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इसी प्रकार बौद्ध ग्रन्थों के एक उल्लेख में भगवान महावीर के नालन्दावासी और बौद्ध महिमा को सहन न करने से खून की उल्टी होने और वहाँ से पावा ले जाने का उल्लेख मिलता है. यह भी सर्वथा गलत है । मुनि नगराज जी आदि ने भी इसे पीछे का जोड़ा हुआ माना है । प्राचीनतम् श्वेताम्बर जैनागम कल्पसूत्रादि से यह सिद्ध है कि भगवान महावीर निर्वाण के समय पूर्ण स्वस्थ थे । सोलह प्रहर तक अखण्ड देशना देते हुए निर्वाण पाये। वे अपापा या मध्यमा पावा की हस्तिपाल की रज्जुगशाला में विराजमान थे। अतः नालन्दा से अस्वस्थ अवस्था में पावा जाना और खून की उल्टी होना सर्वथा असंगत ही है। यदि बौद्ध उल्लेख को एक दृष्टि से ग्रहण कर लिया जाय तो भी वर्तमान पावापुरी ही निर्वाणस्थान सिद्ध होगा। क्योंकि अस्वस्थ अवस्था में बौद्ध ग्रन्थोक्त पावा में जाना तो सम्भव ही नहीं हो सकता ।
पावा समीक्षा की परीक्षा
पावापुरी स्थान के सम्बन्ध में कुछ पाश्चात्य विद्वानों और भारतीय अन्वेषकों ने बौद्ध साहित्य के आधार से शंका उपस्थित की है और उत्तर प्रदेश के कई स्थानों को प्राचीन पावा बताने का प्रयत्न किया है। पर जैन समाज ने, बौद्ध ग्रन्थों के आधार से जो अनिर्णित स्थान बतलाए गये उन्हें मान्य नहीं किया, क्योंकि जैन परम्परा का आधार ही जैन समाज को मान्य। हो सकता है. बौद्धों का नहीं | कारण स्पष्ट है कि बौद्ध ग्रन्थों में जो भी विवरण जैन सम्बन्ध में मिलते हैं वे भ्रामक एवं द्वेषपूर्ण प्रतीत होते हैं। इतना ही नहीं. उनके कई उल्लेख तो परस्पर विरोधी भी हैं। भगवान महावीर के निर्वाण सम्बन्धी बौद्ध ग्रन्थों में जो उल्लेख मिलते हैं वे प्रायः गलत प्रतीत होते हैं । जैसा कि एक उल्लेख में यह कहा गया है कि महावीर के निर्वाण के बाद तत्काल ही उनका संघ दो भागों में विभक्त हो कर परस्पर कलह करने लगा पर, यह बात जैनागमों के प्रकाश में सर्वथा गलत सिद्ध होती है । क्योंकि महावीर के निर्वाण के कुछ घंटों के बाद ही गौतम स्वामी को केवल ज्ञान हो गया था । उसके बाद सुधर्मा स्वामी जैन संघ के एकमात्र कर्णधार बने। अतः संघ के दो 'भागों में विभक्त होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
महावीर और बुद्ध समकालीन होने पर भी कभी परस्पर मिले नहीं । जैनागमों में बुद्ध या बौद्ध धर्म की निन्दा या विरोध में कुछ भी नहीं कहा गया जबकि बौद्ध ग्रन्थों में निग्गठनातपुत्र महावीर और उनकी विचारधारा पर स्पष्ट रूप से विरोधी स्वर तथा निन्दात्मक शब्दों का प्रयोग पाया जाता है। बौद्ध ग्रन्थ भी बुद्ध निर्वाण के काफी बाद के लिखे हुये हैं और उनमें पीछे से घोलमेल भी होता रहा है इत्यादि अनेक कारणों से बौद्ध ग्रन्थोक्त पावा भगवान महावीर का निर्वाण स्थान मान्य नहीं की जा सकती क्योंकि जहाँ बौद्धों का अधिक प्रभाव रहा वहाँ जैन कम हो गये और जहाँ जैनों का प्रभाव रहा वहाँ बौद्ध भी प्रायः कम हो गये थे। अतः बौद्ध ग्रन्थोक्त पावा जो कुशीनारा के निकटवर्ती
और मल्लों की राजधानी बतलाई जाती है, उस पावा में वैसे भी भगवान महावीर का निर्वाण होना नहीं जंचता। राजगृह-नालन्दा में भगवान ने अनेक चातुर्मास
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