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________________ देव है। परिकर के निम्न कोने में दो व्यक्ति खड़े हैं जिन पर ग्रास बना हुआ है। दूसरी प्रतिमा सं०११७९ का चतुर्विशति पटुक है जो सुन्दर कलापूर्ण व भिन्न अलंकारिक शैली का है। इनके संग्रह में एक चन्दवा सं० १५१७ का है जिस पर जरी का काम है। श्री चिन्तामणिजी का मन्दिर : बीकानेर के सर्वप्राचीन श्री चिन्तामणि जी (चौवीसटा) के मन्दिर में धातु प्रतिमाओं का विशाल संग्रह है। एक ही मंदिर में इतनी प्रतिमाएं सारे भारत में नहीं नहीं है। यहाँ इस समय १११६ प्रतिमाएं हैं जिनमें १०५० प्रतिमाएं सं० १६३३ में तुरसमखान द्वारा सीरोही की लूट में फतहपुर सीकरी लाई गई थी । पाँच छः वर्ष पश्चात् सं० १६३९ आ० सु० ११ को राजा रायसिंह और मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत उन्हें अकवर से प्राप्त कर वीकानेर लाये। वासुपूज्य स्वामी की मूलनायक प्रतिमा के साथ कई वर्ष पूजी जाकर अधिकांश प्रतिमाएं चिन्तामणिजी के भूमिगृह में रख दी गई थीं। सं० १९८७, १९९५. २०००, २०१८ में बाहर निकाली गई थीं । हमने सर्वप्रथम इनके अभिलेख संग्रहित कर अपने "दीकानेर जैन लेख संग्रह' में प्रकाशित किये थे परन्तु तत्र स्थित प्रतिमाओं का कलात्मक अध्ययन नहीं हो सका था। थोड़ी-सी कलापूर्ण प्रतिमा समूह का चित्र उपर्युक्त ग्रंथ में दिया गया था। सं० २०३३ के जून महीने में जब उन्हें पुनः निकाला गया तो राजस्थान सरकार द्वारा श्री प्रकाशचन्द्र भार्गव को सूची निर्माण हेतु नियुक्त किया गया । उन्होंने अध्ययनपूर्वक जो लेख लिखा. जैन यति गुरुकुल स्मारिका से यहाँ साभार उद्धृत किया जा रहा है। १. ८वीं की१. ९वीं की२.९-१०वीं की २. १०वीं की ६.११वीं को ९.१२वीं की ३३. १३वीं की १११, १४वीं की ३५८.१५वीं की ५३३, १६वीं की २४, १७वीं की १. १८वी की ६. १८-१९ वीं को ४. १९वीं की २ प्रतिमाएं हैं । इनमें से कुछ प्रमुख प्रतिमाओं का वर्णन यहाँ प्रस्तत किया जा रहा है। १. आदिनाथ प्रतिमा ( प्रतिमा संख्या १) यह २१ से० म०४३३ से० मी० माप की आदिनाथ प्रतिमा पद्मासन ध्यान में विकसित पूर्णदल कमल पर सज्ज युक्त वस्त्रालंकृत उच्च सिंहासन पर विराजमान है। वस्त्र में गोल-गोल घेरे के अन्दर व मल पुष्प का अंकन है । सिंहासन में उच्च पीठिका के ऊपर मध्य में दो मृगों के धर्मचक्र का अंकन एक विकस्ति कमल के ऊपर दिया गया है। पीठिका पर तीर्थंकर के लांघन का अभाव ध्यान देने योग्य है। श्री आदिनाथ के कन्धे पर उनके बाल बिखरे हुए . हैं । उन्नत ललाट, लंबी नासिका व चौड़े नथुने युक्त गंल भरा चेहरा है जिससे सौम्यता झलकती है। आँखें बड़ी-बड़ी हैं। ओठ पतले हैं पर नीचे का ओठ मोटा है। शरीर में भारीपन है । पीठिका के अग्रभाग का दाहिना पैर टूटा हुआ है। इस प्रतिमा के दोनों तरफ यक्ष और यक्षिणी की प्रतिमा रही होगी क्योंकि उनके स्थित करने के लिए सुराख बने हैं। प्रतिमा के पीछे एक लाइन का छोटा-सा लेख है। इसका अध्ययन किया जा रहा है । कला शिल्प के आधार पर यह वसन्तगढ़ से प्राप्त ऋषभनाथ जी की प्रतिमा से काफी साम्य रखती है और ७वीं शती की जान पड़ती है। मैने इसके लेख को "ॐ सन्ति गणि" पढ़ा था और बीकानेर जैन लेख संग्रह में प्रकाशित किया था । २. तीर्थकर प्रतिमा (प्रतिमा संख्या २) यह २० सें० मी०४७ सें० मी० की खड़ी हुई किसी पीठिका पर अवस्थित थी । यद्यपि अव पीठिका नहीं रही. इस समय भण्डारस्थ प्रतिमाओं की संख्या १११६ है जिनमें दो पाषाण को एवं ८ धातुयंत्र हैं। कालक्रमानुसार देखा जाय तो ७वीं शती की ३. ७-८वीं की [६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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