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चामरधारी अवस्थित हैं और एक साधु व एक श्रावक चैत्य वन्दन करते हुए बैठे हैं। इस पर सं० ११११ का अभिलेख भी उत्कीर्णित है ।
नीचे वाहन गरुड़ है जो कमल पुष्प पर अवस्थित है । अम्बिका देवी की अन्य धातु प्रतिमा सं०१५०६ की प्रतिष्ठित है।
दिल्ली की पार्श्वनाथ प्रतिमा :
दीववन्दर :
पिण्डवाड़ा शैली से प्रभावित एक अत्यंत सुन्दर कलापूर्ण प्रतिमा दिल्ली के चिराखाने के पार्श्वनाथ जिनालय में है। इस प्रतिमा के पृष्ठ भाग में एक अभिलेख भी उत्कीर्णित है जिससे इसका निर्माण-काल आठवीं- नवीं शती प्रतीत होता है । इस प्रतिमा की सुन्दर तक्षण शैली आज की-सी बनी हुई प्रतीत होती है । महावीर स्वामी की यह प्रतिमा वि० सं० १६०५ की वनी हुई है और महातीर्थ सम्मेतशिखर पर खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित है । पर इसकी भीशै लोगत विशेषता है। चतुष्कोण समवसरण के आसन पर भ० महावीर विराजित हैं और उनके चारों कोणों में सिंह खड़े हुए हैं। इन चारो कोणों में चार गणधर प्रतिमाएं भगवान को वंदन करती हुई अवस्थित हैं जिनके पृष्ठ भाग में व्यक्त, मण्डित, मौर्यपुत्र और अकम्पित नाम खुदे हुए हैं । प्रभास पाटन (गुजरात):
यहाँ के मन्दिर में लक्ष्मी देवी की दो धातु-प्रतिमाएँ हैं जो परिकर में विराजित हैं। दोनों प्रतिमाओं के उभय पक्ष में गजराज अभिषेक करते हुए दिखाये गए हैं । एक के पादपीठ में भी हाथी का वाहन दिखाया गया है। एक प्रतिमा पद्मासन में और दूसरी दाहिना गोडा नीचा किये भद्रासन पर विराजित है । पाश्वयक्ष की प्रतिमा भी पायपीठ पर विराजित है जो दोनों हाथों को गोद में रखकर बैठे हैं। इनके उभय पक्ष में नाग हैं । वीकार की जैन प्रतिमाएँ:
यहाँ के सुविधिनाथ जिनालय में श्री आदिनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा की प्रतिमा है जो किसी विशाल परिकर के वाजू की प्रतीत होती है । इसके निम्न भाग में दाहिनी ओर शासन देवी श्री चक्रेश्वरी और वाम पार्श्व में अम्बिका की खड़ी मूत्ति है जो दाहिने हाथ में आम्रलुम्ब और वाम हाथ में बालक को लिये हुए हैं। अम्विका की प्रतिमा पूर्व काल में नेमिनाथ भगवान की अधिष्ठात्री होने पर भी जिन-मन्दिरों में तीर्थंकरों के परिकरों में पायी जाती है। खड़ी प्रतिमाएं यद्यपि अल्प ही मिलती है फिर भी बंगाल के शिल्प में देखी जाती है। चक्रेश्वरी की प्रतिमा दो हाथों में चक्र एवं तीसरे में माला और चौथे में शंख धारण की हुई है।
बीकानेर से ७० मील दूरी पर अमरसर के टीलों में सं० २०१३ में सोलह प्रतिमाएं निकली थीं जिनमें दो पाषाणमय व चौदह धातुमय थीं। वे अभी गंगा गोल्डन जुबिली म्यूजियम में प्रदर्शित हैं। इनका परिचय इस प्रकार है
१. पाश्वनाथ त्रितीर्थी-यह सप्तफगमण्डित त्रितीर्थी परिकर युक्त प्रतिमा सं० ११०४ की प्रतिष्ठित है। भगवान के पृष्ठ भाग से आये हुए साँप का शरीर चौकड़ी युक्त है और फणावली के पीछे भी प्रतिहार्याकृति और सिर पर छत्र है । उभय पक्ष में लम्ब गोलाकृति चक्र के मध्य छत्र के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमाएं हैं जिनकी धोती के चिह्न स्पष्ट हैं.। छत्र के ऊपरी भाग में पत्ते दिखाई देते हैं । निम्न भाग में यक्षयक्षिणी एवं उभय पक्ष में चामरधारी हैं जिनके पृष्ठ भाग में पत्ते की भाँति तीखे आकार के आधार हैं: प्रभु के आसन के नीचे सिंह और दोनो तरफ पाये हैं। मध्य भाग में गुप्तोत्तरकालीन वस्त्र लटकता दिखाया है और नीचे नौ ग्रह बने हुए हैं !
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