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________________ परम्परा के पं० महिमोदय द्वारा लिखित है। गौतम रास की प्रति में १२ पद्मासन व १ खङ्गासन चित्र की प्रति है । द्रौपदी चौपई की प्रति के १९ वें पत्र में सुभूम उद्यान का सुन्दर चित्र है । चन्द्रलेहा चौपाई में २६ सुंदर चित्र हैं । मृगाइलेखा चौपाई की प्रति में ५५ चित्र सं० १७७४ के हैं । संघयणी की प्रति में भी १८६९ में चित्रित पचासों सुन्दर चित्र हैं। चंदन मलयागिरि चौपाई की भी कई सचित्र प्रतियाँ मिलती हैं। एक गुटकाकार प्रति हमारे संग्रह में भी है। चंद राजा के रास की सचित्र प्रतियां भी मिलती है। बीकानेर में हंसराज वच्छराज चौ० की दो प्रतियां एवं मृगांव लेखा चौ० की एक प्रति एवं विक्रमादित्य खापरा चोर चौ० की एक प्रति मथेरण आसाराम चित्रित वैदर्भी चौपाई की सं० १८४६ की एक प्रति मथेरण जयकिशन चित्रित प्रतियाँ पीपाड़ के श्रीजयमल ज्ञानभंडार में हैं। वहाँ और भी कई चित्रित पट एवं संग्रहणी सूत्र की सचित्र प्रतियाँ, चंद्रलेहा चौ० की सं १८३३ की सचित्र प्रतियाँ है। बीकानेर के मथेरण अखेराम जोगी दासोत ने सं० १८०१ में बीकानेर के चित्रों का विज्ञप्ति पत्र तैयार किया जो श्री जिनभक्ति सूरि को राधनपुर भेजा गया था। इस प्रकार विभिन्न ज्ञानभंडारों व संग्रहों मैं मधेरण आदि कलाकारों द्वारा चित्रित प्रतियाँ प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं । सचित्र विज्ञप्ति पत्र जैन समाज में गुरुजनों को आमन्त्रणार्थ विज्ञविपत्र भेजने की प्राचीन प्रथा है। इनमें दो प्रकार थे, एक तो खण्डकाव्य मय गद्य-पद्य अलंकारिक चित्र काव्य युक्त और दूसरे नगर के मानचित्र युक्त हमारे संग्रह में सं० १६०४ से १६११ के बीच का ऐसा ऐतिहासिक महत्वपूर्ण विज्ञतिपत्र है। सचित्र विज्ञप्निपत्रों की विधा बड़ी ही महत्वपूर्ण है। पांच दस फुट से लगा कर सौ-सौ फुट लंबे विज्ञप्तिपत्र उपलब्ध हैं । शाही चित्रकार शालिवाहन द्वारा चित्रित आगर से श्रीविजयसेन 988] Jain Education International सूरिजी को प्रेषित विज्ञप्तिपत्र का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । हमारे संग्रह में उदयपुर का डेढ़ सौ वर्ष प्राचीन विज्ञ ते पत्र ७२ फुट लंबा है जिसमें वहाँ के सभी ऐतिहासिक स्थान एवं राणाजो, उनके महल, पीछोला तालाब, श्रीपूज्यजी व राणाजी की सवारी, काप साहब आदि के सुन्दर विशद् चित्र हैं। बीकानेर के बड़े उपाश्रय में १०८ फूट लंवा विज्ञप्तिपत्र बीकानेर चित्रकला का अप्रतिम उदाहरण है जिसमें वहाँ के भाण्डासर जी चिन्तामणिजी आदि मन्दिर व वड़ा उपाश्रय आदि के हूबहू सुन्दर चित्र लगभग १५० वर्ष प्राचीन है। इसी प्रकार जयपुर, जोधपुर, मेड़ता, सीरोही लखनऊ जैसलमेर आदि नगरों के वीसों महत्वपूर्ण सचित्र विज्ञप्ति - पत्र हैं। डा० हीरानन्द शास्त्री के सम्पादित एक ग्रन्थ में उसका सचित्र प्रकाशन हुआ है । अव भी बीसों विज्ञप्ति पत्र अप्रकाशित उपलब्ध हैं। ये सब टिप्पणकाकार ( Scroll ) मिलते हैं। जैनेतर शैली के भी क्वचित् उपादान उपलब्ध हैं। हमारे संग्रह में एक वैष्णव शैली का है व बद्रीनारायण यात्रा का उल्लेख ऊपर आया ही है। पटना के श्री राधाकृष्ण जी जालान के संग्रह में ऐसी ही बौद्ध कथा वस्तु का चित्रित टिप्पणक देखा था । कलकत्ता के आशुतोष म्यूजियम जोधपुर म्यूजियमपूरणचंद जी नाहर के संग्रह में कलकत्ता की नित्य विनय मणिजीवन जैन लायब्रेरी में ऐसे जैन विज्ञप्ति पत्र संग्रहीत है। इसी लायब्रेरी में राजवल्लभ शिल्प शास्त्र के नक्शों सहित लंबा टिप्पणक है । उपर्युक्त बीकानेर विज्ञप्निपत्र भाण्डासर जी के मन्दिर के गुम्बज में भी चित्रित भित्तिचित्र के रूप में देखा जा सकता है। तीर्थादि के विशाल चित्र जयपुर के तहबीलदारों के रास्ते में रहने वाले गणेश मुसव्वर चित्रकार के बनाये हुए चित्रकला सौष्ठव की दृष्टि से बड़े ही मूल्यवान और संख्या में भी प्रचुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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