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________________ में ऊपर सिंहवाहिनी नीचे के कोण में गजवाहिनी हैं. दोनों ही षोडशभुजी हैं। ऊपर से नीचे तक उभय पक्ष में सूरिमंत्र गत देव देवियाँ और उनके प्रतीक वने हुए हैं । ऊपरि भाग में तोरण के उभयपक्ष में चार हाथ वाले गजारूढ़ देव और निम्नभाग में एक और गुरु पादुका, मध्य में आठ कलश व दूसरी ओर विराजित हैं। यह पट साराभाई के संग्रह में है। आराधक (३) वर्द्धमान विद्या पट- यह खरतरगच्छ आम्नाय का १६ वीं शती के प्रारंभ का चित्र पट है । इसके मध्य में भगवान महावीर विराजित हैं, उनके परिकर में दोनों ओर उपरिभाग में कलशधारी और मातंग यक्ष, ब्रह्मशांति यक्ष एवं सिद्धायिका व एक और देवो है । नीचे के दोनों ओर कक्ष में किन्नरियां नृत्य-वाजित्ररत हैं एवं तन्निम्न भाग में नौ ग्रहों के चित्र हैं जिनके ऊपर वर्द्धमान विद्या लिखी हुई है। प्रशस्ति में लिखा है कि वर्द्धमान विद्या देवता जयसागरोपाध्याय शि० रत्नचन्द्र शि० भक्तिलाभो - पाध्यायस्य सपरिवारस्य शांति-तुष्टि करें। यह पट पं० अमृतलाल भोजक के संग्रह में है। (४) सूरिमंत्र गर्मित वृहद्ध सिद्धचक्र पट- यह मुगल कालीन चित्रपट है जिसके मध्यवर्ती नवपदमंत्र के सात वलयों में सूरिमंत्र के अधिष्ठायक चित्र यंत्र व नवनिधि आदि चित्रित है। चारों द्वार वातायनों के उभयपक्ष में चामरधारी खड़े हैं एवं चारों कोगों में हाथी, वृषभ, अश्व, मृग पर बैठे मातंग, ब्रह्मशांति आदि देव हैं जिनके हाथ में भिन्न-भिन्न आयुध हैं और आगे-पीछे परिचारक हैं जिनके हाथों में मोरछल, चामर, भाला, नेजा आदि वस्तुएँ है सब की वेश भूषा पर मुगल प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित है। यह पट साराभाई के संग्रह में है। (५) सूरिमंत्रपट - यह राजपूत कलम का अलंकरण विहीन चित्र पट है। इसमें पट्कोण के मध्य गौतम स्वामी हैं जिनके उभय पक्ष में हाथी और चामरधारी हैं। चारों कोणों में सरस्वती, लक्ष्मी, मातंग यक्षादि चित्रित हैं। १३८ ] Jain Education International निम्न भाग में बाजोट पर साधु और सामने श्रावक बैठा है। उनके ऊपर 'श्रीमुनिसुन्दरसूरिगुरुभ्यो नमः' लिखा है। (६) सूरिमंत्र गर्मित संतिकर स्तोत्र यंत्र पट- यह पट सिद्धचक्र की भाँति वृत्ताकार बना हुआ है । मध्यस्थित पट्कोण पर अर्हत भगवान और ऊपर नीचे चतुर्दिग लक्ष्मी आदि देव-देवी व मंत्र लिखित है। मध्य के वलय में संतिकर स्तोत्र व बाहरी वलय के कक्ष में मंत्रादि लिखे हुए हैं। सूरिमंत्र के पांच पीठों के देव श्रुतदेवता, त्रिभुवनस्वामिनी, लक्ष्मी, गणपिटक यक्षराज, नबग्रह आदि चित्रित हैं। (७) ऋपिमण्डल वृहद यंत्र-यह चित्रपट लाल पृष्ठभूमि पर बना हुआ बड़ा सुन्दर है। इसके मध्य के वलय में ही कार है जिसमें चौबीस तीर्थंकर बने हैं। बाद में (१) बीजाक्षर ३५ का वलय (२) मातृकाक्षर (३) आठ मंत्राक्षरों का है फिर अष्टदल कमल का वलय है जिसमें ९ ग्रह हैं। चारो कोणों में दश दिग्पाल, धरणेन्द्र, पद्मावती, सरस्वती, लक्ष्मी, अम्बिका क्षेत्रपाल व गौतम स्वामी के चित्र हैं। निम्न भाग में नव निधि कलश हैं। वामपार्श्व में आराधक मुनि विराजित हैं। सोलहवीं शती का यह सुन्दर चित्रालंकरण युक्त व रंग की चटक भी अच्छी है। (८) मंत्राधिराज चिन्तामणि यंत्र-यह चित्र भी उपर्युक्त चित्र की भाँति पन्द्रहवीं शती का सुन्दर चित्र है। इसकी लाल पृष्ठभूमि है. मध्य में श्री पार्श्वनाथ भगवान है और धरणेन्द्र पद्मावती भी खड़े हैं। दो वलयों मैं अष्टदल है'। बाहरी भाग में नव ग्रह, नव निधान, दस दिग्पाल, सरस्वती, लक्ष्मी त्रिभुवनस्वामिनी, क्षेत्रपाल, ब्रह्मा इन्द्र आदि हैं। चित्रों के पास सूक्ष्माक्षरों में नाम लिखे हैं। "ही" के घेरे को 'क्रों' में लाकर शेष किया गया है । (९) शत्रुंजय तीर्थयात्रा पट - पाटण के संघवी पाड़ा के भण्डार में सं० १४९० में आये हुए यात्री संघ के चित्रों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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