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है । ताड़-पत्र कान्छ की जाति है. जब कि कागज व वस्त्र उससे भिन्न है। अतः प्रकृति भिन्नता के कारण तदनुकूल स्याही की रासायनिक विधि भिन्न होना स्वाभाविक है । आजकल ताड़-पत्र लेखन प्रचलित न होने से उसकी स्याही का स्वरूप प्राचीन उल्लेखों पर। आधारित है।
प्रथम प्रकार-कांटोसेरिया (धमासा ), जल भांगरा का रस. त्रिफला, कसीस, लौहचूर्ण को उकाल कर, क्वाथ वना कर, गली के रस को बराबर परिमाण में मिला कर कागज व वीजावोल मिलाने से ताड़-पत्र लेखन-योग्य स्याही बनती है । इन्हें तांबे की कढ़ाई में घोट कर एक रस कर लेना चाहिए।
पंचम प्रकार ब्रह्मदेश, कर्नाटक, उत्कलादि देशों में ताड़पत्र लोहे की सूई से कोर कर लिखे जाते हैं । उनमें अक्षरों में काला रंग लाने के लिये नारियल की टोपसी या बादाम के छिलकों को जला कर, तेल में मिलाकर लगा देना । पोंछने से ताड़पत्र साफ हो जायेगा। अक्षरों में कालापन आ जायेगा। कागज और कपड़ों पर लिखने योग्य काली स्याही: (१) जितना काजल उतना बोल, तेथी दूणा गूंद झकोल ।
जो रस भांगरा नो पड़े, तो अक्षरे अक्षरे दीवा बले ।।
द्वितीय प्रकार-कागज, पोयण, वीजावोल, भूमितला, जलभांगरा और पारे को उवलते हुए पानी में मिलाकर तावे की कढ़ाई में सात दिन तक घोट कर एक रस कर लेना चाहिये। फिर उसकी वड़ियां वना, उन्हें कूट कर रखें। फिर जव आवश्यक हो उन्हें गरम पानी में खूब मसल कर स्याही बना लेना चाहिये।
तृतीय प्रकार-कोरे काजल को मिट्टी के कोरे सिकोरे में अंगुली से मसल कर उसकी चिकनाई मिटा देना । थोड़े से गोमूत्र में भिगो देने से भी चिकनास मिट जाती है । फिर उसे निंब या खैर के गून्द के साथ वीआरस में भिगो कर खूब घोटन। । फिर वड़ी सुखा कर ऊपर की भांति करना ।
(२) काजल से आधा गूंद, गूंद से आधा वीजाबोल,
लाक्षारस. वीयारस के साथ तांबे केभाजन में मर्दन
करने से काली स्याही होती है। (३) वीआवोल अनइ लक्वाइस,
कज्जल वज्जल नइ अंबारस ॥ भोजराज मिसी निपाई.
पानउ फाटइ निसी नवि जाई । (8) लाख टांक वीस मेल, स्वाग टांक पांच मेल,
नीर टांक दो सौर लेई हांडी में चढ़ाइये । जो लौं आग दीजे तो लौं और खार सब लीजे. लोद खार बाल वाल पीस के रखाइये । मीठा तेल दीप जार काजल सोले उतार, नीकी विधि पिछानी के ऐसे ही बनाइये । चाहक चतुर नर लिख के अनूप ग्रन्थ,
बांच बांच वांच रिझरिझ मौज पाइये। (५) स्याही पक्की करने की विधि-लाख चोखो या
चीपडी पैसा ६, तीन सेर पानी में डालना, सुहागा पैसा २ डालना, लोद पैसा ३. पानी तीन पाव, फिर काजल पैसा १ घोट के सुखा देना। फिर शीतल जल में भिंगो कर स्याही पक्की कर लेना।
चतुर्थ प्रकार-गूद, नींब के गूंद से दुगुना बीजाबोल उससे दुगुना काजल (तिल के तेल से पाड़ा हुआ) को घोट कर गोमूत्र के साथ आंच देना, पात्र ताम्र का होना चाहिये। सूखने पर थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहे व पांच तोला एक दिन परिमाण से घोटकर लोद, साजीखार युक्त लाक्षारस मिलाना। गोमूत्र में धोये भीलामा चूंटा के नीचे लगाना । फिर काले भांगरा के रस के साथ मर्दन करने से उत्तम स्याही बनती है।
(६) काजल ६ टांक, बीजाबोल १२ टांक, खेर का गंद ३६
टांक. अफीम आधा टांक, अलता पोथी ३ टांक
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