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हुक लगा हुआ है । अधोवस्त्र के चिन्ह स्पष्टतः लक्षित हैं। चेहरा गोल भरा हुआ है । कला की दृष्टि से यह ७वीं शती की जान पड़ती है ।
३. चतुर्मुख समवसरग (प्रतिमा संख्या ४) ।
यह २१ सें० मी० ४१९ सें० मी० की चौकोर चौमुखी प्रतिमा है जिसकी प्रत्येक दिशा में दो स्तम्भों के मध्य एक ध्यानस्थ तीर्थंकर प्रतिमा युक्त थी। अब केवल तीन दिशा में एक-एक प्रतिमा है. एक ओर की प्रतिमा नहीं है। ये प्रतिमाएँ अस्थिर हैं। पूर्व में शिखर पर ध्वज था । तीर्थकर प्रतिमाओं की पीठिका पर कुबेर एवं अम्बिका अवस्थित है। ऊपर एक कोने पर एक हाथी का वड़ा ही मनोरम अंकन हुआ है। कला की दृष्टि से यह प्रतिमा ११वीं शतः की जान पड़ती है।
४. श्री पार्श्वनाथ त्रितीर्थी ( प्रतिमा संख्या १७ )
यह २४ सें० मी०४१९ सें० मी० की है। पार्वनाथ तीर्थंकर एक सिंहासन पर ध्यानमुद्रा में बैठे हुए हैं। उनके पीछे पंचमुखी सर्पफग फलाए बैठा है जिसने तीर्थकर के ऊपर छत्र का रूप धारण कर लिया है। दोनों ओर वाजू में दो अन्य तीर्थकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं । परिकर पर विद्याधरों का अंकन है । पीठिका पर कुवेर एवं अम्बिका का अंकन हुआ है। पीठिका पर अष्ट-ग्रहों का भी अंकन हुआ है । एक वाजू में चक्र - श्वरी का अंकन है जव कि दूसरी ओर कोई अन्य देवी का अंकन था जो अव खंडित है। यह प्रतिमा ७वीं-दीं शताब्दी की प्रतीत होती है । ५. सरस्वती देवी ( प्रतिमा संख्या ६१ )
यह १३.७ सें० मी०४६.४ सें० मी० की द्विबाहु प्रतिना समभंग अवस्था में खड़ी हुई अपने दाहिने हाथ में सनाल कमल लिये हुए है। मस्तक पर वाल संवार कर एक छोटा जूड़ा बना हुआ है. इसके आगे एक छोटा मुकुट पहन रखा है। पीछे का प्रभामण्डल खंडित है। प्रभामंडल
के नीचे प्राप्य भाग से पता लगता है कि प्रभामंडल दो कगार वाला था किन्तु अलंकरण-विहीन था। सरस्वती प्रतिमा का चौड़ा ललाट, सीधी लम्बी नासिका. छोटेमोटे होंठ; लम्बी आँखें और गोल भरा हुआ चेहरा बसन्तगढ़ की सरस्वती प्रतिमा की भाँति है । स्थानीय भक्तजनों ने प्रतिमा के नेत्रों में चाँदी भरकर प्रतिमा को कुरूप कर दिया है। देवी के कानों में गोल-गोल कुण्डल हैं जो कंधों को छू रहे हैं । गले में मणियुक्त एकावली एवं उरहसूत्र धारण किये हैं जो उन्नत पयोधरों के मध्य से होता हुआ वाँयी ओर गया है। नीचे का वस्त्र बसंतगढ़ की सरस्वती प्रतिमा की भाँति धारण किया है जिसमें दोनों पैरों के मध्य एक लहरदार वस्त्र है । उत्तरीय दोनों कंधों पर से होता हुआ एड़ी तक दो शिखाओं में चला गया है। प्रतना के दाहिनी ओर का उत्तरीय खंडित है। किन्तु इसका खंडित भाग कंधे एवं एड़ी के पास दृष्टिगोचर होता है। देवी के हाथों में भुजबन्द एवं कंगन तथा पैरों में पायल है।
इस धातु सरस्वती प्रतिमा का वसन्तगढ़ की धातु सरस्वती प्रतिता से काफी साम्य है और धोती वसन्तगढ़ तीर्थंकरों की भाँति है। कला एवं मूर्ति विकास दृष्टि से यह प्रतिमा प्वीं शती की है और पश्चिमी भारतीय कला के प्रथम चरण को है। ६. जन त.थंकर (प्रतिमा संख्या ९४)
चिन्तामणि जी के मन्दिर के सभामण्डप में ४७४१४ सें० मी० की खड़ी प्रतिमा चिरकाल से थी जो अव सुरक्षित स्थान में है। इसके १० सें० मी० की नव्यपीठिका लगा दी है। यह प्रतिमा उत्तरी राजस्थान की प्रतिमाओं में काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह बसंतगढ़ पिण्डवाड़ा से प्राप्त दो खड़ी प्रतिमाओं से काफी साम्य रखती है। यह प्रतिमा संभवतः तुरसमखान द्वारा सिरोही से लूट के लाई हुई होगी। प्रतिमा पर लांछन न होने से यह प्रतिमा किस तीर्थकर की है. निश्चयपूर्वक कहना कठिन है।
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