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________________ कंसावती नदी के तट पर बंधे हुए बाँध के पास पारसनाथ नामक गाँव था। गाँव के स्थान पर सरकार की ओर से बाँध का काम चालू था, इसीलिए गाँव वालों के कथनानुसार हमें आशा थी कि वहाँ जाने के लिये सरकारी ट्रकों द्वारा जाने-आने की सुविधा मिल जायेगी पर जब हम गौरावाड़ी की कालोनी में उतरे, सभी आफिस शायद शनिवार या अन्य किसी कारण से बन्द थे। हमें एक विद्यार्थी और एक महिला का अच्छा साथ मिल गया जो अपने-अपने गाँव जा रहे थे। हम पैदल ही उनके साथ चल पड़े। मध्याह्न का समय था । विद्यार्थी ने हमें तीन चार मील साथ चलकर जहाँ बाँध का सरकारी आफिस था. पहुँचा दिया और उसने अपने गाँव का मार्ग पकड़ा। बाँध के पास पहाड़ी र्ट ले पर सरकारी आफिस था। पारसनाथ गाँव का तो नाम शेष हो गया पर वहाँ आफिस के पृष्ठ भाग में हमने एक शिव मूर्ति, नन्दी और कुछ प्रस्तर खण्ड देखे । इसी पहाड़ी पर भगवान् पार्श्वनाथ की एक विशाल प्रतिमा के बारे में जो दो टुकड़ों में विभक्त थी, वहाँ वालों ने हमें बतलाया । यह प्रतिमा परिकर में चौबीसी प्रतिमायें, बिम्ब निर्माता युगल और धरणेन्द्र-पद्मावती युक्त थी। सिंहासन में सिंह और हंस के आकार मी परिलक्षित थे । वहाँ के आफिसरों के साथ उस प्रतिमा के फोटो लिये और एक मार्ग बताने वाले मजदूर को साथ लेकर हमने अम्बिका नगर का मार्ग पकड़ा। जाते समय तो कड़कड़ाती धूप में कहीं-कहीं ही क्षणिक बादलों की छाया मिल पाती थी किन्तु लौटते समय सारा आकाश मेघाच्छन्न हो गया और जोरों से तूफान चलने लगा । हम तूफान की शीतल हवा का आनन्द लेते हुए शीघ्र गति से चलते रहे पर जव बर्षा प्रारम्भ हुई तो हमें सड़क के पास ही एक ग्राम्य स्कूल का बरामदे वाला खाली कमरा मिल गया, जिसमें हमने तत्काल आश्रय ग्रहण कर लिया । पाँच दस बटोही और भी आकर बैठ गये । यह तो संतोष की बात थी। यदि जंगल में यह स्थान न मिलता तो बड़ी दुर्दशा होती, अस्तु । जब वर्षा तूफान बन्द होकर आसमान साफ हो गया तो हम लोग कंसावती और कुमारी नदी के संगम पर बसे अम्बिकानगर में नदी को पार कर जा पहुंचे । अम्बिकानगर, अम्बिका देवी के मन्दिर के कारण प्रसिद्ध है। मन्दिर के पुजारी महोदय को हमने बुलवा कर मन्दिर खुलवाया । इसके शिलालेख से विदित हुआ कि इस मन्दिर का जीर्णोद्धार सन् १३२० में ता०१६ फाल्गुण को राजा राइचरण धवल ने रानी लक्ष्मीप्रिया देवी की स्मृति में कराया था । वस्त्र परिधान युक्त देवी के स्वरूप प्रतिमा लक्षणादि का हम ठीक-ठीक आकलन न कर सके पर यह खड़ी हुई मूत्ति है और जैन शासनदेवी अम्बिका मूर्ति से अभिन्न कथंचित् भिन्न शैली की परिलक्षित हुई । ___ अम्बिकानगर में अम्बिका मन्दिर के पृष्ठ भाग में एक जन मन्दिर अवस्थित है. जिसमें थोड़ा अन्धेरा पड़ता था पर उसमें प्रतिष्ठित-अवस्थित भगवान आदिनाथऋषभदेव स्वामी की सपरिकर प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर है। प्रभु के पृष्ठ भाग में तोरण हैं जो समवसरण के तोरण का प्रतीक है और प्रभामण्डल भी कलापूर्ण है ! भगवान के मस्तक पर जटा केशविन्यास अत्यन्त सुन्दर है । सिंहासन के नीचे वृषभ लांधन स्पष्ट है। प्रभु प्रतिमा प्रायः करके अखण्ड और अत्यन्त मनोज्ञ है । अम्बिका मन्दिर के दाहिनी ओर चौकी पर कुछ शिल्पाकृति-गोवर्द्धन और कुछ लिपि वाला प्रस्तर भी पड़ा था। हमें जल्दी लौटना था अतः अम्बिकानगर के मिष्ठान्न भण्डार से कुछ मिष्ठान्न और जल लेकर हम नदी पार होकर बाँकुड़ा जाने वाली बस में आकर बैठ गये । यथासमय बाँकुड़ा पहुँचकर धर्मशाला में निवास किया । बाँकुड़ा की धर्मशाला बड़ी विशाल है। रहने की सब प्रकार की सुविधाएं है। सोने के लिये खटिया उपलब्ध हो जाती है. जिसकी आमदनी से पारावत-कबूतरें दाना चुगते हुये निर्माताओं. अनुमोदकों, व्यवस्थापकों की पुण्य [ १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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