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________________ सूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित है। चाँदी की प्रतिमाओं में एक सं० १७६४ की सोनोपाहरू द्वारा निर्मित व दूसरी सं० १५५९ की है। श्री सुपार्श्वनाथ मंदिर : सम्राट सम्प्रति और चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मापित प्राचीनतम् लेख युक्त प्रतिमाएं थीं। उस जमाने में प्राचीन लिपि का अभ्यास न होने पर भी विद्वान जैनाचार्य श्री जिनराजसूरिजो ने अम्बिका देवी की सहायता से पढ़ी थी। उन प्रतिमाओं में एक अर्जुनहेम (प्लेटिनम) की भी. पाश्र्वनाथ प्रतिमा की आश्चर्यजनक उपलब्धि हुई थी। कविवर समयसुन्दर जी ने अपने स्तवन में इसका विस्तृत वर्णन किया है। उसके साथ कुछ अन्य प्रतिमाएँ,धूपदान कंसात जोड़ी आदि उपकरण भी निकले थे । अब, वे प्रतिनाएँ कहाँ हैं और कव छिपा दी गई, पता नहीं । परन्तु अव भी गांगाणी के मंदिर में सं०९३७ के अभिलेख वाली ऋषभदेव भगवान की अत्यन्त सुन्दर कलापूर्ण प्रतिमा विराजित है जिसका परिकर कहीं भण्डार में हो संकता है। यहाँ सं०१७९४ के चौमुखजी. सं०१५१६ की रजतपय सपरिकर नेमिनाथ प्रतिमा व सं १५८१ का कलिकुंड यंत्रादि है। श्री महावीर जिनालय ( आसानियों का चौक ) : यहाँ सं०१३९० में ज्ञानचंद्र सरि प्रतिष्ठित मल्लिनाथ भगवान का धातुमय सिंहासन है । श्री गौड़ी पार्व जिनालय : यहाँ सं० १२७८ में प्रतिष्ठित रूधरिका देवी की प्रतिमा है। चूरु डिवीजन के तारानगर के प्राचीन जिनालय में सं० १०५८ की प्रतिष्ठित शीतलनाथ भगवान की धातु प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर व कलापूर्ण है। सुजानगढ़ के मन्दिर में चांदी को थाली में घण्टाकर्ण प्रतिष्ठित हैं । देशनोक के भूरों के वास की धातुमय मूलनायक प्रतिमा शान्तिनाथ स्वामी बीकानेर में ही निर्मापित है। जैसलमेर में हजारों जिन प्रतिमाएं जिनमें धातुनिर्मित भी संख्याबद्ध व कलापूर्ण हैं | शान्तिनाथ मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा सं० १५३६ की प्रतिष्ठित है । गजारूढ़ श्रावक प्रतिमा सा० खेता के पुत्र की है जो सं० १५९० की निर्मापित है। चन्द्रप्रभ जिनालय में एक प्रतिमा सं० १०८६ की है जिसमें नागेन्द्र सिद्धसेन दिवाकराचार्य के गच्छ का लेख है । लौद्रवाजी में सं० १६७३ का माया वीज यंत्र व धातुमय विशाल कल्पवृक्ष प्राचीनता व कला की दृष्टि से अद्भुत वस्तु है । जोधपुर के सन्निकट गांगाणी तीर्थ है जहाँ सं० १६६२ में एक तलघर से लगभग ६० प्रतिमाएं निकली थी जिसमें जोधपुर के मन्दिर में भी कई सुन्दर कलापूर्ग विविध प्रकार की प्रतिमाएं हैं। साचोर, भीनलाल, जालोर आदि प्राचीन स्थान कलापूर्गप्राचीन मूर्तियों के लिये पर्याप्त प्रसिद्ध थे। नागौर के बड़े मन्दिर में धातु प्रतिमाएं पर्याप्त प्राचीन और कलापूर्ण भी हैं। एक मन्दिर के सभा-मण्डप में कलापूर्ण समवसरण मेरु पर्वत देखा था जो लगभग ३५-४० इंच ऊँचा होगा | नागौर जैसे प्राचीन नगर में दिगम्बर व श्वेताम्बर मन्दिरों में कलात्मक उपादानों के विषय में अन्वेषण अपेक्षित है। मुस्लिम काल से पूर्व नागौर के जिनालयों की जो संख्या व स्थिति थी. प्राचीन स्तवनादि से विदित होता है कि धातुमय तोरण व परिकर युक्त विशाल प्रतिमाओं की अवस्थिति थी। राजस्थान व गुजरात के प्रत्येक नगर में प्राप्त धातु प्रतिमाओं में कुछ न कुछ कला वैशिष्ट्य मिलता है। केशरियाजी तीर्थ में चौवीसी विधा की एक धातुमय प्रतिमा में अतीत, अनागत और वर्तमान चौबीसियों के बहत्तर जिनविव अवस्थित हैं। ६८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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