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हैं। भाव चित्रों के कलाकार मुनि कुन्दनमलजी और मुनि दुलीचन्दजी का नाम प्रधानता से लिया जाता है
बिना रंग पीछी के मात्र कर्तरिका द्वारा कागज को काटकर विविध चित्र बनाने की प्राचीन प्रथा है। ज्ञानभण्डारों एवं हमारे संग्रह में भी उसके उदाहरण विद्यमान हैं। वर्तमान में इस कार्य में निष्णात रामप्रसाद जड़िया और उनके शिष्यों में इस पद्धति की संरचना प्राप्त है ।
जैन चित्रकला में पहले शतावधानी पं० धीरजलाल शाह ने भी पर्याप्त कार्य किया। मुर्शिदाबाद के हीराचंदजी
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दूगड़ और उनके सुपुत्र इन्द्र दूगड़ भारत विख्यात् चित्रकार हैं। कलकत्ता के बड़े मन्दिर में इनके द्वारा आदिनाथ जीवनी समवतरण व दादावाड़ी में दादा साहब की जीवनी का चित्र लगा है। गोकुलदास कापड़िया ने भगवान महावीर की जीवनी चित्रावली रूप में प्रस्तुत कर बड़ा ही प्रशंसनीय कार्य किया है। जसवंतसिंह बोथरा. जवरचन्द दसाणी और गणेशजी ललवानी आदि ने भी चित्रकला में प्रशंसनीय योगदान दिया है । आशा है प्राचीन और नवीन चित्रकला के क्षेत्र में नये चेहरे आकर जैन चित्रकला को उन्नति के शिखर पर आरूढ़ करेंगे ।
श्री केशरिया जी तीर्थ - चित्रकार गणेश मुसव्वर
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