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खूब स्पष्ट एवं कलापूर्ण है। इस पर सं०७७४ का पाँच पंक्ति का संस्कृत अभिलेख उत्कीर्णित है।।
साराभाई का संग्रह
इनके यहाँ एक पार्श्वनाथ प्रतिमा है जो कि सुन्दर और सप्त फण मण्डित है। इसमें भी उमयपक्ष में खड़ी हुई कायोत्सर्ग मुद्रा की प्रतिमाएं हैं । निम्न भाग में चामर-धारिणी व उभय पक्ष में यक्ष-यक्षिणी अवस्थित हैं। नीचे नवग्रह बने हुए हैं व इसके धनुषाकृति पाये के मध्य में धर्मचक्र है । प्रतिमा के पृष्ठ भाग में दशवी शताब्दी का एक लेख उत्कीर्णित है जिसमें चन्द्र कुल माढ़ गच्छ के गोचि श्रावक के द्वारा मुक्ति की इच्छा से जिनेश्वर त्रितीर्थी बनाने का उल्लेख है।
२. पार्श्वनाथ त्रितीर्थी-यह प्रतिमा भी अत्यन्त सुन्दर पद्मासन स्थित सप्त-फग मण्डित है। दोनों ओर के कक्ष में स्थित कायोत्सर्ग मुद्रा की खड़ी प्रतिमाएं भी कलापूर्ण उपर्युक्त प्रतिमाओं की भाँति धोती पहिने हुए हैं । भगवान पार्श्वनाथ के पव्वासन के नीचे कमल की पंखुड़ियाँ और वस्त्र चिन्ह है । तन्निम्न माग में धर्मचक्र व उभय पक्ष में मृग युगल है। दोनों ओर सिंहासन के नीचे सिंह उत्कीर्णित है। सिंहासन के दाहिनी ओर यक्ष है जिसका वाहन गज है और बायें हाथ में फल धारण किया हुआ है। वाम पार्श्व में सिंहवाहिनी अम्बिका देवी दाहिने हाथ में आमलम्ब व बायें हाथ में वालक धारण किये अवस्थित्त हैं। यक्ष-यक्षिणी के पृष्ठ भाग में उभय पक्ष में चामर- धारिणी स्त्रियाँ खड़ी हैं और निम्न भाग में नवग्रह प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। यह अत्यन्त सुन्दर कलाकृति भी आठवीं शताब्दी की है। वांकानेर की पार्श्वनाथ प्रतिमा :
पिण्डवाड़ा की उपर्युक्त प्रतिमा से मिलती-जुलती पार्श्वनाथ प्रतिमा सौराष्ट्र के वांकानेर में है। एक शैली होने पर भी शिल्पी भिन्न होने से सामान्य अन्तर होना स्वाभाविक है। यह प्रतिमा भी आठवीं-नौवीं शताब्दी की है और निम्न भाग में बने हुए पायों पर अवस्थित हैं।
गौड़ो पाश्वनाथ, बम्बई :
१. गौड़ीजी के मन्दिर की पार्श्वनाथ त्रितीर्थी भी सप्त- . फग मण्डित है और उसी शेली में निर्मित है जो तीन शताब्दियों से चलती आ रही है । इसके नवग्रह कुछ विशेष स्पष्ट हैं और सामने चारों पाये परिलक्षित हैं । पृष्ठ भाग में प्रतोली आकार वाले पाये पर सं० १०६३ का लेख उत्कीर्णित हैं । पिण्डवाड़ा की प्रतिमा शेली से कुछ भिन्नता और शिल्प में परिवर्तन व रेखाओं के उत्कीर्णन में कुछ न्यूनता लगती है।
२. आदिनाथ प्रतिमा- यह प्रतिमा प्रभास पाटण से आई हुई इकतीर्थी है। इसमें उभय पक्ष में चामरधारिणी मूर्तियाँ खड़ी हैं और दाहिनी ओर यक्ष व बाँयीं तरफ अम्बिका की प्रतिमा है। भगवान के पीछे प्रभामण्डल, छत्रादि न होने से लगता है कि परिकर भाग नष्ट हो गया है। इसके पृष्ठ भाग में सं० १०९० का लेख उत्कीर्णित है । प्रभु के मस्तक पर पृष्ठ भाग में गर्दन तक लटकतो केश-राशि अन्य प्रतिमाओं से पृथकता ला देती है। अहमदाबाद की प्रतिमा : __अहमदाबाद के वाघण पोल स्थित अजितनाथ जिनालय
की धातुमय कायोत्सर्ग मुद्रा की विशाल जिनप्रतिमा पिण्डवाड़ा शैली की परम्परागत अनुकृति है । यह सरल परिकर वाली आकर्षक प्रतिमा है जिसके उभयपक्ष में
गिरनार तीर्थ :
विमलनाथ परिकर--यह परिकर खूब विशाल आर कलापूर्ण है। इसके ऊपर काउसग्गिए और परिकर के निम्न भाग में सं० १५२३ का लेख भी उत्कीर्णित है। यह पहली ढूंक के चतुर्विंग देहरियों के पास एक कमरे में रखा हुआ है । इसमें षण्मुख यक्ष और विजया
शासनदेवी की भी सुन्दर प्रतिमा बनी हुई है। मूल प्रतिमा - भग्न हो जाने से यह परिकर उपेक्षित पड़ा हुआ है।
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