SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फिटकड़ी कच्ची ॥ टांक. नीम के घोटे से ७ दिन ताम्रपात्र में घोटना। फिर सुखा कर टिकड़ी की हुई स्याही को आवश्यकतानुसार पानी में घोल कर काम में लेना चाहिए। मिश्री के पानी की अपेक्षा नींबू का रस प्रयुक्त करना अधिक उपयोगी है। अष्टगन्धः अगर, तगर, गोरोचन, कस्तूरी, रक्त चन्दन, चन्दन. सिंदूर और केशर के मिश्रण से अष्टगन्ध बनता है। कपूर, कस्तूरी, गोरोचन, सिगरफ, केशर, चन्दन, अगर, गेहूंला से भी अष्टगन्ध बनाया जाता है । इन सभी प्रकारों में प्रथम प्रकार उपयोगी और सुसाध्य है। कपड़े के टिप्पणक के लिए वीजाबोल से दुगुना गूंद, गंद से दुगुनी काजल नीली स्याही दो प्रहर मर्दन करने से वज्रवत् हो जाती है। सुन्दर और टिकाऊ पुस्तक लेखन के लिये कागज की श्रेष्ठता जितनी आवश्यक है उतनी ही स्याही की भी है। अन्यथा प्रमाणोपेत विधिवत् न बनी हुई स्याही के पदार्थ रासायनिक विकृति द्वारा कागज को गला देती है, चिपका देती है, जर्जर कर देती है । एक ही प्रति के कई पन्ने अच्छी स्थिति में होते हैं और कुछ पन्ने जर्जरित हो जाते हैं, इसमें लहिया लोगों की अज्ञानता से या आदतन गाढ़ी स्याही करने के लिये लौहचूर्ण, बीयारस आदि डाल देते हैं जिससे पुस्तक काली पड़ जाती है, विकृत हो जाती है । सुनहरी रूपहली स्याही: यक्ष-कदमः चन्दन, केशर, अगर, बस, कस्तूरी, मरचकंकोल, गोरोचन, हिंगुल, रतजन, सुनहरे बर्क और अंवर के मिश्रण से यक्ष-कर्दम बनता है। अष्टगन्ध और यक्ष-कदम गुलाब जल के साथ घोटते हैं और इनका उपयोग मंत्र, यंत्र. तंत्रादि लिखने में, पूजा प्रतिष्ठादि में काम आता है। सोना और चाँदी की स्याही बनाने के लिये वर्क को खरल में डाल कर धव के गंद के स्वच्छ जल के साथ खूब घोटते जाना चाहिए । बारीक चूर्ण हो जाने पर मिश्री का पानी डाल कर खूब हिलाना चाहिए । स्वर्णचूर्ण नीचे बैठ जाने से पानी को धीरे-धीरे निकाल देना चाहिए । तीन-चार बार धुलाई पर गूंद निकल जाएगा और सुनहरी या रूपहली स्याही तैयार हो जाएगी। मषी-स्याही शब्द काले रंग की स्याही का द्योतक होने पर भी हरे रंग के साथ इसका वचन प्रयोग-रूद्र हो गया। लाल स्याही, सुनहरी स्याही, हरी स्याही आदि इसी प्रकार बंगाल में लाल काली, ब्लकाली आदि कहते हैं। स्याही और काली शब्द ये हरेक रंग वाली लिपि की स्वरूपदर्शिका के लिए प्रयुक्त होते हैं ! लाल स्याही: हिंगलु को खरल में मिश्री के पानी के साथ खूब घोट कर ऊपर आते हए पीलास लिये हुये पानी को निकाल देना । इस तरह दस-पन्द्रह बार करने से पीलास निकल कर शुद्ध लाल रंग हो जाएगा। फिर उसे मिश्री और गंद के पानी के साथ घोट कर एक रस कर लेना। चित्रकला के रंग : सचित्र पुस्तक लेखन में चित्र बनाने के लिए ऊपर लिखित काले, लाल, सुनहरे, रूपहले रंगों के अतिरिक्त हरताल और सफेदा का भी उपयोग होता था । दूसरे रंगों के लिए भी विधि है। हरताल और हिंगुल मिलाने पर नारंगी रंग, हिंगुल और सफेदा मिलाने से गुलाबी रंग, हरताल और काली स्याही मिला कर नीला रंग बनता था । ७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy