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________________ श्री नाहटा जी वस्तुतः एक चलता-फिरता पुस्तकालय हैं। उनकी स्मरण शक्ति तो अत्यन्त विलक्षण है। वर्षों पूर्व देखी. पढ़ी हुई सामग्री उनके मस्तिष्क में सम्प्रतिपर्यन्त ज्यों की त्यों है। उनके पास कोई निजी पुस्तकालय नहीं है, और न ही वे सामान्यतया पुस्तकालय का उपयोग करते हैं। उनका पुस्तकालय निजी है जो कि उन्होंने अपने मस्तिष्क में संजो रखा है। सचमुच श्री भंवरलाल जी नाहटा का ज्ञान-गांभीर्य अद्भुत है । यद्यपि उनके पास किसी विश्वविद्यालय की उपाधि / डिग्री नहीं है किन्तु उनकी तुलना महान् शिक्षाविदों से की जा सकती है। उनके ज्ञान को किसी उपाधि के अन्तर्गत आबद्ध नहीं किया जा सकता । सागर की अथाहता को थाहबद्ध करना अशक्य है। इतिहास हो या साहित्य, दर्शन हो या भाषा विज्ञान, पुरातत्व हो या अन्य कोई विषय-समग्रता का पुंज है नाहटा जी के व्यक्तित्व में । उनके ज्ञान-गाम्भीर्य तथा प्रज्ञा-प्रावीण्य को देखकर मैं तो सदैव उन्हें महापण्डित महोपाध्याय समझता हूँ । एक व्यवसायी होकर भी इतने विपुल ज्ञान के धनी होना उनके व्यक्तित्व की सर्वोच्च विशेषता है। -मुनि चन्द्रप्रभसागर श्री देवगुरु धर्म के अनन्य उपासक, जैन शासन-प्रभावक सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी, संस्कृत, प्राकृत, बंग, प्राचीन गुजराती, राजस्थानी भाषाओं के ज्ञाता, गुणानुरागी, जैन साहित्य की आध्यात्मिक, धार्मिक और ऐतिहासिक ज्ञान-धारा की त्रिवेणी के संगम, साथ ही उदात्त विचारों की निधि की खान, आदर्श श्रावक का प्रत्यक्ष जंगम बिम्ब, विनय की साक्षात् साकार प्रतिमा, सरलता का जीवित स्वरूप. निरभिमानता के मूर्तरूप, श्रीमान भंवरलालजी नाहटा का अभिनन्दन कर रहे हैं यह जानकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है । आपके इस आयोजन का भूरि-भूरि अनुमोदन करते हुये मैं भी मेरे इन धर्मस्नेही बन्धुवर के चिरायु होने की श्री गुरुदेव व शासनदेव से प्रार्थना करती हूँ कि श्रावकरत्न श्री नाहटा जी दीर्घायु हों और वे बचपन से जो साहित्य सेवा करते आ रहे हैं, उसमें विशेष संलग्न रह कर अप्रकाशित साहित्य का युगानुरूप संशोधनयुक्त प्रणयन अनुवाद करके भावी पीढ़ी को जैन साहित्य की ओर अभिमुख करें । उनकी सेवा का मूल्यांकन करना मेरी शक्ति के तो बाहर है। उन्होंने जो दुर्लभ ग्रन्थों की खोज कर विद्वत्समूह के सम्मुख रखा है और उन्हें सर्व साधारण के योग्य बनाया है. उसके लिये जैन समाज विशेषकर खरतरगच्छ तो कभी उऋण हो ही नहीं सकता। नाहटा बन्धओं का यह कार्य सदा के लिये विश्व में अमर रहेगा और स्वर्ण लिपि में निरन्तर लिपिबद्ध होता रहेगा । -प्रवत्तिनी आर्या सज्जनश्री साहित्य और कला के लिये राजस्थान प्रदेश का बीकानेर नगर विख्यात है। जिसकी गोद में एक नहीं अनेकों सरस्वती पुत्रों ने साहित्य साधना कर अपने नाम के साथ इस मरूभूमि को भी गौरवान्वित किया है। ऐसे ही साहित्यकारों की श्रेणी में नाहटा बन्धुओं का नाम बड़े ही आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। स्वर्गीय साहित्य शिरोमणि अगरचन्दजी नाहटा की साहित्य, कला, पुरातत्व सम्बन्धी सेवाएँ युग - युगान्तर प्रेरणादायक बनी रहेगी। वहीं इनके भतीजे परम सम्माननीय साहित्य सेवी, कला उपासक, पुरातत्व प्रेमी श्री भंवरलाल जी नाहटा ने भी साहित्य, कला एवं पुरातत्व सम्बन्धी क्षेत्र में अपनी लेखनी के माध्यम से बड़ी सेवा की है। १४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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