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३. आकारान्त 'काना' दर्शक चिन्ह-यह अक्षर के आगे की मात्रा 'I' छूट गई हो वहां अक्षर के ऊपर दी जाती है।
१०. विभाग दर्शक चिन्ह-ऊपर दिए गये सामान्य पदच्छेद चिन्ह से डबल लाइन देकर सम्बन्ध, विषय या श्लोकार्द्ध की परिसमाप्ति पर यह लगाया जाता है ।
४. अन्याक्षर वाचन दर्शन चिन्ह-यह चिन्ह लिखे गए अक्षर के वदले दूसरा अक्षर लिखने की हालत में लगाया जाता है। जैसे 'श' के वदले 'ष', 'स' के बदले 'श', 'ज' के बदले 'य', 'प' के बदले 'क्ष' आदि। यत-सत्रु-शत्र, खट् =पट्, जज्ञ-यज्ञ. जात्रा-यात्रा आदि ।
११. एक पद दर्शक चिन्ह-एक पद होने पर भी भ्रान्ति न हो इसलिए दोनों ओर ऊपर खड़ी लाइन लगा देते थे। यत-'स्यात्पद' एक वाक्य को कोई स्यात्
और पद अलग-अलग न समझ बैठे इसीलिये वाक्य के दोनों ओर इसका प्रयोग होता था।
५. पाठ परावृत्ति दर्शक चिन्ह-अक्षर या वाक्य के । उलट-पुलट लिखे जाने पर सही पाठ बताने के लिए अक्षर पर लिख दिया जाता है । यत-'वनचर' के बदले 'वचनर' लिखा गया हो तो वचनर शब्द पर चिन्ह कर दिया जाता है।
१२. विभक्ति वचन दर्शक चिन्ह-यह चिन्ह अंक परक है । सात विभक्ति और सम्बोधन मिलाकर
आठ विभक्तियों को तीन वचनों से संवद्ध-सूचन करने के लिये प्रथमा का द्विवचन शब्द पर १२. अष्टमी के वहुवचन पर ८३ आदि अंक लिख कर निर्धान्त बना दिया जाता था । संवोधन के लिए कहीं-कहीं 'है' भी लिखा जाता था।
१३. अन्वय दर्शक चिन्ह-यह चिन्ह भी विभक्ति वचन को चिन्ह की भाँति अक लिख कर प्रयुक्त किया। जाता था, ताकि संशयात्मक वाक्यों में अर्थ भ्रांति न हो। श्लोकों में पदों का अन्वय भी अकों द्वारा दतला दिया जाता था ।
६. स्वर सन्ध्यंश दर्शक चिन्ह-यह चिन्ह सन्धि हो जाने के पश्चात् लुप्तस्वर को बताने वाला है। इन चिन्हों को भी ऊपर और कभी नोचे व अनुस्वार युक्त होने पर अनुस्वार सहित भी किया जाता है । यत55/555 इत्यादि।
७. पाठ भेद दर्शक चिन्ह-एक प्रति को दूसरे प्रति से मिलाने पर जो पाठान्तर, प्रत्यन्तर हो उसके लिये यह चिन्ह लिख कर पाठ दिया जाता है ।
८. पाठानुसंधान दर्शक चिन्ह--टं हुए पाठ को हांसिए में लिखने के पश्चात् किस पंक्ति का वह पाठ है यह अनुसंधान बताने के लिये ओ० पं० लिख कर ओली. पंक्ति का नंबर दे दिया जाता है।
१४. टिप्पणक दर्शक चिन्ह-यह चिन्ह सूत्रपाठ के भेद-पर्याय आदि दिखाने के लिए वाक्य पर चिन्ह करके हांसिए में वही चिन्ह सहित पर्यायार्थ या व्याख्या लिख दी जाती थी।
१५. विशेषण-विशेष्य सम्बन्ध दर्शक चिन्ह-दूर-दूर रहे हुए शब्दों का विशेषण-विशेष्य आकलन करने के लिए ये चिन्ह कर देने से प्रवुद्ध वाचक तत्काल संबंध को पकड़ लेता, समझ सकता है।
१६. पूर्वपद परामर्शक चिन्ह-ये चिन्ह दुरुह हैं। तर्क शास्त्र के ग्रन्थ में वार-बार आने वाले तत् शब्द को अलग-अलग अर्थ-द्योतक बताने के लिए व्यर्थ के टिप्पण
९. पदच्छेद दर्शक चिन्ह-आजकल की तरह वाक्य । शब्द एक साथ न लिखकर आगे अलग-अलग अक्षर लिखें जाते थे, अतः शुद्ध पाठ करने के लिये ऊपर खड़ी लाईन का चिन्ह करके शब्द अक्षर पार्थक्य बता दिया जाता है।
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