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धारण किया हुआ है। इसके गले में हार व पुष्ट पयोधरों के मध्य लटकती हुई मंगलमाला नाभि से दाहिनी ओर स्थित है। हाथों में भुजबंद पहने हुए हैं। दाहिने हाथ में उत्तरीय वस्त्र का अंचल पकड़ा हुआ है और सीधा किया हुआ है । दाहिना हाथ मोड़ कर ऊपर किया हुआ है जिसमें दण्ड धारण किया हुआ लगता है। संभव है कि यह चामर की डांडी हो । दृढ़ श्रृंखलायुक्त कंदोरा और तन्निम्न भाग में कटिमेखलाकटिपट्ट परिधापित है। यह पश्चिम भारत की श्रेष्ठ कलाकृति है और बड़ौदा संग्रहालय में स्थित है ।
आकोटा के ६८ प्रतिमा समूह में अवशिष्ट प्रतिमाओं में ३० अभिलेख युक्त है जिनमें से दो संवतोल्लेख है। इनमें लगभग आधी प्रतिमाएं सातवीं शताब्दी से पूर्व की है। दो कांस्य प्रतिमाओं के मस्तक बड़े ही सौम्य और कलापूर्ण हैं. ये अवश्य ही गुप्तकालीन प्रतिमाओं के खण्डित भाग हैं।
वल्लभी (वला) की प्रतिमाएं गुजरात का वल्लभी नगर जैन धर्म का मुख्य केन्द्र रहा है. जहाँ आर्य नागार्जुन की अध्यक्षता में प्रथम वाचना हुई । आर्य मल्लवादी ने वि० सं० ४१४ के लगभग बौद्धों को शास्त्रार्थ में पराजित किया । वि० [सं० ५१० में फिर श्री देवद्धिं गणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में जैन श्रमणों की परिषद का द्वितीय सम्मेलन हुआ जिसमें जैनागमों को पुस्तकारूढ़ किया गया। इस समय गुजरात में जैन धर्म सर्वत्र फैल चुका था। भण्डारकर साहब ने वल्लभी से पांच खङ्गासन मुद्रा की प्रतिमाएं प्राप्त कीं, जो इस समय प्रिंस आफ वेल्स म्यूजियम, बम्बई में हैं। इनके खण्डित अभिलेखों से प्रमाणित हुआ है कि ये छठी शताब्दी मैं निर्मित हुई थीं ।
इन पाँचों प्रतिमाओं में चार पादपीठ पर स्थित हैं जिसमें तीन का ऊंचा और एक प्रतिमा का पादपीठ नीचा है और एक प्रतिमा का पादपीठ सर्वथा लुप्त हो गया है। ये सभी प्रतिमाएं गुप्तकाल की भाँति प्रलम्ब न होकर पश्चिम
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भारत की तत्कालीन शैली के अनुरूप हैं। एक प्रतिमा का दाहिना हाथ खण्डित है जो पादपीठ पर मणिमाला के गोल घेरे में अवस्थित है। एक प्रतिमा के उभय पक्ष में पादपीठ से लेकर मुखमण्डल के पीछे बने प्रभामण्डल तक धनुजाकार पट्टिका बनी हुई है। सभी के मस्तक पर घुंघराले वाल और लम्बे कान दृष्टिगोचर होते हैं। सभी प्रतिमाएँ धोती पहनी हुई हैं और गोमूत्रिका लहर की चुन्नटदार लाँग नोचे लटक रही है।
मड़ी की प्रतिमाएँ :
महड़ी गाँव, गुजरात में खुदाई से प्राप्त प्रतिमाएँ धातुमय इकती हैं। वे इस प्रकार हैं
१. जिन प्रतिमा के सिंहासन में दो सिंह और मध्य में धर्मचक्र है । उभय पक्ष में हरिण है। प्रभु के पृष्ठ भाग में दो स्तम्भ पर तोरण व प्रभामण्डल है ।
२. जिन प्रतिमा के पृष्ठ भाग में चौखट पर प्रभामण्डल है । निम्न भाग में पव्वासन के नीचे सप्तग्रह की खड़ी मूर्तियाँ दोनों ओर निकली हुईं हैं। शाखा पर यक्षयक्षिणी बैठी हुई हैं।
३. ऋषभदेव प्रतिमा के कन्धे पर कुन्तल राशि और पव्वासन के नीचे वस्त्र व दाहिनी ओर यक्षराज के अतिरिक्त कुछ अवशेन नहीं है। प्रभु के पृष्ठ भाग में कुछ नहीं है।
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४. पार्श्वनाथ प्रतिमा ऊंचे पाये के सिंहासन पर नौ ग्रह हैं, तदुपरि कुण्डली मारे सांप पर प्रभु प्रतिमा के उभय पक्ष में धरणेन्द्र पद्मावती हैं। प्रभु की मनोज्ञ प्रतिमा पर सुन्दर सप्तफण सुशोभित है । पिण्डवाड़ा की प्रतिमाएँ :
पिण्डवाड़ा, सिरोही रोड की प्रतिमाएँ यहाँ के मंदिर में विराजमान हैं।
१. वज्रासन जिन प्रतिमा यह सड़ी प्रतिमा कमलासन पर स्थित है। प्रभु को पहनाया कंदोरा और धोती
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