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________________ पड़ी । पूर्वी भारत में बंगाल की कला का प्राचीन चित्रकला में तो नहीं पर आधुनिक जैन चित्रकला में उसका विकास और आदान-प्रदान विशाल रूप में हो गया । जोनपुर के कल्पसूत्रादि के चित्र भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन सभी शैलियों के चित्र विभिन्न रूपों में संप्राप्त हैं । तीर्थ में श्रीपाल चरित्र उल्लेखनीय हैं। दिल्ली नौघरा के मन्दिर में स्नात्रपूजादि के प्राचीन चित्र हैं। आधुनिक चित्र भी ऊपर पर्याप्त सुन्दर बने हैं। रंगीन कांच के टुकड़ों के चित्र भी आजकल अच्छे बनते हैं । नाकोड़ा तीर्थ में शान्तिनाथ चरित्र के एवं फलौदी पार्श्वनाथ जी में पार्श्वनाथ भगवान के मवों की पूरी जीवनी चित्रित है। वस्त्रपट चित्रकला दक्षिण भारत में पर्वत गुफाओं का आधिक्य होने से वहाँ के भित्तिचित्र चिरकाल तक टिके रहे पर उत्तर भारत में ईट-चूने की दीवालों पर नवनिर्माण नई शैली (फैशन) के मोह में एवं कलागत अनभिज्ञतावश बहुत से भित्तिचित्र तिरोहित हो गये । उनका स्थान आधुनिक प्राकृतिक दृश्यों व जापानी टालियों व अंग्रेजो फैशन ने ले लिया। अतः भित्ति चित्रों में प्राचीन शैली के उदाहरण क्वचित् ही मिलते हैं । फिर भी गुजरात-राजस्थान के मन्दिरों में कहीं-कहीं बच पाये हों तो सौभाग्य की बात है । नागौर के दिगम्बर जैनमन्दिर में एक विशाल तीर्थयात्रा का भित्ति चित्र देखा गया जो दो शती पूर्व का अवश्य है। गिरनारजी पर हेमचन्द्राचार्य जी का प्राचीन चित्र देखा स्मरण में आता है। कली पर बने हुए भित्तिचित्रों की प्रथा में कमी आ जाने पर भी कहीं-कहीं देखी जाती है । आधुनिक भित्ति चित्र कला तेल चित्रों से बड़ी ही विकसित और समृद्ध रूप में सर्वत्र संप्राप्त है । इसमें इतनी अधिक विविधता है कि दर्शक उसका अनुमान करते ही चकित हो जाता है । श्रीपाल चरित्र, तीर्थकर चरित्र, महापुरुषों के चरित्र, दादागुरुओं के विभिन्न चित्रित भाव, तीर्थों के चित्र, सतियों के चित्र आदि एक प्रकार के बीसों चित्रों के सेट चित्रित हैं । गत शताब्दी में यह चित्रकला पर्याप्त उन्नत हुई है। बीकानेर के भाण्डासरजी के महावीर स्वामी के मन्दिर में उस्ता मुरादबरश के हाथ से बने हुये भित्ति चित्र हैं । इसके पुत्र हसामदीन में भी अपने कुशल चित्रकार पिता की विरासत परिलक्षित है । मन्दिरों व दादाबाड़ी में पर्याप्त चित्र पाये जाते हैं। चम्पापुरी भित्ति चित्रों के पश्चात् वस्त्रपटों की चित्रकला का कुछ परिचय कर या जाना आवश्यक है। वस्त्रपट पर बने चित्रों के अनेक प्रकार हैं। इनमें नन्दीश्वर द्वीप, लोकनालपट, ढाई द्वीप के पट, जम्बूद्वीपपट, अष्टदोपपट, चौदह राजलोक पट. पंचतीर्थपिट. शत्रुजयपट, गिरनारपट, सूरि मंत्रपट, विजय यंत्र पट, वर्तमान विद्यापट, सिद्धचक्र नवपद यंत्र पट, चिन्तामणि पाश्वनाथ पट, कलिकुण्ड मंत्र पट, विंशति स्थानक पट, ऋषिमण्डल पट, नामिऊण मंत्र पट, अट्ट-मट्टे मंत्र पट, नेमिनाथ बरात पट, समवशरण पट, ह्रीं कार पट, चौवीस तीर्थकर पट, ज्ञानबाजी, क्षेत्रसमास, कर्मप्रकृति, तीर्थयात्रा पट, विज्ञप्ति पत्र. जन्म पत्रिका टिप्पणक, सचित्र पंचाङ्ग टिप्पणक, अनानुपूर्वी, जिनालय पट, चतुर्दश महास्वप्न, अष्ट मांगलीक आदि संख्याबद्ध चित्रपट गत छः-सात सौ वर्षों में बने हुए प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं। कतिपय जैन ग्रंथ भी वस्त्र पट पर लिखे हुए संप्राप्त हैं. इनमें पत्राकार और टिप्पणकाकार ( Scroll ) भी हैं। यतः-कच्छूलीरास, धर्मविधिप्रकरण. कर्मप्रकृति, बारहव्रतरास. ओसवाल. वंश के गोत्रों की वंशावलियाँ, आगम आलापक आदि में कुछ हमारे संग्रह में भी चार-पाँचसौ वर्ष प्राचीन संप्राप्त हैं। कलकत्ता के सुप्रसिद्ध शीतलनाथ जिनालय में स्तोत्रादि वस्त्र पट पर लिखे हुए दवालों में कांच के अन्दर जड़े हुए हैं । तंत्रयुग में अनेक यतिजन हनुमानपताका, पंचांगुली, रावणपताका. घण्टाकर्ण, १३२ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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