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वन्दनीय सुरेन्द्रगण के सर्वज्ञाता आप हैं। संसार तारक सिद्धि दाता तीन जग के नाथ हैं। दुख उदधि में डूबता मेरी सुरक्षा कीजिए। करुणा समुद्र सुदृष्टि कर सुपवित्रता मुझ दीजिए ||४||
हे जिनवरेन्द्र ! अटूट श्रद्धा-प्रेम-भक्ति भाव से। । मुख कमल रोमांच पूरित अनिमिष दृष्टि जमाव से ॥ लक्ष्य पूर्वक भव्य जन स्तवना करें विधि सहित जो। प्रभु बिंब निर्मल शक्ति दाता करे विरहित दुरित जो ॥४३||
हे नाथ ! मैं तब चरण का तुच्छ भक्त हूँ चिरकाल से। यदि भक्ति-संचित-फल मिले माँगं शरण प्रतिपाल से । जन्म-जन्मान्तर में मेरे आप ही स्वामो बनें। और नहीं कुछ कामना यह प्रार्थना मेरी सुनें ।।४२॥
भक्त जन के नेत्र रूपी कुमुद विकसितकार हैं। विमल चंद्र अत्यन्त सुन्दर और रहित विकार हैं ।। स्वर्ग की ऋद्धि अमित वे सम्पदाए' भोग कर।। कर्ममल से रहित सत्वर सिद्ध होवं मुक्ति वर ॥४४||
।। इति श्री कल्याणमन्दिर स्तोत्र हिन्दी पद्यानुवाद संपूर्णम् ।।
भगवान पार्श्वनाथ व शान्तिनाथ
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