SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिरुप्पत्तिक्कुण्रम् स्थित वर्तमान मन्दिर के संगीत मण्डप के जैन चित्र उल्लेखनीय हैं। इनमें कतिपय आरंभिक काल के और अधिकांश परवर्ती काल के चित्र हैं। यह मण्डप वुक्कराय द्वितीय के जैन मंत्री इरुगप्प ने बनवाया था। अतः इसके चित्र चौदहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण के हैं। इन चित्रों का विषय भगवान् महावीर के जीवन वत्त से सम्बन्धित है। भगवान् के जन्मोत्सव के सम्पूर्ण भाव अभिषेक पर्यन्त बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। उत्तरकालीन सोलहवीं-सतरहवीं शती के चित्र भी ऋषभदेव, महावीर, नेमिनाथ व उनके भ्राता श्रीकृष्ण के जीवन से सम्बन्धित सुदीर्घ चित्रमालाओं का सविस्तार अंकन है। इनके साथ तमिल भाषा में लिखे शीर्षक-चित्र परिचय रहने से इस स्वस्थ परिपाटी का महत्त्व अत्यधिक हो गया है। चिदम्बरम् . तिरुवल्ल र आदि स्थानों में भी तमिल, तेलग भाषा में प्राप्त शीर्षक युक्त चित्र अपने आप में एक गौरवपूर्ण अस्तित्व रखते हैं। इस प्रकार दक्षिणात्य कला का धारा प्रवाह शताब्दियों तक चला आया है जिसमें जैनधर्म-जैनकला का उल्लेखनीय योगदान रहा है। कलकत्ता के स्व० श्री पूरणचंदजी नाहर के संग्रह में एक ७४२१ फुट का विशाल चित्रपट है जिसमें श्रवण बेलगोला स्थित गोम्मटेश्वर बाहुबलीजी के सम्पूर्ण चित्र चित्रित हैं। एक ४||४|| साइज के समवसरण काले रंग से चित्रित मध्य स्थित गंधकुटी में हैं । वस्त्रपटों पर चित्रित और भी चित्रपट दक्षिण भारत के हम्पी आदि स्थानों में देखने में आये हैं। तिरुप्पत्तिक्कुण्रम् के महावीर जिनालय में अंकित चित्र के ऊपरिकक्ष में भगवान ऋषभदेव के समक्ष लोकान्तिक देव के दीक्षा समय सूचनार्थ निवेदन और निम्न कक्ष में भगवान के दीक्षार्थ अभिनिष्क्रमण का भाव चित्रित है। एक दूसरा चित्र भगवान ऋषभदेव के वैराग्य और कच्छ-महाकच्छ के आख्यान युक्त चित्रित है। निम्नकक्ष में नमि-विनमि के चारित्र व ऋषभदेव स्वामी के चरणों में अवस्थिति युक्त है। तीसरे चित्र का ऊपरिकक्ष नमि-विनमि के अभिषेक समारोह और निम्नकक्ष में ऋषभदेव प्रभु की चर्या से सम्बन्धित चित्राङ्कित है। महावीर स्वामी के मन्दिर में ऋषभदेव चरित्र के अतिरिक्त एक चित्र में कृष्णलीला के विविध दृश्यों से मुखरित उभय कक्ष है। इन चित्रों में अनेक सामाजिक चित्र, रीतिरिवाज, स्वागत परक मांगलिक उपादान, नृत्य . वाजित्रोपकरण युक्त अनेक प्रकार के चित्राङ्कन हैं। उत्तर भारत की चित्रकला दक्षिणापथ की चित्रकला का विहंगावलोकन करने के पश्चात् आइये, हम उत्तर भारत की जैन कलाशैली में चित्रित उपादानों की ओर भी दृष्टिपात करें। वस्तुतः कला पक्ष में जेनों का भारत को कितना अवदान है इस का लेखा-जोखा कर पाना अति कठिन है । उत्तर भारत की चित्रकला में गुजरात और राजस्थान की जो अनुपमदेन है वह केवल भारत में ही नहीं विश्व के कोने-कोने में विश्रत और प्रशंसा प्राप्त है । इसकी अनेक विधाएँ हैं । भित्तिचित्र, काष्ठ-ताड़पत्रादि, वस्त्रपट एवं कागज व कूटेपर अत्रस्थ कलाकारों की सुकुमार पीछी शताब्दियों से चलती आई है। और वह अन्य देश-प्रान्तीय धाराओं में मिश्रित हो कर नवीन कलाशैली के रूप में उद्भूत हो गई है। यही कारण है कि गुजरात की शैली में भी प्रदेशगत विभिन्नताएं एवं राजस्थानी चित्रशैली में भी बीकानेर, जयपुर, किशनगढ़, जैसलमेर, नागौर, कोटा, दी. उदयपुर, नाथद्वारा, जोधपुर आदि की शैली भिन्नभिन्न परिलक्षित होने लगी। विदेश से आये हुये कलाकारों में ईरान, पर्शिया आदि की कला व पंजाव. काँगड़ा आदि की कला शैली के विभिन्न उन्मेष आकर मिले । मुगलकला, बुंदेलकला व अपभ्रंशकालीनकला सभी धाराएं इस प्रकार मिलने के साथ-साथ लोककला के सम्मिश्रण से मथेरण जैन चित्रकला शैली भी निकल [ १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy