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________________ वश्यं दैत्य दानव भूत प्रेत मोगा क्षेत्रपाल खवीस पिशाच डाकिणी साकणी संहारी अन्येपि दुष्ट देव देविय बंध मोहय मोहय सर्व वश्यं कुरु स्वाहा अहरीक्षा मम गच्छ स्वजन संबंधी मम श्रावक श्राविका परिग्रह सुखं कुरु कुरु स्वाहा ।। श्री पूरणचन्दजी नाहर के संग्रह में भी अनेक प्रकार के चित्रपट हैं । ढाई द्वीप पट, नंदीश्वर द्वीप पट, रामायण के पट, ही कार पट. नेमि बरात, वर्द्धमान विद्या पट सोलहवीं शती से लेकर उन्नीसवीं शती तक के हैं। तपागच्छ वंशवृक्ष १० फुट लंबा और ४२ इच चौड़ा है जो सं०१८९० का है और उसमें अहमदाबाद के सेठ शांतिदास के वंशज सेठ वखतचंद आदि के नाम हैं। देता है. यह नील वर्ण का है। इस चित्र पट की पृष्ठभूमि लाल है और भगवान के जलपूर्ण चित्र कक्ष के दोनों ओर तीन-तीन देवियाँ व सामने पार्श्वयक्ष तथा वाम पार्श्व में दाढ़ीवाला अश्वारोही भाला लिये खड़ा है। प्रभु के आगे तक नागराज के शरीर का अधौभाग फेला हुआ है। सामने वेदी के बाँयें तरफ एक श्रमण और दाहिनी ओर एक भक्त बैठा है। निम्न भाग में ९ ग्रह. नागराज और देवी की प्रतिमा है। प्रभु के ऊपर तीन छत्र हैं जो एक ऊपर और दो बराबर हैं। दोनों ओर टोडों पर दाढ़ी वाले व्यक्ति कमलनाल लिए अवस्थित हैं। प्रभु के दोनों ओर वाह्यभाग में दो-दो कक्ष हैं जिनमें प्रथम कक्ष में दाहिनी ओर गजारूढ़ अंकुश, पाश लिए फगमण्डित धरणेन्द्र व वाम पार्श्व में पद्मावती देवी की रक्तवर्णा खड़ी प्रतिमा है। दोनों और फिर दो चामरधारिणी अवस्थित है। अहिछत्ता वीर्थ के चारों कोणों में शत्रुजय, गिरनार, आबू और सम्मेतशिखर महातीर्थ हैं। पहाड़ों पर चढ़ते हुए यात्री परिलक्षित हैं । सम्मेतशिखरजी के जलमन्दिर में साधु और श्राविकाएं खड़े हैं। शत्रुञ्जय तीर्थ पर दोनों शिखरों के प्रतीक दो मन्दिर और पांच पाण्डव प्रतिमाए' दिखाई हैं। गिरनारजी की पहली टंक और आव तीर्थ के तीन मन्दिर दिखाए हैं अतः खरतरवसही का निर्माण चित्रपट बनने से पूर्व हो गया था। अपभ्रंश चित्र शैली का यह सुन्दर चित्रपट साराभाई के संग्रह में है। ___मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में अमट्टे यंत्र पट है जिसमें ह्रीं कार के बीच श्री पार्श्वनाथ भगवान विराजित हैं। इसमें अनेक देव-देवियों के सुन्दर चित्र हैं । आराधक मुनिराज भी सामने करबद्ध बैठे हैं। यह पट ई० सन १४०० के आसपास का होना अनुमानित है। एक और वर्द्धमान विद्या का यंत्रपट है जो श्री जिनमंडन गणि के लिए निर्मित है । इसके मध्य स्थित ह्रीं कार में एक चित्र है और सभी घरों में मंत्राक्षर लिखे हैं। यह भी मुनिपुण्यविजयजी के संग्रह में है। श्री साराभाई मणिलाल नवाब ने श्री सूरिमंत्र कल्प सन्दोह व जैन चित्रावली आदि में कतिपय पट प्रकाशित किए हैं जो महत्वपूर्ण होने से यहाँ परिचय कराना आवश्यक है। (१) पंचतीर्थी पट-शत्रुजय, गिरनार, आबू. सम्मेत शिखरादि का यह पट पन्द्रहवीं शताब्दी का बना हुआ है । इसके मध्य स्थित पार्श्वनाथ भगवान सहस्रफगा जल कमल के मध्य पद्मावतौ शीर्षस्थ ध्यानावस्था का चित्र है जो तीर्थ अहिछत्ता का कमठोपसर्ग मालूम (२) सरिमंत्रपट-यह चित्र लाल रंग की पृष्ठ भूमि में बना हुआ मुगलकालीन है । मध्य में षट्कोण के बीच ह्रीं कार में जिन प्रतिमा है। बाहर के चार वलयों में नामयुक्त कोष्ठक हैं। बाद के वलय में आठ जिन प्रतिमाए' और तदुभय पक्ष में देवी-देवता हैं। उसके बाद के वलय में चौवीस तीर्थकर अपने-अपने वर्ण में चित्रित हैं। वलय से बाहर चारों कोनों में देवियाँ हैं, दाहिनी ओर ऊपर चतुर्भुजी, नीचे महालक्ष्मी और वाम पार्श्व [ १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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