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________________ 'श्री पार्श्व यक्ष:' लिखा हुआ है। पाश्वं यक्ष का सारा वर्ण हरित रंग का है। यक्षराज के हाथों में नकुल, पाश, वीजोरा आदि परिलक्षित हैं । ऊपरी भाग के उभय पक्ष में गोल हरित पृष्ठ भूमि में गुलाबी कमल बने हुए हैं । इनके आगे और मयूर के पृष्ठ भाग में तथा सामने मयरी के पृष्ठ भाग में दो व्यक्ति चित्रित हैं जिनके मस्तक पर श्याम केश और तन्मध्य गुलाबी रंग की खूप लगी है। एक की धोती लाल रंग की व उत्तरीय नील रंग का है। दूसरे की धोती काले रंग की व उत्तरीय लाल रंग का है। दोनों व्यक्ति व्योम स्थित होने से उनके उत्तरीय हवा में लहरा रहे हैं। चित्रपट के ऊपरि भाग में वाम पार्श्व के चित्र में "श्री वैरुट्या देवता" लिखा है। देवी का वर्ण नील है. चारों हाथों में माला आदि धारण किये हैं। देवी का मुख-मण्डल एक चश्म हैं. नेत्र दोनों दिखाए हैं। देवी का अवशिष्ट चित्र पूरा है और मुख ह्रीं कार की ओर है । देवी का आकर्षक मुख-मण्डल का तीखा नाक और चिबुक भी सुन्दर है । यह चित्र अपभ्रश शैली के कल्प- सुत्रादि सुप्रसिद्ध जैन कला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। देवी के वस्त्र गुलाबी और साड़ी का रंग गुलाबी और कुछ भाग पीत वर्ण का है। ऊपरि भाग में गुलाबी रंग को छींट का चंदोवा और उभय पक्ष में मोतियों की माला के फंदेयुक्त लटकल है। देवी के पृष्ठ भाग में प्रभा-मण्डल के घेरे की गोल रेखाएं हैं। होकर "क्रों" बीजाक्षर आलेखन में परिणत हो गया हैं। पट के निम्न भाग में सामने दाहिनी ओर भद्रासन पर आचार्य प्रवर श्री तरुणप्रभसूरिजी महाराज विराजमान हैं । गौरवर्ण वाले आचार्य देव अपने हाथ में मुख के सामने मुखवस्त्रिका किये हुए बैठे हैं । इनका दाहिना . गोड़ा सिंहासन पर व वाँया पांव नीचे किया हुआ है। सूरिजी के बगल में रजोहरण पड़ा है और शरीर पर पतली-सी चादर ओढ़ी हुई है । चोलपटा नीचे पाँवों तक दिखाया गया है। सिंहासन पर अष्टापद-सिंह व हाथी आदि के चित्र तीन लाल चक्रों में काली रेखा से चित्रित है। आचार्य श्री के मस्तक पर काले केश हैं एवं दाढ़ी-मूंछ का केश लंचन किया हुआ है । सूरिजी के सम्मुख भाग में काले रंग के डण्डे वाली ठवणी पर ताडपत्रीय ग्रन्थ व स्थापनाचार्यजी स्थापित हैं जिन पर फूल-पत्तीदार वस्त्र झिलमिल ढंका हुआ है और उभय पक्ष में नीचे फंदे लटक रहे हैं। ताड़पत्रीय ग्रन्थ के जरीदार वीटांगणे (वेष्टन) का स्वर्णिम रंग बहुत कुछ उतर गया है। सिंहासन के दोनों पायों का रंग उड़ गया है पर सामने पीले रंग की चित्रित फलदार पट्टी है । आचार्य श्री के समक्ष छोटे बाजोट पर नीचे शिष्य अवस्थित है जिसके दोनों हाथों में विज्ञप्तिपत्र का लंबा टिप्पणक खोल कर पढ़ते हुए दिखाया मालूम देता है। वलव वलय के उभय पक्ष में दो व्यक्ति चामरधारी काली दाढ़ी वाले अवस्थित हैं । ये एक हाथ ऊँचा किये चामर की डांडी पकड़े हुए हैं। चामर का रंग उड़ गया है। इन पुरुषों में एक के नील रंग की वूटेदार धोती व लाल रंग का बूटेदार उत्तरीय है । दूसरे के लाल बूटे की धोती व नील रंग का उत्तरीय धारण किया हुआ है। इनके गले में हार, हाथों में वलय व पैरों में भी नुपूर पहने हुए हैं। वाम पावस्थित पुरुष के नीचे वलय का लालघेरा समाप्त चित्रपट के वाम पार्श्व में सामने सिंहासन पर कोई वाचनाचार्य या उपाध्याय विराजित हैं जिनके दोनों पाँव सिंहासन के नीचे हैं। जोड़े हुए दोनों हाथों के बीच मुखवस्त्रिका एवं बगल में रजोहरण धारण किया हुआ है और वे चैत्र वन्दन करते हुये प्रतीत होते हैं । इनके आगे नीचे वाजोट पर एक शिष्य बैठा हुआ है जो इसी प्रकार हाथ जोड़े हुए चैत्यवन्दन मुद्रा में है । मध्यवर्ती रिक्त स्थान को कमल के चित्रों द्वारा सुशोभित बनाया गया है। १३४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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