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ज्ञानपक्ष के साथ-साथ क्रियात्मक आचरण में भी आप नियमित अप्रमत्त हैं । धार्मिक आस्था का परिचय आपकी दैनिक प्रवृति देती है। इस समय स्व० अगरचन्द जी नाहटा जो आपके काकाजी थे उन्हें स्मरण किए बिना नहीं रह सकते । नाहटा परिवार में नाहटा बन्धद्रय ने जीवन में ज्ञान व आचरण का समन्वय रूप आदर्श उपस्थित किया है।
-मणिप्रभा श्री आज से ११ वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ के पंडरिया तहसील में संपन्न ग्रीष्मकालीन प्रांतीय जैन शिक्षण शिविर के समापन समारोह का श्री अगर चन्द जी नाहटा की अध्यक्षता व श्री भंवरलाल जी का मुख्य आतिथ्य पिला था। पश्चात् पिछले वर्ष दिल्ली वर्षावास के मध्य कुछ समय मुलाकात-वार्ता हुई।
उक्त अल्पकालीन सम्पर्क में यह अन्देशा किया कि आप वित्त व विद्या की संपन्नता के साथ-साथ विनम्रता विवेक, विश्वास, विलक्षणता की साकार प्रतिमा हैं। व्यवहार की सरलता है, वाणी में दृढ़ता है. वृद्धावस्था के बावजूद आपकी नशों में युवकों सी प्राणवत्ता है । यद्यपि युगप्रधान प्रथम दादा गुरुदेव जिनदत्तसू गोत्र नाहटा ही ना-हटा ( कत्र्तव्य के प्रति दृढ़ संकल्पी) का द्योतक है वही शोणित आपकी रग-रग में समाहित है।
निष्कर्षतः आपके अथक प्रयत्नों से विश्वसाहित्य को महत्वपूर्ण उपलब्धि हुई है। आपकी बुद्धि सरिता के मुहाने पर ज्ञान एवं कला का अद्वितीय संगम है फलस्वरूप वस्तु, शिल्प, मूर्ति, ललित चित्रकला के साथ ही इतिहास विज्ञान, अन्वेषणरुचिता, दुर्लभ भाषा, साहित्य तथा प्राचीन लिपियों के सहस्रोसहस्र गूढ़तम तथ्यों का रहस्योद्घाटन कर अनुपम अमूल्य निधि समर्पित की है जो पुश्त-दर-पुश्त आपकी चिर-स्मृति लिये साहित्य प्रेमियों को दिशाबोध कराती रहेगी। अभिनन्दन के इन क्षणों में शासनेश से प्रार्थना है कि श्रीयुत् नाहटा जी दीर्घ अवधि तक अपनी ज्ञान-प्रभा से जनमानस को आलोकित करते रहें। समाज पूर्वापक्षा उनसे अधिक लाभान्वित होकर एक दीप से हजारों दीप ज्योतित करे । यही मंगलकामना ।
-मनोहर श्री
' श्री नाहटाजी सा० पूर्वापेक्षा अधिक जिन साहित्य सेवा में अग्रसर हों और उन्हें गुरुदेव खूब सुयश प्रदान करें, यही शुभकामना है।
-साध्वी प्रधान अविचल श्री. विनीलाश्री. सुरंजनाश्रीआदि
संवत् १०८० से चला आ रहा खरतरगच्छीय वाङ्मय जो ज्ञान भंडारों में संग्रहित था, जिसकी जानकारी भी विद्वानों को नहीं थी उन ग्रंथों को प्रकाशन में लाने का कार्य श्रीमान् श्रेष्ठीवर्य अगरचंद जी नाहटा एवं भंवरलाल जी सा० नाहटा ने किया। हालांकि ये व्यावसायिक वणिक हैं , व्यापार धंधा इनके जीवन निर्वाह का साधन है फिर भी साहित्यिक रुचि अनुकरणीय, अनुमोदनीय व प्रशंसनीय है। इनकी साहित्य सेवा खरतरगच्छ जैन समाज के लिए अविस्मरणीय है। ये संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, मारवाड़ी आदि के ज्ञाता तो हैं ही साथ ही कवि भी हैं । महामहो. पाध्याय समयसुंदर जी, जिनहर्षगणि, जिनभद्र गणि, जिनप्रभसूरि, ज्ञान सागर उपाध्याय, जिनवर्धनसूरि आदि अनेकशः विद्वानों पर आपने शोधपूर्ण कार्य किये । जैन संस्कृति की सुरक्षा के लिए आप हमेशा तैयार रहे हैं । यहाँ तक कि मुझे भी शोध कार्य में निरन्तर प्रेरणा देते रहे हैं। आपके निर्देशन में 'खरतरगच्छीय साहित्य कोश' बनाने का संकल्प किया है। गुरुदेव से यही कामना है कि ऐसे साहित्य सेवी, कर्मठ कार्यकर्ता को दीर्णयु प्रदान करें।
-सुरेखाश्री
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