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२. त्रितीर्थी प्रतिमा- यह सं० ११२७ की प्रतिष्ठित और उपकेश गच्छ के श्रावक आम्रदेव कारित है । भगवान के पृष्ठ भाग में अलंकृत प्रभामण्डल, सिर पर छत्र और ऊपरी भाग में किन्नर हैं। उभय पक्ष की खङ्गासन प्रतिमाएँ धोती पहनी हुई हैं और उनके पास चारधारी खड़े हैं। काउसग्गियों के नीचे यक्ष-यक्षिणी एवं तन्निम्न भाग में नौ ग्रह हैं। सिंहासन के पायों के पास सिंह और वीच के वस्त्र चिह्न के आगे धर्मचक्र है ।
३. चतुर्विंशति पट्टछत्र के नीचे विराजित मूलनायक प्रतिमा के उभय पक्ष में खड़े धोती पहने काउसगियों के ऊपर पद्मासन मुद्रा में जिनेश्वर और नीचे की ओर यक्ष-यक्षिणी हैं। पायेदार सिंहासन के मध्य लटकते वस्त्र के दोनों ओर सिंह और सिंहासन के पाये हैं। निम्न भाग में नौ ग्रह की पंक्ति है। परिकर के दोनों और तोरण के स्तम्भ में चार-चार जिन प्रतिमाएँ और ऊपर के वक्ष में तोरण पर दोनों ओर एक पचासन और दो-दो खन्नासन मुद्रा की प्रतिमाएं है। प्रतिमा के उमय पक्ष में अलंकृत स्तम्भ और मकर मुख प्रतीत होते हैं । सं० ११३६ में जल्लिका श्राविका द्वारा निर्मार्पित है।
४. पार्श्वनाथ पंचतीर्थी - यह प्रतिमा सं० ११६० में कर्चपूरीय गच्छ के मनोरथाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित है । सप्तफण मण्डित पर्श्वनाथ के वगल में खड़े धोती पहने खङ्गासन प्रतिमाओं के ऊपर पद्मासन प्रतिमाएँ हैं । सिंहासन के चारों पायों के बीच दोनों सिंह बैठे हैं और उभय पक्ष में चामरधारी खड़े हैं।
५. आदिनाथ पंचतीर्थी यह प्रतिमा सं० सं० १०६३ में प्रतिष्ठित और कलापूर्ण है। भगवान की प्रतिमाओं के उभय पक्ष में खङ्गासन प्रतिमाएं धोतीयुक्त हैं और पृष्ठ भाग में अलंकृत भामण्डल है । पृष्ठ भाग के तोरण स्तम्भ पर दो पद्मासन प्रतिमाएँ और बगल में लिह और मकर मुख हैं। सिंहासन के मध्य भाग में वस्त्र
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लटक रहा है. धर्मचक्र भी है। दोनो ओर सिंह और दो पाये हैं। सिंहासन के दोनों ओर राक्ष-यक्षिणी एवं नीचे चैत्यवंदन करते भक्त युगल के मध्य में नौ ग्रह स्थापित हैं।
६. देवी प्रतिमाह अश्वारूड देवी की प्रतिमा सं० १११२ में छाहड़ द्वारा निर्मापित है। देवी चारों हाथों में आयुध धारण किये है। घोड़ा चौकी पर खड़ा है ।
७ सप्तका पार्श्वनाथ प्रतिमा सतफग युक्त पार्श्वनाथ भगवान की किसी श्राविका द्वारा निर्मार्पित है और कमलासन पर विराजमान है। तोरण स्तम्भ के सहारे पृष्ठ भाग में धर्म चक्र और ऊंचे शिखर की भाँति कलश है ।
पार्श्वनाथ जन आकार के कमलासन पर विराजित भगवान की सप्तफम मंडित प्रतिमा है। उभय पक्ष में त्रिष्ठ स्तंभ और पृष्ठ भाग से सांप आकर गोडों के पास से ऊपर गया है। दोनों ओर के सौंप कुण्डली कृत न होकर पृथक प्रतीत होते हैं ।
९. आदिनाथ पंचतीर्थी सिहासन के उभय पक्ष में यक्ष-यक्षिणी, दोनों और चामरधारी के मध्य में दो काउसग्गिया और ऊपर पद्मासनस्थ प्रतिमाएँ हैं । मध्यवर्ती आदिनाथ भगवान के मस्तक पर छत्र, पृष्ठ भाग में प्रभामण्डल और उभय पक्ष में किन्नर है।
१०. पार्श्वनाथ त्रितीर्थी स्पष्ट तक्षण कला वाली इस प्रतिमा के पृष्ठ भाग में ऊँची सप्त फणावली और उभय पक्ष में धोती पहने हुये खङ्गासन प्रतिमाएँ हैं । भगवान के नीचे पव्वासन और तन्निम्र भागवर्ती कमल की पंखुड़ियों के नीचे वस्त्र लटकता हुआ उभरा पक्ष स्थित सिंहों के मध्य दिखाया है। दाहिनी ओर यक्ष व वाम पार्श्व में अम्बिका देवी विराजित हैं। मध्यवर्ती धर्मचक्र के आगे कमल पर यक्ष बैठा है ।
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