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सुन्दर परिकर है जो सं० १६१६ का है। इसकी कलापूर्ण अभिव्यक्ति प्रशंसनीय है। पृष्ठ भाग में विस्तृत अभिलेख है जिसमें पूर्णिमा पक्ष के विद्याप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठा कराने व पाटण के ढंढेर पाड़े के श्रीमाल ज्ञातीय श्रावक परिवार के पद्मप्रभ विव निर्माण करने का उल्लेख है। इसकी मूल प्रतिमा अव नहीं है । एक छोटा-सा धातुमय जिनालय है जो चारों ओर खुला है । इसमें चतुर्मुख प्रतिमाएं विराज- मान रही होंगी । इस देहरासर का शिखर अत्यंत कलापूर्ण है। सं० १४६२ में इस चतुर्मुख प्रासाद को सा० धर्मा द्वारा स्वर्ण रौप्य से अलंकृत कराने और संघ द्वारा निर्माण कराने का उल्लेख है । यह भी मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह
मुख आदि अलंकरण हैं: उपकरण कलश लगा हुआ है ।
नरवर का सहस्रकूट बिम्ब इस समय झांसी के जिनालय में है। यह धातुमय ढला हुआ चार साढ़े चार फुट ऊंचा नौ भागों में विभाजित खण्डों को जोड़ कर बनाया गया है। मध्य स्थित प्रतिमा ८ इंच की है. अवशिष्ट एक-डेढ़ इंच की है । समस्त प्रतिमाएं १००२ है और सं० १५१५ शक १५०९ (१) भट्टारक धर्मभूषण के उपदेश से निर्मित हैं । ऊपरी भाग में पीतल का सुन्दर कलश है।
समवसरण :
सूरत के दिगम्बर जिनालय में एक कांस्य का चतुमरव जिनालय भी धातु प्रतिमाओं की विधाओं में अपना वशिष्ट्य रखता है । इसमें चतुर्दिक तेरह प्रतिमाएं हैं जिनमें एक खगासन और वारह पद्मासनस्थ हैं । प्रथम तल में इस प्रकार ५२ हुई । द्वितीय तल में सोलह, तृतीय तल में चौमुख इस प्रकार ७२ प्रतिमाएं कलापूर्ण स्तम्भ व तोरण युक्त सुशोभित है।
सूरत के जैन मंदिर में एक धातुमय समवसरण अत्यन्त सुन्दर, कलापूर्ण और दर्शनीय है । इस विशाल समवसरण को नीचे चौरस कलापूर्ण आसन पर वृत्ताकार तीन गढ़ और वारह पर्षदा वाला बनाया है। यह सन् १०५५ का बना हुआ है । इसके प्रतोली द्वार, तोरण और विशिष्ट प्रकार का शिखर भी बेजोड़ है।
पंच मेरु :
नन्दीश्वर द्वीप :
यह भी सूरत के दि० जैन मन्दिर में पाँचों द्वीपों के पाँच मेरु के प्रतीक रूप पाँच तलों में अत्यन्त सुन्दर कलामय अभिव्यक्ति वाला बेजोड़ बना हुआ है।
ताम्रशासन
कोल्हापुर के जिनालय में एक धातुमय नन्दीश्वर विम्ब स्थापित है। जिसमें चौरस चतुर्मख प्रथम तल पर २०. द्वितीय तल पर १६, तृतीय तल पर १२ और चतुर्थ तल पर ४ जिनविम्व है। प्रतिमाएँ पद्मासन मुद्रा में हैं और ऊपर शिखर कलश युक्त है ।
सहस्रकूट जिनालय।
पाटण नगर में कांस्य का सहस्रकूट जिनालय अत्यंत सुन्दर कलापूर्ण है । यह सर्वतोभद्र की भाँति चतुर्मख
और पर्याप्त ऊंचा है। नीचे बारह पर्षदा और सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर की तीन मंजिल में चतुर्दिन १००८ जिन प्रतिमाएं हैं, चारो कोनों में चामरधारी और मकर.
तौँ-मन्दिरों आदि के लिये राज्य की ओर से. जो भूमिदान आदि किये जाते थे, उनके अनेक ताम्रशासन संस्कृत. प्राकृत व राजस्थानी भाषा में लिखे हुए उपलब्ध हैं। बंगाल के ब्राह्मण गुहनन्दि द्वारा पहाड़पुर के जैन मन्दिर मठ को दिया गया ताम्रशासन पाँचवीं शताब्दी का है । विक्कमपुर का एक ताम्रशासन जेसलमेर में देखा था । बीकानेर के ज्ञान मंडार में नाल दादाजी की पूजा के हेतु प्राप्त राजकीय ताम्रशासन है। हमारे कला भवन में भी एक ताम्रशासन है ।
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