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भूमि है जिसपर चारों कोनों में चार बड़े-बड़े चित्र बने हुए हैं। दाहिनी ओर ऊपरि भाग में नीले रंग के आसन पर धरणेन्द्र विराजमान हैं जिसके बाँए गोड़े के नीचे गजवाहन ।
और चारों हाथों में अंकुश, बीजोरा, कमलनाल और मुद्रा युक्त न्यास मालूम देता है। धरणेन्द्र के मस्तक पर सप्तफण मण्डित स्वर्ण मुकुट युक्त है। कुण्डल. हार व हाथों-पैरों में भी आभरण हैं । धोती लाल बूटीदार व उत्तरीय के काली बूटी व पत्र-युक्त हाथों में लहरा रहा है। बाँयीं और ऊपर में देवी का चित्र बना हुआ है जिसकी चार भुजाए हैं। दो हाथों में कमलनाल जेसी वस्तु है। देवी के स्वर्ण मुकुट व हार आदि सुशोभित हैं। देवी का घाघरा नीली चौकड़ी के मध्य बूटीदार व ओढणा लाल रंग की बूटीवाला है। नीचे बिछे हुए आसन पर देवी विराजमान है और बाँये गोडे के नीचे नीले बटे की छींट मण्डित प्रतोल्याकार-सा वस्त्रखण्ड बन गया है। पैरों में भी देवी ने आभूषण पहने हुए हैं और उनके सामने गोल चन्द्राकार जैसा कुछ है और नीचे एक उड़ता हुआ पुरुषाकार गरुड़ जैसा दिखाया है जो उसका वाहन है।
प्रयुक्त हुई है। इसे जिनभद्रसूरि युग की शैली का मानने के अनेक कारण हैं । यह चित्रपट हमारे कलाभवन में स्थित है।
(8) ही कार पट-यह पट ३४||३४|| इच समचौरस मिल के वस्त्र पर बना हुआ सौ वर्ष प्राचीन है और चारों ओर उलटा कर मशीन से सिलाई किया हुआ है । इसके मध्य में ह्रींकार माया बीज में चौवीस तीर्थंकरों के चित्र बने थे जो नष्ट प्रायः हो गए । सभी जिनबिम्बों के नीचे नाम लिखे हुए हैं। सामने दोनों दादा श्री जिनदत्तसूरिजी व श्री जिनकुशलसूरिजी विराजमान हैं। दूसरी ओर भी श्री जिनदत्तसूरिजी थे, चित्र नष्टप्रायः है । ह्रीं कार वलय के बाहर सात वलय
और हैं जो स्वर्णमय हैं और सभी कोष्ठ को लिखे हुये नाम नष्ट हो गए हैं। उपरि भाग में दाहिनी ओर खड़े धरणेन्द्र और वाम पार्श्व में देवी पद्मावती सिंहासन पर विराजित हैं जिसके समक्ष वाहन कुक्कुट अवस्थित है। निम्न भाग में गोरा भैरव और काला भैरव के खड़े सुनहरे चित्र हैं पर दोनों के पास श्वान वाहन काले रंग की रेखा चित्र हैं । ह्रींकार वलय के चतुर्विंग वर्तलाकार साढ़े तीन लाल लाइनों का घेरा बना हुआ है। चारों ओर लाल धारी के बीच बेल-बूटे हैं।
वलयाकार ही के नीचे के दोनों कोनों में दो देव बने हुए हैं जिसके समक्ष वाहन रूप में श्वान अवस्थित हैं। दोनों के सिर पर एक जैसा छत्र है एवं एक वस्त्र परिधापित है। दोनों मृगचर्म पहने हैं और लाल छापे का बूटेदार उत्तरीय लहरा रहा है। दोनों देव चार मुजावाले हैं, हाथों में डमरू, खप्पर, ढाल जैसी बस्तु धारण की हुई है। संभव है कि ये दोनों भैरव क्षेत्रपाल हों । वाम पार्श्व स्थित भैरव के सम्मुख एक वेदी जैसा भद्रासन बना हुआ है।
(५) कलिकुण्ड महाप्रभावक यंत्र-यह पट भी उपयुक्त ह्रीं कार पट जैसा ही समकालीन निर्मित है । मध्य में षडकोणाकृति के मध्य चतुष्कोण में पार्श्वनाथ भगवान की हरित वर्ण की प्रतिमा है । इसके नीलवर्ण की पृष्ठ भूमि है और स्वर्ण का पूरा उपयोग हुआ है । उभय पक्ष में चामरधारी अवस्थित हैं। धरणेन्द्र पद्मावती आदि के अन्य कोष्ठकों में नाम भी लिखे हुये हैं । इस वलय के बाहर दो और वलय हैं जिनके रंगीन काष्ठों में नाम थे। इस पट के चारों ओर यंत्र का नाम आलेखित है। एक कोने में निम्नोक्त लेख है।
ऊँ ह्रीं श्रीं कलिकुण्ड श्री पाश्वनाथ दुष्ट दुर्जन
इस पट के सभी चित्र बड़े सुन्दर और अपभ्रश चित्र शैली के उत्कृष्ट नमूने हैं। इसमें देव-देवियों के नाम लिखे हुये न होने से अनुमान से ही लिखा है । इसकी पृष्ठ भूमि लाल है और अपभ्रंश मध्य काल की पन्द्रहवीं शती की शैली विदित होती है। अक्षरों में पड़ी मात्रा
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