SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाहन की कलम द्वारा चित्रित हैं। अठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी में मथेरणों द्वारा चित्रित प्रतियाँ पर्याप्त परिमाण में उपलब्ध है। जैन यति-साधुओं में शास्त्रलेखन की प्रथा तो थी ही। उसी के संदर्भ में भौगोलिक आदि विषयों के प्रतिपादन हेतु संग्रहणी, क्षेत्रसमास जैसी कलापूर्ण प्रतियों की बड़ी-बड़ी प्रतियाँ भी पर्याप्त परिमाण में लिखी गई। बाद जैन ग्रन्थों का अधिकांश लेखन-चित्रग वे ही करने लगे। ये लोग जैन ग्रन्थों के चित्र, चौवीसियाँ, भित्तिचित्र एवं लक्ष्मी, गणेश आदि विविध प्रकार से लोकिक चित्र भी निर्माण करने लगे जिससे इनकी चित्र शैली में लोक कला शैली का उन्मेष हो गया। उसी मथेरग शैली में जैन ग्रन्यादिक लेखन-चित्रण होने लगा । मुगल कला के प्रभाव से वेश-भूषा एवं शैली में आमूल परिवर्तन आ गया । अपभ्रश शैली लुप्त होकर मिश्रित शैली का विकसित रूप राजस्थान की विविध शैली राजपूत कलम, उस्ता कलम, आदि में क्षेत्रीय परिवर्तन के साथ प्रचलित हो गई। श्री नाहरजी के संग्रह के इस काल के कल्पसूत्रादि के चित्रों में यह प्रभाव सुस्पष्ट परिलक्षित होता है। शाही दरबार में रहने वाले जहांगीर के चित्रकार उस्ता शालिवाहन जैसे कलाकारों से भी समृद्धि शाली जन श्रावकों ने चित्र निर्माण कराये । वाबू बहादुरसिंहजी सिंघी. कलकत्ता के संग्रह की शालिभद्र चौपई की मूल्यवान प्रति उसी के द्वारा चित्रित है। इस प्रति में जिनराजसूरि, जिनरंगसूरि, लावण्यकीर्ति मुनि एवं चित्र कराने वाले नागड़ गोत्रीय सा० भारमल्ल व राजपाल के सं० १६८१ में चित्रित ७ चित्र हमने जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि में प्रकाशित किये हैं। सं० १८५२ की प्रति के जिनराजसूरि जिनरंगसूरि के चित्र को हमने ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में दिया था। शालिवाहन ने न केवल जैन कथावस्तु को चित्रित किया था पर उसके चित्रित किया हुआ श्री विजयसेनसूरिजी को आगरा संघ द्वारा दिया हुआ विज्ञप्तिपत्र भी अपने आप में कला और इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है। राजस्थानी और गुजराती का प्रचार अधिक होने से रास, चौपई, चौढालिया, चौबीसी आदि की रचनाएं भी प्रचुर परिमाण में हुई । इन रचनाओ में सर्वश्रेष्ठ व बहु प्रचलित कृतियों की अधिकाधिक और सचित्र प्रतियाँ भी लिखाई जाने लगी। उपर्युक्त शालिभद्र चौ० का प्रचार हुआ। उसकी उपर्युक्त शालिवाहन चित्रित प्रति के पश्चात् अनेकों प्रतियाँ पाई जाती हैं। कलकत्ता के श्री पूरणचंद्र जी नाहर के संग्रह में मथेरण रामकृष्ण द्वारा सं १८२६ में चित्रित प्रति है जिसे बीकानेर में चित्रित की थी। इसी रामकृष्ण के पुत्र मथेरण जयकिशन द्वारा सं १८२५ में चित्रित ४७ चित्रों वाली प्रति हमारे संग्रह में है । बीकानेर के वृहत् ज्ञान भंडार, श्रीपूज्यजी के संग्रह, महोपाध्याय विनयसागर जी के संग्रह में भी इसकी उल्लेखनीय सुन्दर प्रति है। अंजना संदरी चौपाई ४३ चित्रों वाली सं १६८९ साचौर में रचित प्रति नाहर जी के संग्रह में है जिसे बीकानेर में मथेरण अभेराम ने चित्रित किये था। श्री जिनराजसूरि चौबीसी के अतिरिक्त नाहर जी के संग्रह में सुदर्शन चौपाई (४१ सुन्दर चित्र ), शालिभद्र चौ० के १३ चित्र पूरे पृष्ठ के, सिंहलसुतत्रियमेलक रास की २९ चित्रों वाली मथेरण सूरतराम चित्रित प्रति. मानतुंगमानवती चौ० की २८ चित्रों वाली सं १८४७ की मथेरण जयकिशन चित्रित प्रति सम्यक्त्वविचार-नवतत्व बाला० की प्रति में पहले भ० महावीर का चित्र व बीच में व हाँसिये में विविध सुन्दर चित्र है, जो सं० १७१२ पटना में जिनमाणिक्यसरी इसी शालिवाहन चित्रकार के द्वारा चित्रित मदनकनार श्रे० च० की एक प्रति सं० १६६७ में दयासमुद्र रचित अहमदाबाद के विजय नेमिसूरि ज्ञान भण्डार में है । यद्यपि इस महत्त्वपूर्ण अज्ञात प्रति में नाम व तिथि नहीं है किन्तु उमाकान्त प्रेमानन्द शाह के अनुसार यह शालि [ १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy