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उपर्युक्त लिपियों में प्रारम्भिक पंक्तित्रय मौर्यकालीन हैं । अर्थात् विक्रम संवत् २०० वर्ज पूर्ववर्ती हैं। अन्तिम पंक्तिद्वय पालकालीन है अर्थात् लगभग यह १००० वर्ग प्राचीन लिपि है। प्रारम्भिक पंक्तियों में प्रथम पंक्ति में अ आ इ उ ए ओ अं है और द्वितीय पंक्ति में क ख ग घ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म तृतीय पंक्ति य र ल व सह है । अन्तिम पंक्तियों में निम्नांकित श्लोक है
ये धम्मा हेतु पभवा हेतु तेषा तथा गतो आह । तेषा च यो निरोधो एवं वादी महाश्रमणः ॥
इसी प्रकार के श्री नाहटा जी के द्वारा स्वहस्तलिखित प्राचीन शिला लेखों के एक दो उदाहरण और प्रस्तुत है
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उक्त अभिलेखों में प्रथम लेख उदयगिरि की हाथी गुफा पर सम्राट खारवेल का है जो कि ईसा से ३०० वर्ण पूर्व का है। इसमें निम्नांकित लेख है
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नमो अरहान नमो सव सिधानं वेरेन महाराजेन महामेघ वाहनेन चेतराज वसवधनेन पसथ सुभलखने (न) चतुरंत लठान गुनोपगतेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन ।
द्वितीय लेख मथुरा का सींहनादिक प्रतिष्ठापित आयागपट का है। इसमें जिस वात का उल्लेख है, वह इस प्रकार हैनमो अरहंताणं सिकस वानीकस पुत्रेन कोसिको पुत्रेन सीहनादिकेन आयागपटो प्रतिठापितो अरहंत पूजाये ।
श्री नाहटा जी लिपि-विज्ञान ही नहीं, पुरातत्व सम्बन्धी ज्ञान के भी धनी हैं। उन्होंने मूर्तियों, चित्रों, वास्तुकला तथा ललितकला से सम्बन्धित अनेक चीजों का संग्रह किया है जो कि श्री अभय जैन संग्रहालय. बीकानेर में संग्रहित हैं ।
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