न' तथा 'त थ द हैं. पर श ष' को अपरिवर्तित ग्रहण करके मस्तक पर धन' को मूर्धन्य ‘ट ठ ड ढ ण' के रूप में परिवर्तित संकेत लकीर भी रखी है। 'ष' के खुले मस्तक वाले रूप को यहाँ बना लिया है । ओष्ठ्य वर्ण प फ ब भ म' को तालव्य 'इ' की मान्यता दी है। दन्त्य 'स' को हिन्दी के 'म' 'च छ ज झ ञ' में परिवर्तित किया है। 'भ' बंगला लिपि जैसा माना है. और 'ह' को 'इ' से मिलता-जुलता रूप के 'ह' के सदृश है । 'य' के दो रूप हैं-एक शून्याकार दिया है। 'क्ष' को 'उ' जैसा लिखा है। 'त्र' और 'ज्ञ '०' तथा दूसरा 'क' । 'र' के रूप में गुजराती में कोई खास परिवर्तन नहीं है। 'ळ' के 'ग' रूप में चले 'ख' या नागरी के 'अ' का निकटवर्ती आकार जाने से 'ळ' के लिए 'ल' रूप रखा गया है। प्रयुक्त हुआ है। 'ल' 'व' में ठीक 'ग' 'घ' का परिवर्तन मात्राओं के प्रयोग में केवल ह्रस्व उकारान्त के [ १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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