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एक चश्म प्रतिमाएँ हैं ।
त्रिपुरा यंत्रादि अनेक प्रकार के यंत्रमय चित्रपटादि बनाकर अपनी पूजा में रखते थे। ब्रह्म देश की सीमा पर स्थित मणिपुर में वस्त्रपट पर चित्रित काम बहुत सस्ते में होता था। कई बन्धुओं ने वहां के चित्रपटों पर जैन चित्र अंकित करवाये हैं। गुरुजनों के पृष्ठभाग में लगाए जानेवाले पूठिये व चंदोवों पर भी जरी, कलाबत्त. तारा-सलमा व कारचोबी के कामवाले जिनमें मोती व जवाहिरात प्रचुरता से लगे हैं ऐसे पट तीर्थकर, गणधर, समवसरण, सिद्धचक्र और इन्द्रादिदेव व श्रीपाल मैनासुन्दरी के भाव वाले आज भी प्रचुर परिमाण में बनवाये जाते उपलब्ध हैं।
अब कतिपय महत्त्वपूर्ण चित्रपटों का परिचय दिया जा रहा है
भगवान पार्श्वनाथ के चतुर्दिग पाँच वलय हैं जिनकी श्वेत पृष्ठभूमि पर एक-एक कोष्ठक एक-एक नाम स्वर्गाक्षरों से लिखित है । मध्यवलय में भगवान के उभयपक्ष में धरणेन्द्र पद्मावती खड़े हुए हैं । दाहिनी
ओर धरणेन्द्र के मस्तक पर श्याम सर्प एवं ठेठ पूरे पाँव तक लंम्बी धोती पहनी हुई है जिसके बूटे व किनारी नीले रंग की है। उत्तरीय वस्त्र के बूटे व किनारी लाल रंग की है। उत्तरीय का डर बाहर तक निकला हुआ है। प्रभु के बाएँ पाश्र्व में पद्मावती देवी का जो चित्र है उसका मुखमण्डल का रंग उड़ गया है किन्तु देवी रक्तवर्णा है। वस्त्रों की अजंकृति सुन्दर बेलबूटों से युक्त है। देवी पद्मावती विविध प्रकार के आभरणों से सुसज्जित है।
इस चित्र पट के सुरक्षित न रहने से प्रथम वलय के सभी नाम उड़ गए हैं. इसमें आठ कोष्ठक हैं। द्वितीय वलय भी आठ कोष्ठकमय है। "ॐ उवज्झायाणं ह्रीं नमः" तथा "ॐसर्वसाहूणं ह्रीं नमः" दिखाई देते हैं। तीसरे वलय में काली, महाकाली, अच्छुप्ता आदि षोडश विद्यादेवियों
के नाम लिखे हैं । चतुर्थ वलय में चौबीस तीर्थंकरों की - माताओं के नाम, पंचम वलय में चारों दिशाओं-ऊपरि भाग में अग्नि, दाहिनी ओर ईशान, वामपार्श्व में नैऋत
और निम्न भाग में वायु लिखा है । अवशिष्ट वलयों में विजया, जयन्ती, वरुण, जंभा, कुबेर, वीरा आदि के नाम लिखे हैं । उपरि भाग के ह्रीं कार से साढ़े तीन आँटे लगाये हुए हैं. ये सभी लाल रंग के हैं।
(१) श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ पट—यह पट वर्तमान में प्राप्त सभी वस्त्रपट चित्रों में प्राचीन है। यह १९४१८ इंच परिमित है। खादी के वस्त्र पर घोटाई करने के अनन्तर रंगीन व रेखा चित्रों के अनूठे सम्मिश्रण से इस चित्रपट का निर्माण हुआ है। इसके मध्यवर्ती वलय में श्रोपार्श्वनाथ भगवान की श्वेत परिकर के मध्य हरितवर्णी प्रतिमा चित्रित है। भगवान सप्तफगमण्डित हैं । इस वलय की परिधि का भीतरी भाग लगभग छः इंच का है। भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के स्वर्ण व मुक्तालंकार परिधापित मुकुट, कर्णफूल, भुजबंद, श्रीफल, कण्ठहार व मोतियों की लड़ें व हार आदि सुशोभित हैं। भगवान के नेत्र वड़े आकर्षक व सुन्दर हैं । भालस्थल पर तिलक के स्थान पर हीरों से जड़ी हुई गोल टीकी है जिसके चतुर्दिक, लालरंग का घेरा माणिकजटित प्रतीत होता है। पद्नासनस्थ प्रमाणोपेत प्रतिमा के निम्नभाग में आसन पर सर्प का लांछन अलंकृत चित्र है । परिकर श्वेत संगमरमर का है। जिसका तोरण भाग प्रायः नष्ट- सा हो रहा है । अपरि भाग में दो दैठी हुई व नीचे उभय पक्ष में खड़ी हुई परिचारक इंद्र की मुकुटबद्ध एक-
__ इस चित्रपट के अवशिष्ट भाग की पृष्ठभूमि लाल रंग को है जिसमें ही कार के उभय पक्ष में मयर और मयूरी चित्रित हैं । मयूर का चित्र सुन्दर है और उसकी चोंच में माला धारण की हुई है. मयरी का चित्र लुप्तप्रायः है।
चित्रपट के दाहिने कोने में ४-५ इच परिमित पार्श्व यक्ष का सुन्दर चित्र है जिस पर काली स्याही से
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