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उपर्युक्त तालिका के अनुसार इकाई, दहाई और सैकड़ों के
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यह ताडपत्रीय पत्रांक लेखन पद्धति कागज पर लिखे ग्रन्थों पर चली आती थी किन्तु कई कागज की प्रतियों
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अंक का उपयोग इस प्रकार किया जाता था
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त्रिशती नामक गणित विषयक संग्रह ग्रन्थ में जैन 'अंके' रूप में एक से दस हजार तक के अक्षरांक लिखे हैं। उपर्युक्त तालिका में आये हुए एक से तीन सौ तक के अंकों के पश्चात् अधिक की तालिका यहां दी जाती है
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में इकाई, दहाई, सैकड़ों के संकेत न व्यवहृत कर केवल इकाई अक्षरांकों का भी व्यवहार हुआ है। यथा
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इत्यादि
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९०००
१०००० इति गणितसंख्या जैनाङ्गानां समाप्ता ।
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