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७. नग, अग, भूभृत, पर्वत, शैल, अद्रि, गिरि, (पर्वत वाचक शब्दावली), ऋषि, मुनि, अत्रि, वार, स्वर, धातु, अश्व, तुरग, वाह, हय, वाजिन् ( अश्व वाचक शब्द), छंद, धी, कलत्र, भय, सागर. जलधि, (समुद्र वाचक शब्द समूह), लोक इत्यादि।
८. वस, अहि, सर्प (सर्प वाचक अन्य शब्द भी), नागेन्द्र, नाग, गज, दन्तिन्, दिग्गज, हस्तिन्, मांतग, करि, कंजर, द्विप, करटिन, (हस्ति वाचक शब्द), तक्ष, सिद्धि, भूति, अनुष्टुव, मंगल, मद. प्रभावक, कर्मन, धी गुण, बुद्धि गुण, सिद्ध गुण इत्यादि ।
९. अंक, नन्द, निधि, ग्रह, खग, हरि, नारद, रंध्र, ख, छिद्र, गो, पवन, तत्व, ब्रह्मगृप्ति, ब्रह्मवृत्ति, ग्रैवेयक इत्यादि।
१०. दिश (दिशा, आशा, ककुभ, दिशा वाचक शब्द), अंगुली, पंक्ति, रावणशिरस, अवतार, कर्मन्, यतिधर्म, श्रमणधर्म, प्राण इत्यादि ।
११. रुद्र, ईश्वर, हर, ईश, भव, भर्ग, शूलिन, महादेव, पशुपति, शिव (महादेव वाचक शब्द), अक्षौहिणी इत्यादि।
१२. रवि, सूर्य, अर्क, मार्तण्ड, द्य मणि, मानु, आदित्य, दिवाकर, दिनकर, उष्णांशु, इन, ( सूर्य वाचक शब्दावली ), मास, राशि, व्यय, चक्रिन, भावना, भिक्षु, प्रतिमा, यति प्रतिमा इत्यादि।
१३. विश्व, विश्वदेवा, वाम, अतिजगतो. 'अघोष, क्रियास्थान, यक्ष इत्यादि ।
१४. मनु, विद्या, इन्द्र, शक्र, वासव, ( इन्द्र वाचक शब्द), इत्यादि।
१७. अत्यष्ठि । १८. धृति, अब्रह्म, पापस्थानक इत्यादि । १९. अतिघुति । २०. नख, कृति इत्यादि । २१. उत्कृति, प्रकृति, स्वर्ग । २२. कृति, जाति, परिषह इत्यादि । २३. विकृति । २४. गायत्री, जिन, अर्हन इत्यादि । २५. तत्व । २७. नक्षत्र, उडु, भ । ३२. दंत, रद इत्यादि ।
३३. देव, अमर. त्रिदश, सुर इत्यादि। ४०. नरक । ४८. जगती। ४९, तान । ६४. स्त्री कला । ७२. पुरुप कला।
यहां दी गई शब्द सूची में कितनी ही वैकल्पिक हैं, अतः किस प्रसंग प्रयोग में कौन सा चालू अंक लेना है यह विचारणीय रहता है ।
रंध्र, ख और छिद्र का उपयोग शून्य के लिये हुआ है और नौ के लिये भी हुआ है । गो एक के लिये व नौ के लिये भी व्यवहृत हुआ है । पक्ष दो के लिये व पन्द्रह के लिये भी व्यवहृत हुआ है । इसी प्रकार श्रुति दो के लिये व चार के लिये, लोक और भुवन तीन, सात और चौदह के लिये, गुण शब्द तीन और छः के लिये, तत्त्व तीन, पाँच, नौ और पच्चीस के लिये, समुद्र वाचक शब्द चार और सात के लिये तथा विश्व तीन, तेरह और चौदह के लिये व्यवहत देखने में आते हैं । पुस्तक लेखन :
ताड़पत्रीय ग्रन्थ-छोटे साइज के ताडपत्रीय ग्रन्थ को दो विभाग ( कॉलम) में एवं लम्वे पत्रों पर तीन कॉलम में लिखा जाता था । विभाग के उभय पक्ष में एक डेढ़ इंच का हांसिया (मार्जिन) रखा जाता था । बीच के हांसिया में छिद्र करके डोरा पिरोया जाता था ताकि पत्र अस्त-व्यस्त न हो। पत्र के दाहिनी ओर अक्षरात्मक पत्रांक एवं बायीं तरफ अंकात्मक पत्रांक लिखे जाते थे। कितनी ही प्रतियों में उभय पक्ष में एक ही प्रकार के अंक लिखे मिलते हैं । बीच में छिद्र करने के स्थान में तथा कई प्रतियों में किनारे के हांसिये में भी हिंगुली का
१५. तिथि, घस्र, दिन, अहन, दिवस (दिवस: वाचक शब्द ), पक्ष, परमाधार्मिक इत्यादि ।
१६. नृप, भूप, भूपति, अष्टि, कला, इन्दुकला, शशिकला इत्यादि ।
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