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गलत किया गया है। प्राकृत 'सहाए' का 'सभा में अर्थ सीधा पड़ता है । प्रतिक्रमण पीठिका दंडक प्रकरण कौन सा है और कहाँ से प्रकाशित है-उल्लेख करना चाहिये था । उपर्युक्त पाठ के अर्थ के नीचे ही लिखा है कि 'हस्तिपाल के राज्य में निर्वाण होने का उल्लेख है' पर कल्पसूत्र और दण्डक प्रकरण दोनों पाठों में हस्तिपाल के राज्य का उल्लेख नहीं है, 'रज्जुगशाला' या 'सभा' का उल्लेख है । हमारी राय में रज्जुगशाला और सभा का उल्लेख उस स्थान का सूचक है जहाँ भगवान का निर्वाण हुआ। पर हस्तिपाल के राज्यकाल में हुआ ऐसा नहीं लगता । 'त्रिशष्टि शलाका पुरुष चरित्र', 'विविध तीर्थ कल्प, आदि के अनुसार उस समय राजा पुण्यपाल वहाँ का राजा था, जिसने भगवान से स्वप्नफल पूछे और उनसे दीक्षा ग्रहण कर मुक्ति प्राप्त की थी। हस्तिपाल राजा उसका पूर्ववर्ती राजा होगा जिसने वह 'रज्जुगशाला' या 'सभा' बनवायी थी। 'कल्पसूत्र' में 'जुण्णाए' और 'विविध तीर्थकल्प' में 'अभुक्तमान' विशेषण पाये जाते हैं । इससे ऐसा लगता है कि वह उस समय जीर्ण हो चुकी थी और राज्य के महकमें के रूप में काम नहीं आती थी । प्रभु ने उसी विशाल सभा स्थान में चातुर्मास किया। इसीलिये हस्तिपाल राजा का उल्लेख हुआ है । निर्वाण के समय वह हस्तिपाल की बनवायी हुई होने से उसी के नाम से प्रसिद्ध थी। भगवान का चातुर्मास नगर के बाहर होता था और शुल्कशाला चुंगीघर भी प्रायः बाहर ही होता है । वर्तमान पावा और पुरी दोनों मिलाजुला एक ही नगर था, जव बस्ती न रही तो अलग-अलग नाम कहलाने लगे । निर्वाण के समय हस्तिपाल का राज्य नहीं था । उसके बनाए भवन में भगवान ठहरे थे । 'कल्पसूत्र' के पाठ से ऐसा ही लगता है ।
हमारी राय में नवमल्ल और नवलिच्छवी दोनों को मिलाकर ही १८ गगराज्य थे जो काशी, कोशल देश के अन्तर्गत थे। आगे लिखा है कि "मगध वालों के सम्मिलित नहीं होने से निर्वाण का स्थान मगध से अलग सिद्ध होता है, यदि मगध्वाली पावापुरी में निर्वाण हुआ होता तो अजात. शत्र या उनके किसी प्रतिनिधि के सम्मिलित होने की बात अवश्य आती।" पर मगध वाले सम्मिलित नहीं हुए. ऐसा भी तो उल्लेख नहीं है। जब मगध की पावापुरी में निर्वाण हुआ तो वहाँ के लोगों की उपस्थिति का उल्लेख करना आवश्यक नहीं होता। अजातशत्रु सम्भव है उस समय कहीं अन्यत्र गया हुआ हो । निर्वाण की सूचना पहले से प्रचारित थोड़े ही थी, अन्यथा गौतम स्वामी दूसरे गाँव को क्यों जाते । सच्ची बात तो यह है कि श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् मन न लगने से उसने राजगृह से राजधानी हटा कर अंग देश की चम्पा को राजधानी करके वहाँ निवास करने लगा था जो मगध के अन्तर्गत थी।
पृ० ६६ में लिखा है कि "कल्पसूत्र में सर्वप्रथम नव मल्लई लिखा जाना विशेष अर्थ रखता है । यह कथन इसका द्योतक है कि वीर निर्वाण मल्लभूमि में हुआ था ।" पर वास्तव में नव मलई और लिच्छवी दूर से आये हुए थे अतः बाहर से आगन्तुक विशिष्ट व्यक्तियों के रूप में उनका उल्लेख हुआ है । स्थानीय व्यक्तियों का उपस्थित होना तो साधारण बात है। इनके उल्लेख की आवश्यकता नहीं होती। फिर मलों ने ७ दिन वुद्ध के शरीर को सजाने , पूजा करने में बिताये. इसका उल्लेख करके "महावीर निर्वाण के समय भी कुछ ऐसा ही हुआ था और जैसे-जैसे अन्य देशों में सूचना मिली, वहाँ के लोग भी सम्मिलित होने के लिए पावा पहुँचे" लिखा है, पर जैन ग्रन्थों के अनुसार न तो प्रभु की देह कई दिनों तक रखी गई थी और न अन्य देशों से लोगों के आने का ही उल्लेख है। जैन ग्रन्थों के अनुसार
पृ०६५ में नव मल्ल और नव लिच्छवि और अठारह काशी कौशल गणराज्यों का उल्लेख किया है, यहाँ बीच में एक 'और' लगाने से १८+१८-३६ हो जाते हैं पर
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