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टिप्पणक, अवचूरि, अवचूर्णि, विषम पद व्याख्या, विषम पद पर्याय आदि विविध नामों से संबोधित किया जाता है।
१०. जैनागमादि पर गुजराती, मारवाड़ी. हिन्दी आदि भाषाओं में जो अनुवाद किया जाता है, उसे स्तबक टबा या टवार्थ कहते हैं। विस्तृत विवेचन बालावबोध कहलाता है।
११. मूल जैनागमों की गाथाबद्ध विषयानुक्रमणिका विषय वर्णनात्मक गाथाबद्ध प्रकरण को एवं कितनी ही बार प्राकृत-संस्कृत मिश्रित संक्षिप्त व्याख्या को भी संग्रहणी
नाम दिया जाता है।
इस निबन्ध में श्वेताम्बर ज्ञान भण्डारों के अनुभव के आधार पर प्राप्त सामग्री पर प्रकाश डाला गया है । दिगम्बर समाज के ज्ञान भण्डार व लेखन सामग्री पर अध्ययन अपेक्षित है । श्वेताम्बर समाज में विशेषकर मन्दिर आम्नाय के साहित्य पर विशेष परिशीलन हुआ है । आगमप्रभाकर परम पूज्य मुनिराज श्री पुण्यविजय जी महाराज की “भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला" निबन्ध पर आधारित यह संक्षिप्त अभिव्यक्ति है।
पर्यषण पर्व में कल्पसूत्र की शोभायात्रा
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