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________________ पारिभाषिक शब्द : निर्मित और कलापूर्ण निर्मित कर काम में लाया है । ग्रन्थों को जैसे ठण्ड से बचाते थे वैसे धूप से भी बचाया जाता था। स्याही में गोंद की अधिकता हो जाने से ग्रन्थ के पन्ने परस्पर चिपक कर थेपड़े हो जाते हैं जिन्हें खोलने के लिए प्रमाणोपेत साधारण ठंड पहुंचा कर ठण्डे स्थान में रख कर धीरे-धीरे खोला जाता है और अक्षरादि नष्ट हो जाने से भरसक बचाने का प्रयत्न किया जाता है। ग्रन्थ और ग्रंथभण्डार से सम्बन्धित व्यक्ति को इन बातों का अनुभव होना अनिवार्य है। प्रस्तुत निबन्ध में अनेक जैन पारिभाषिक शब्दों. उपकरणों आदि का परिचय कराया गया है फिर भी कुछ पारिभाषिक शब्दों का परिचय यहां उपयोगी समझ कर कराया जाता है। १. हस्तलिखित पुस्तक को प्रति कहते हैं जो प्रतिकृति का संक्षिप्त रूप प्रतीत होता है। २. हस्तलिखित प्रति के उभयपक्ष में छोड़े हुए मार्जिन को हांसिया कहते हैं और ऊपर नीचे छोड़े हुए खाली स्थान को जिह्वा या जिब्मा-जीभ कहते हैं । ३. हांसिये के ऊपरी भाग में ग्रन्थ का नाम, पत्रांक, अध्ययन, सर्ग, उच्छवास आदि लिखे जाते हैं जिसे हुण्डी कहते हैं। ४. ग्रन्थ की विषयानुक्रमणिका को वीजक नाम से सम्बोधित किया जाता है। ग्रन्थों की रक्षा के लिए प्रशस्ति में लिपिकर्ता निम्नोक्त श्लोक लिखा करते थे जलाद्रक्षेत् स्थलाद् रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबन्धनात् । मूर्खहस्ते न दातव्या एवं वदति पुस्तिका ॥१॥ अग्ने रक्षेत् जलाद रक्षेत् मूषकेभ्यो विशेषतः । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन प्रतिपालयेत् ।।२।। उदकानिलचौरेभ्यः मूषकेभ्यो हुताशनात । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन प्रतिपालयेत् ॥३।। इत्यादि ज्ञानपंचमी पर्व: ज्ञान की रक्षा और सेवा के लिए ज्ञान पंचमी पर्व का प्रचलन हुआ और इसके माध्यम से ज्ञानोपकरणों का प्रचुरता से निर्माण होकर ज्ञानभण्डारों की अभिवृद्धि की गई। ज्ञान पंचमी पर्वाराधन के बहाने ज्ञान की पूरी सार-संभाल होने लगी। उद्यापनादि में आए हुए मूल्यवान चन्दवे-पुठिये, झिलमिल वेष्टन आदि विविध वस्तुओं को आकर्षक और समृद्धिपूर्ण ढंग से सजाये जाने लगे। ज्ञान की वास्तविक सार-संभाल को भूल कर केवल बाह्य सजावट में रचे-पचे समाज को देख कर एक बार महात्मा गांधी जैसा सात्विक वृत्ति वाले महापुरुष को कहना पड़ा कि "यदि चोरी का पाप न लगता हो तो मैं इस ज्ञान उपादानों को जैन समाज से छीन लूं क्योंकि वे केवल सजाना जानते हैं. ज्ञानोपासना नहीं।" अस्तु । ५. पुस्तकों के लिखित अक्षरों की गणना करके उसे ग्रन्थान तथा अन्त में समस्त अध्यायादि के श्लोकों को मिलाकर सर्व ग्रन्थ या सर्वग्रन्थाग्रन्थ संख्या लिखा जाता है। ६. मूल जैनागमों पर रची हुई गाथाबद्ध टीकाओं को नियुक्ति कहते हैं । ७. मूल आगम और नियुक्ति पर रची हुई विस्तृत गाथाबद्ध व्याख्या को भाष्य या महाभाष्य कहते हैं । भाष्य और महाभाष्य सीधे मूलसूत्र पर भी हो सकते हैं। यों नियुक्ति, भाष्य और महाभाष्य ये सब गाथावद्ध टीका ग्रन्थ होते हैं । ८. मूल सूत्र, नियुक्ति, भाष्य और महाभाष्य पर प्राकृत-संस्कृत मिश्रित गद्यबद्ध टीका को चूणि और विशेष चूणि नाम से पहचाना जाता है । ९. जैनागमादि ग्रन्थों पर जो छोटी-मोटी संस्कृत व्याख्या होती है उसे वृत्ति, टीका, व्याख्या. वार्तिक, १०७ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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