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________________ पांचवी श्रेणी तक शिक्षा प्राप्त करने वाले साहित्य साधक श्री भंवरलालजी नाहटा ने अब तक हजारों शोधपूर्ण ऐतिहासिक, साहित्यिक. धर्म, दर्शन आदि सम्बन्धी रचनाएँ केवल लिखी ही नहीं है अपित भारत की उच्च कोटि को पत्र-पत्रिकाओं में विशिष्ट स्थान भी पा चुकी है। आपने इतिहास की गहराइयों को जहां छआ है वहां पुरातत्व की बारीकी से भी अछूते नहीं रहे। जिसके कारण आपने इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में जो कार्य किया वह निश्चित रूप से संग्रहणीय एवं अनूठा ही है। श्री भंवरलाल जी नाहटा द्वारा प्रकाशित, सम्पादित पुस्तकों व ग्रन्थों की लम्बी सूची भी है। अनेकों दुर्लभ ग्रन्थों का अनुवाद भी आपने किया है। कई पुस्तकों का आपने स्वर्गीय साहित्य तपस्वी नररत्न अगरचन्द जी नाहटा के साथ सम्पादन, अनुवाद एवं प्रकाशन भी किया है । साधारण शिक्षाप्राप्त धर्मप्रेमी श्री भंवरलाल जी नाहटा के पास विद्यालय की कोई डिग्री नहीं है लेकिन वे हिन्दी. गुजराती, बंगाली, राजस्थानी भाषा के साथ-साथ संस्कृत, पाली. प्राकृत. अपभ्रंश आदि भाषाओं के ज्ञाता भी हैं। जिसके कारण आपने अपनी लेखनी से जैन साहित्य की अमूल्य सेवा की है। प्राचीन कलात्मक दुर्लभ सामग्री को संग्रहित कर आपने प्राचीन ऐतिहासिक वैभव का अनूठा संग्रहालय खड़ा कर दिया है जो भारतीय कला एवं संस्कृति के नये आयाम लिये हुये हैं। शांत स्वभावी, मधुरभाषी श्री भंवरलाल जी नाहटा पर लक्ष्मी का प्यार त है, सरस्वतो का दुलार भी है। धर्म आराधना एवं उपासना आपने अपने पूर्वजों से अर्जित कर रखी है। बीकानेर के नाहटा परिवार में साहित्य और कला उपासकों ने अपना नाम जगत - विव्यात कर रखा है साथ ही इसी गोत्र में धर्म आराधना, उपासना के लिये संसार के मोह माया के जाल से हटकर श्रमण संयम जीवन प्राप्त करने वालों को भी संख्या कमा नहीं है। यह मेरा मो सौभाग्य ही रहा है कि मैंने भी धर्मनिष्ठ परम आदरणीय श्री भंवरलाल जी नाहटा की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में विश्व-प्रेम प्रचारिका, समन्वय साधिका, जैन कोकिला, व्याख्यान मारती. जिनशासन प्रमाविका, समभाव धारिका प्रवत्तिनी स्वर्गीया विचक्षण जी म० सा० की शिष्या बनने का गौरव प्राप्त किया। मैं धर्म आराधक. साहित्य उपासक, कला प्रेमी, संस्कृति रक्षक, इतिहास के रचयिता, पुरातत्व के पंडित. आशुकवि श्री भंवरलालजी नाहटा को उनकी ७५ वीं वर्षगांठ पर किये जाने वाले अभिनन्दन पर उनके चिराय की मंगल कामना करती हुई जिनशासन देव से प्रार्थना करती हूँ कि आप साहित्य एवं सांस्कृतिक सेवा के साथ-साथ जैन शासन की अधिक से अधिक सेवा कर जन-जन में यशस्वी बनें। -चन्द्रप्रभाश्री एक प्रसिद्ध व्यवसायी होने पर भी आपके द्वारा जो साहित्य सेवा, समाज सेवा की गई है एवं की जा रही है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप का वाह्य परवेश-सादगी से परिपूर्ण किन्तु ज्ञान-साधना अति ऐश्वर्यपूर्ण है । निःसंकोच कहा जा सकता है-विद्वता के आप मूर्तरूप हैं। आपकी विद्वता को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है वह तो आप के सहस्रों लेखों, कविताओं, कहानियों में बिखरी पड़ी है-जिन्हें पाठक सहज अनुभव करते हैं। लिविज्ञान, भाषाशास्त्र में तो आप पारंगत हैं ही, किन्तु मूर्तिकला, चित्रकला. वास्तुकला. ललितकलाओं के भो पारखी हैं। इतिहास में विशेष गति तथा अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। अपने जीवनकाल में आपके द्वारा जो विशाल अध्ययन एवं ज्ञान सम्पदा से समाज को विभिन्न दिशाओं में मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है-वह सदैव अविस्मरणीय रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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